Saturday 29 April 2017

दोहा मुक्तक

सावन आया झूमता  ,ठंडी पड़े फुहार
उड़ती जाये चुनरिया ,बरखा की बौछार
सावन बरसा झूम के ,भीगा आज तन मन
छाई हरियाली यहाँ,चहुँ ओर है निखार
,
भीगा सा मौसम यहाँ ,भीगी सी है रात
भीगे से अरमान है ,आई है बरसात
पेड़ों पर झूले पड़े,है बजे साज़ मधुर
मौसम का छाया नशा,दिल में उठे जज़्बात

रेखा जोशी

Friday 28 April 2017

मर मिटे सिपाही जो अपने देश की खातिर


आओ  तुमको  ऐसी  कहानी आज सुनाये
याद  करें  सीमा  पर जिन्होंने   प्राण गवायें
मर मिटे सिपाही जो अपने देश की खातिर
नमन  कर शहीदों के नाम इक दीप जलायें

रेखा जोशी

वफ़ा का दिया फिर जलाना सजन

122. 122. 122.  12

जला प्यार में दिल दिवाना सजन
मिला खाक में आशियाना सजन
चले तुम गये हो हमें छोड़ के
वफ़ा का दिया फिर जलाना सजन

रेखा जोशी


दुनिया की भीड़ में हर ओर बिखरते रिश्ते
है जीवन की भाग दौड़  में सिसकते रिश्ते
कठिन बहुत जीवन मे निभाना इन रिश्तों को
पत्थरों   के  शहर   में  देखो  टूटते    रिश्ते

रेखा जोशी

Wednesday 26 April 2017

प्यार से पुकार लो मिला हमे सँसार है

छन्द- चामर
मापनी - 21 21 21 21 21 21 21 2 

मीत आज ज़िन्दगी हमें  रही पुकार है
रूप देख ज़िन्दगी खिली यहाँ बहार है
,
पास पास  हम रहें मिले ख़ुशी हमें सदा
छा रहा गज़ब यहाँ खुमार ही खुमार है

छोड़ना न हाथ साथ साथ हम चले सदा
प्रीत रीत जान ज़िन्दगी यहाँ हमार है
,
मिल गया जहाँ हमें मिले हमें सजन यहाँ
पा लिया पिया यहाँ करार ही करार है
,
दूर हम वहाँ चलें  मिले  जहाँ धरा गगन
प्यार से पुकार लो  मिला हमे सँसार है

रेखा जोशी

हद से ज्यादा सुन्दर उसने बनाई यह दुनिया
विभिन्न रंगों से फिर उसने सजाई यह दुनिया
भरे क्यों फिर उसमें उसने ख़ुशी और गम के रँग
हर किसी को उसकी नज़र से दिखाई यह दुनिया

रेखा जोशी

Tuesday 25 April 2017

प्यार हमारा सजन अफसाना हो गया

तुमसे  मिले  प्रियतम  हमे जमाना हो गया
प्यार हमारा अब सजन अफसाना हो गया
क्या  करें हम  तो  हैं  दिलके हाथों मजबूर
रोका  दिल को  कमबख्त दीवाना हो गया

रेखा जोशी

निर्मल

चंचल  चितवन कंचन तन
नही छल कपट निर्मल मन
कोई  नही  तुम  सा   यहाँ
भाये  अब   यह  भोलापन
,,

मलिन
गले  लगाती   दीन  हीन
पाप सब कर  लेती लीन
पाप  धो  कर  पापियों  ने
गंगा  को कर दिया मलिन

रेखा जोशी

बरस रहा अंगार नभ से

सूखी  नदियाँ  सूखे  ताल
जीना हुआ अब तो मुहाल
बरस  रहा  अंगार  नभ से
है धरती पर पड़ा  अकाल

रेखा जोशी

Friday 21 April 2017

है   याद  आती   बार बार
दिल  कर  रहा अब  इंतज़ार  
हाल ए दिल दिखाते प्रियतम 
जो  तुम  आ  जाते  एक बार
...........................
मापनी पर आधारित मुक्तक

2122  2122.  212

आज फिर मौसम सुहाना आ गया 
प्यार में दिल को लुभाना आ गया
मिल गई हमको ख़ुशी आये पिया 
ज़िंदगी  को  मुस्कुराना  आ गया 

रेखा जोशी 


Thursday 20 April 2017

आज फिर मौसम सुहाना आ गया


2122  2122.  212

आज फिर मौसम सुहाना आ गया 
प्यार में दिल को लुभाना आ गया
मिल गई हमको ख़ुशी आये पिया 
ज़िंदगी  को  मुस्कुराना  आ गया 

रेखा जोशी 

प्यार किया उनसे तो यह रिश्ता है निभाना

करते हम प्यार उनको दुश्मन है ज़माना
ढूंढते रहते  नित   मिलने   का है बहाना

ऐसा नही कि उन से मोहब्बत नही रही
मोहब्बत  में अब   रूठना या है मनाना
,
चलते  रहेंगे  साथ  साथ  हम  सदा यूँही
प्यार किया उनसे तो यह रिश्ता है निभाना
,
है चाहते हम उनको जी जान से अपनी
हो जाये  कुछ भी उन्हें अपना है बनाना
,
करना न कभी भी हमारे दिल से दिल्लगी
तुमसे   ही   ज़िन्दगी  कोई  ना है फ़साना

