Thursday 31 August 2017

वह साथ सबका निभाता है

क्यों आंख से जल छलकता है
सबका  सुख  दुख से  नाता  है
,
है  इसी का  नाम   तो  जीवन
कौन  खुशियां  सदा  पाता  है
,
हाथों  की  लकीरों  में  लिखा
अपनी  किस्मत  का खाता है
,
हंसना रोना  वक़्त  के  हाथ
वक़्त  खेल  यहां  दिखाता है
,
ले  लो सहारा प्रभु नाम का
वह साथ सबका  निभाता है

रेखा जोशी

Wednesday 30 August 2017

हाइकु

हाइकु

विघ्न  हरता
हे सिद्धि विनायक
जय गणेशा
,
हे गजानन
दो हमें रिद्धि सिद्धि
अभिनंदन
,
गौरी नंदन
हे गणपति देवा
करें नमन
,
प्रथम पूज्य
मोदक मनभाते
हे एकदंत

रेखा जोशी

Tuesday 29 August 2017

चारो ओर है जलथल जलथल

कैसी  यह  ज़िन्दगी  हे भगवन
आज  मौत में   है घिरे  भगवन
चारो ओर  है जलथल जलथल
पेट  की आग ना  बुझे  भगवन

रेखा जोशिल

मुक्तक


जब चाँद छुपा है बादल मेँ, तब रात यहॉं खिल जाती है
घूँघट ओढ़ा है अम्बर मेँ, चाँदनी यहाँ शर्माती है
तारों की छाया मेँ मिल के ,आ दूर कहीं अब चल दें हम
हाथों में हाथ लिये साजन,ज़िन्दगी बहुत अब भाती है

रेखा जोशी

मुक्तक


खिले फूल  उपवन में बहार के लिये
मिला सजना सजनी से प्यार के लिये
संग   चलते   मुस्कुराते  नज़ारे   भी
है ज़िन्दगी बस अब दिलदार के लिये

रेखा जोशी

Monday 28 August 2017

पति परमेश्वर


पति परमेश्वर  (लघु कथा)

''सोनू आज तुमने फिर आने में देर कर दी ,देखो सारे बर्तन जूठे पड़ें है ,सारा घर फैला पड़ा है ,कितना काम है ।''मीना ने सोनू के घर के अंदर दाखिल होते ही बोलना शुरू कर दिया ,लेकिन सोनू चुपचाप आँखे झुकाए किचेन में जा कर बर्तन मांजने लगी ,तभी मीना ने उसके मुख की ओर ध्यान से देखा ,उसका पूरा मुहं सूज रहा था ,उसकी बाहों और गर्दन पर भी लाल नीले निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे । ''आज फिर अपने आदमी से पिट कर आई है ''?उन निशानों को देखते हुए मीना ने पूछा ,परन्तु सोनू ने कोई उत्तर नही दिया ,नजरें झुकाए अपना काम करती रही बस उसकी आँखों से दो मोटे मोटे आंसू टपक पड़े । मीना ने इस पर उसे लम्बा चौड़ा भाषण और सुना दिया कि उन जैसी औरतों को अपने अधिकार के लिए लड़ना नही आता ,आये दिन पिटती रहती है ,घरेलू हिंसा के तहत उसके घरवाले को जेल हो सकती है और न जानेक्या क्या बुदबुदाती रही मीनू । उसी रात देव मीनू के पति रात देर से घर पहुंचे ,किसी पार्टी से आये थे वह ,एक दो पैग भी चढ़ा रखे थे ,मीनू ने दरवाज़ा खोलते ही बस इतना पूछ लिया ,''आज देर से कैसे आये ,?''बस देव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया ,आव देखा न ताव कस कर दो थप्पड़ मीना के गाल पर जड़ दिए । सुबह सोनू  अपनी मालकिन के सूजे हुए चेहरे को देख कर  अवाक रह गई ।

रेखा जोशी

Monday 21 August 2017

जूही बेला मोंगरा की कली

जूही बेला मोंगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
संवारती घर पिया का
गाती गुनगुनाती
.
पीर न उसकी
जाने कोई
दर्द सबका अपनाती
खुद भूखी रह कर भी
माँ का फ़र्ज़ निभाती
जूही बेला मोंगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
.
कोई उसको समझे न पर
रोती लुटती बीच बाजार
रौंदी मसली जाती
गंदी नाली में दी जाती फेंक
चाहेकितना करे चीत्कार
तड़पाता उसे ज़ालिम सँसार
खरीदी बेचीं जाती
जूही बेला मोंगरा की कली
झूठी मुस्कान होंठो पर लिये
आखिर मुरझा जाती

जूही बेला मोंगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
रेखा जोशी

Sunday 20 August 2017

रिश्ते

देखे दुनिया कीभीड़ में
हमने
बिखरते रिश्ते
जीवन की भाग दौड़ में
सिसकते रिश्ते
छूटते रिश्ते

भाषा प्रेम की
कोई नहीं जानता
देखे
पत्थरों के शहर में
टूटते रिश्ते

रिश्ते रिश्ते
है देखे हमने
बनते बिगड़ते रिश्ते
छल फरेब
ईर्ष्या द्वेष से नहीं
प्यार और मुहब्बत से
हैं जुड़ते
और
संवरते रिश्ते

रेखा जोशी 

Saturday 19 August 2017

वफ़ा की आस थी वह बेवफ़ा है

नहीं कुछ प्यार में अब तो रखा है
वफ़ा की आस थी वह बेवफ़ा है
,
दिखायें हम किसे यह ज़खम दिल के
रही अब ज़िन्दगी बन के सजा है
,
गिला शिकवा कभी कोई नहीं अब
सिला क्या प्यार का हमको मिला है
,
मिला है दर्द ही तो ज़िन्दगी में
जिगर में दर्द को हमने रखा है
,
हमें छोड़ा अकेला ज़िन्दगी ने
न जाने क्या हुई हमसे खता है
,
खिली है धूप आंगन में सभी के
लगाया रात ने डेरा यहां है
,
खता हमसे हुई वो माफ कर दे
पिया कदमों तले यह सर झुका है
,
कभी तुम फिर हमें मत याद करना
मिटाया नाम दिल पर जो लिखा है
,
निगाहों से पिलाया जाम तुमने
असर यह प्यार का कैसा हुआ है
,
मुझे तू  प्यार से इक बार तो मिल
जिगर दिल खोल कर अपना रखा है
,
नहीं चाहत हमें अब प्यार की पर
बता दें तू पिया क्या चाहता है

रेखा जोशी

Friday 18 August 2017

थोथा चना बाजे घना


शांत  गहरे सागर रहते
झर झर झर झरने छलकते
,
ज्ञानी मौन यहां पर रहें
पोंगे पण्डित ज्ञान  देवें
,
थोथा चना बाजे घना
गुणगान करे अपना यहां
,
कुहू कुहूक कोयल गाए
राग गाता  कागा जाए
,
आधा अधूरा ज्ञान लिए
गुणों का अपने गान करे

रेखा जोशी

Wednesday 16 August 2017

बहारें ज़िन्दगी में प्यार ले कर आप आयें है

विधाता छंद
1222. 1222. 1222. 1222

बहारें ज़िन्दगी में प्यार ले कर आप आयें हैं
कलम से खींच सपने आज काग़ज़ पर सजायें हैं
,
निगाहों में हमें तेरी दिखा है प्यार ही साजन
मिले जो तुम हमें तो फूल अंगना में खिलायें हैं
,
कहेंगे बात दिल की अब निगाहों ही निगाहों से
सजन अब बात दिल की हम यहां तुमको सुनायें हैं
,
खुशी अपनी पिया कैसे बतायें आज हम तुमको
पिया हम संग दिल में प्यार भर कर आज लायें हैं
,
हवाएं भी यहां पर आज हमको छेड़ती साजन
कहे जोशी नज़ारों  से पिया दिल में समायें है

रेखा जोशी

काली अँधेरी रात
छूटा साये  का भी साथ
धड़कता दिल कांपते हाथ

लगता क्यों
न जाने
कोई है मेरे साथ
चल रहा संग मेरे
जगाता दिल में मेरे
इक आस
रख कर हिम्मत
बढ़ता चल न डर
झाँक दिल में अपने
थरथराती लौ दिये की
दिखा रही राह
स्याह अँधेरे में
लेकिन
फिर भी रहा मेरा
धड़कता दिल कांपते हाथ

भीतर ही भीतर
हो रही उजागर
राह मंज़िल की
थामे अपनी साँसे
नहीं दी बुझने
वह थरथराती लौ
रखती रही पग अपने
संभल संभल कर
लेकिन
फिर भी रहा मेरा
धड़कता दिल कांपते हाथ

रेखा जोशी

Monday 14 August 2017

कुकुभ छंद

 छंद कुकुभ
यह चार पद का अर्द्धमात्रिक छन्द है. दो चरणों के हर पद में 30 मात्राएँ होती हैं और यति १६,१४ पर होती है, पदां त में दो गुरु आते है।

हे माखनचोर नन्दलाला ,है मुरली मधुर बजाये 
धुन सुन  मुरली की गोपाला ,राधिका मन  मुस्कुराये
चंचल नैना चंचल चितवन, राधा को मोहन  भाये  
कन्हैया से  छीनी मुरलिया  ,बाँसुरिया  अधर लगाये

छंद पर आधारित मुक्तक 

हे माखनचोर नन्दलाला ,है मुरली मधुर बजाये 
धुन सुन  मुरली की गोपाला ,राधिका मन मुस्कुराये 
चंचल नैना चंचल चितवन,  गोपाला से प्रीत लगी
कन्हैया से छीनी मुरलिया  , बाँसुरिया अधर लगाये 

रेखा जोशी 

Friday 11 August 2017

खुशी से गीत साजन गुनगुनाना है


हमे तो अब  ख़ुशी से खिलखिलाना है 
सुमन उपवन पिया अब तो खिलाना है
मिली  है  ज़िन्दगी अब  मुस्कुराओ तुम
ख़ुशी  से  गीत  साजन   गुनगुनाना  है 
,

मीत आज ज़िन्दगी हमें  रही पुकार है
रूप देख ज़िन्दगी खिली यहां बहार है
पास पास  हम रहें मिले ख़ुशी हमें सदा
छोड़ना न हाथ आज छा रहा खुमार है

रेखा जोशी 

Thursday 10 August 2017

प्रीति की लौ जलाने की बात कर


प्रीत की लौ जलाने की बात कर
साजन  प्यार निभाने की बात कर
,
पल दो पल की ज़िन्दगी अब जी लें
यूं न अब दिल दुखाने  की बात कर
,
खुला आसमां  बुला  रहा है हमें
जहां से दूर जाने की बात कर
,
बहुत रोये है जीवन में हम अब
ज़िन्दगी  मुस्कुराने की बात कर
,
अाई है चमन में  बहारें सजन
अब गीत गुनगुनाने की बात कर

रेखा जोशी

Wednesday 9 August 2017

जो रंग बदलते गिरगिट सा


देख उसकाभोला सा चेहरा
नही पहचान उसको पाया 
बना मीत मेरा 
और 
दिल का हाल उसे बताया
निकाला जनाज़ा 
विश्वास का मेरे 
जग में मेरा मज़ाक बनाया 
बन दोस्त  मेरा 
दुश्मन सा वो सामने आया 
भगवान बचाये ऐसे 
दोस्तों से 
जो रंग बदलते गिरगिट सा 

रेखा जोशी 

Saturday 5 August 2017

सच्चाई की राह

एकांकी

""सच्चाई की राह"

कलाकार
पहला,दूसरा(सूत्रधार) मसखरे
सत्यम एक आदमी
प्रेरणा  सत्यम की पत्नी

स्टेज पर दो मसखरों का प्रवेश

पहला, जब मैं छोटा बच्चा था
दूसरा,झूठ बोल कर बड़ी शरारत करता था,मेरा झूठ पकड़ा जाता और  माँ से डांट खाता था,मुझे समझाने के  लिए मां नई नई कहानियां सुनाया करती थी।
पहला, अच्छा,मुझे भी सुनाओ न कहानी
दूसरा ,हां  एक कहानी याद आई,एक गांव में एक लड़का रहता था  , वह हर रोज़ सुबह सुबह भेड़ बकरियां चराने जंगल जाया करता था।
पहला ,फिर क्या हुआ
दूसरा , एक दिन उस शरारत सूझी
पहला ,अच्छा ,फिर क्या हुआ
दूसरा , वह झूठ मूठ ही जोर जोर से चिल्लाने लगा
पहला (हैरानी से)चिल्लाने लगा
दूसरा , हां चिल्लाने लगा "शेर आया,शेर आया बचाओ बचाओ"
पहला, क्या  शेर आया (हैरानी से)
दूसरा, अरे ,इसमें हैरान होने  की क्या बात है,सचमुच में थोड़ा कोई शेर आया था, वह तो झूठ बोल कर गांव वालों को डरा रहा था।
पहला, ओह,फिर क्या हुआ
दूसरा, फिर गांव  वाले लाठियां ले कर  भागे भागे उसे बचाने जंगल  आए
पहला अच्छा ,फिर क्या हुआ
दूसरा ,हा हा हा ,वह जोर जोर से हंसने लगा,,और ताली  पीट पीट कर गाने लगा"बुद्धू बनाया बड़ा मज़ा आया,बुद्धू बनाया बड़ा मज़ा आया"
पहला ओह यह तो उसने अच्छा नहीं किया
दूसरा, हां , बिलकुल अच्छा नहीं किया, पता फिर एक दिन वहां सचमुच शेर आ गया और वह डर गया ,जोर जोर से चिल्लाया,बचाओ शेर आया शेर आया
पहला,तब तो गांव वाले फिर से उसे बचाने के लिए  भागे
भागे जंगल में आए होंगे
दूसरा,नहीं ,सभी ने यही सोचा कि वह झूठ बोल रहा है और कोई भी उस बचाने जंगल की ओर नहीं गया
पहला , ओओ ह,फिर क्या हुआ
दूसरा ,फिर क्या ,शेर उसे मार कर खा गया
पहला ,ओह ,झूठ बोलने के कारण बेचारे को अपनी जान से हाथ धोने पड़े
दूसरा,यह तो  बहुत ही बुरा हुआ उसके  साथ, अगर उसने झूठ न बोला होता तो गांव वाले उसे शेर से बचा लेते ।

स्टेज पर सत्यम और उसकी पत्नी प्रेरणा का प्रवेशके

प्रेरणा ,अजय मुझे तुम पर गर्व है क़ि मै तुम्हारी पत्नी हूँ,तुम्हारा तो नाम ही  सत्यम है जो सदा  सच का साथ देता है

सत्यम , हां प्रेरणा मेरी ज़िंदगी संघर्ष की एक लंबी दास्ताँ है,बचपन क्या होता है मैंने देखा ही नही ,पांच वर्ष की आयु में सर से बाप का साया उठ गया ,गरीबी क्या होती है मुझ से पूछो

प्रेरणा ,लेकिन आज तो तुम्हारे पास सब कुछ है

सत्यम,हां आज मेरे पास सब कुछ है ,
लेकिन इस सब के पीछे  मेरी मां है  जिसने मुझे बचपन से ही सदा सच्चाई की कहानियां सुना कर उसका महत्व बताया ।
प्रेरणा, सही कहा मां ही अपने बच्चो को सच्चाई का पाठ पढा सकती है।
सत्यम , आज यहां तक पहुंचने के लिए मैने इक लम्बा  रास्ता तय किया है ,गाँव की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडियों से मीलों दूर स्कूल का रास्ता,स्कूल से कालेज और कॉलेज से यूनिवर्सिटी का रास्ता,बच्चों को ट्यूशन देना ,घर का खर्चा  ,विधवा माँ की देखभाल और छोटे भाई की पढ़ाई का खर्चा और सबसे उपर सच्चाई की राह पर चलते रहना।

प्रेरणा, जानती हूँ तुमने कभी सच का साथ नहीं छोड़ा ,ज़िन्दगी में अपने को टूटने नही दिया ,झूठ का दामन पकड़ कर पैसा नहीं कमाया।

पहला हां, हिम्मते मर्दे मददे खुदा
दूसरा ,भगवान उनकी मदद करते है जो अपनी मदद खुद करते है
पहला ,जीवन एक चुनौती है
दूसरा चुनौती का स्वागत करो
पहला ,जीवन एक संघर्ष है
दूसरा संघर्ष का स्वागत करो
पहला ,सच्चाई की राह पर बढ़ते चलो
दूसरा, सच्चाई की राह पर बढ़ते चलो

रेखा जोशी

Friday 4 August 2017

चलो दूर साजन बहारें पुकारे

122. 122. 122. 122

सजन  राह   देखें  नयन  यह  हमारे
लुभाते     हमें    खूबसूरत     नज़ारे
खिली आज कलियां यहां प्यार महके
चलो    दूर   साजन   बहारें    पुकारे

रेखा जोशी

आती ज़िन्दगी में भी धूप छांव


समय की बहती धारा से बंधी
यही तो है हम सभी की ज़िन्दगी
,
सुख दुख दो किनारे बहती धारा
खुशी गम जीवन में आना जाना
,
खिलतेे यहां कांटो में भी गुलाब
आती ज़िन्दगी में   भी धूप छांव
,
पल पल जुड़ी सांसों की डोर यहां
गर आज है जीवन कल मौत यहां
,
रचाया  प्रभु ने कैसा यहां खेला
आवन जावन  का लगाया मेला

रेखा जोशी

Thursday 3 August 2017

गीत खुशी के हम सब गाएं


उपवन  में   फूल   मुस्कुराएं
दीप  नेह के सदा जगमगाएं
अरे अब ऐसी कविता लिखो
गीत  खुशी के हम सब गाएं

रेखा जोशी