रेखा जोशी

लाल बहादुर ,गांधी से बेटे अब है कहाँ


क्या यही हमारे सपनों का है देश भारत
पूछ रही आ  स्वप्न में मुझसे माँ भारती
,
घूम रही गली गली लिये तिरंगा हाथ मे
स्नेह भरे नैनों में वोह  मूरत ममतामयी
,
है पूत अपने ही नोच खा रहे उसे आज
घौटालों  की जंजीरों में दी जकड़ी गई
,
लाल बहादुर ,गांधी  से बेटे अब है कहाँ
आँसू भर  आंखों  में पूछ शहीदों से रही
,
भूल प्यार जाने क्यों  भाई भाई लड़ रहे
देख लड़ते अपने बच्चों को वोह थी दुखी

रेखा जोशी

Wednesday 19 April 2017

फेंका पाँसादाव पेच से


शकुनि का खेल समझ न पाया
धर्मराज    युधिष्ठिर    भरमाया
फेंका   पाँसा    दाव   पेच   से
जुआ  खेलने  को    उकसाया

रेखा जोशी

रचयिता


रचती रही माँ माटी से
अपनों   के लिये  सपने
घड़ती  रही कहानियाँ
घट वह  घडते घडते
रचयिता थी वह बच्चों की
कच्ची  माटी से बच्चे
सँवारनी थी ज़िन्दगी उनकी
है बसे   घट घट में
बच्चों के सपने रंग बिरंगे

रेखा जोशी


यह दिल सनम तुम्हे दीवाना न लगे


है  हकीकत  कोई  फ़साना न लगे
मिलने का सजन से बहाना न लगे
कैसे दिखाऊँ दिल अपना मै पिया
यह दिल सनम तुम्हे दीवाना न लगे

रेखा जोशी

Tuesday 18 April 2017

चलो भूलें सभी गम प्यार से जी लें यहाँ हर दम


आधार छंद - विधाता (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी - 1222 1222 1222 1222
सामान्त - आयी <> पदान्त - है।

खिले है फूल अंगना शाम प्यार करने की आई है
कहीं है प्यार का मौसम   कहीं  मिलती जुदाई है
कभी मिलती यहाँ खुशियाँ कभी मिलते यहाँ पर गम
चलों भूलें सभी गम प्यार से जी लें यहाँ हर दम

रेखा जोशी

Sunday 16 April 2017

प्यार में यूँ दगा नही करते

प्यार में यूँ दगा नहीं करते
राह अपनी जुदा नहीं करते
,
आप को प्यार का सबब मिलता
जान तुमसे जफ़ा नहीं करते
,
काश आते न ज़िन्दगी में तुम
ज़िन्दगी से हम गिला नही करते
,
यार से क्या गिला करें अब हम
ज़िन्दगी यूँ जिया नहीं करते
,
छोड़ दो बीत जो गई बाते
ज़िक्र क्यों आज का नहीं करते

रेखा जोशी

क्रोध ,क्षणिक पागलपन

क्रोध ,क्षणिक पागलपन}

अमित अपने पर झल्ला उठा ,”मालूम नहीं मै अपना सामान खुद ही रख कर क्यों भूल जाता हूँ ,पता नही इस घर के लोग भी कैसे कैसे है ,मेरा सारा सामान उठा कर इधर उधर पटक देते है ,बौखला कर उसने अपनी धर्मपत्नी को आवाज़ दी ,”मीता सुनती हो ,मैने अपनी एक ज़रूरी फाईल यहाँ मेज़ पर रखी थी ,एक घंटे से ढूँढ रहा हूँ ,कहाँ उठा कर रख दी तुमने ?गुस्से में दांत भींच कर अमित चिल्ला कर बोला ,”प्लीज़ मेरी चीज़ों को मत छेड़ा करो ,कितनी बार कहा है तुम्हे ,”अमित के ऊँचे स्वर सुनते ही मीता के दिल की धड़कने तेज़ हो गई ,कहीं इसी बात को ले कर गर्मागर्मी न हो जाये इसलिए वह भागी भागी आई और मेज़ पर रखे सामान को उलट पुलट कर अमित की फाईल खोजने लगी ,जैसे ही उसने मेज़ पर रखा अमित का ब्रीफकेस उठाया उसके नीचे रखी हुई फाईल झाँकने लगी ,मीता ने मेज़ से फाईल उठाते हुए अमित की तरफ देखा ,चुपचाप मीता के हाथ से फाईल ली और दूसरे कमरे में चला गया ।

अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब हमारी इच्छानुसार कोई कार्य नही हो पाता तब क्रोध एवं आक्रोश का पैदा होंना सम्भाविक है ,या छोटी छोटी बातों या विचारों में मतभेद होने से भी क्रोध आ ही जाता है |यह केवल अमित के साथ ही नही हम सभी के साथ आये दिन होता रहता है | ऐसा भी देखा गया है जो व्यक्ति हमारे बहुत करीब होते है अक्सर वही लोग अत्यधिक हमारे क्रोध का निशाना बनते है और क्रोध के चलते सबसे अधिक दुख भी हम उन्ही को पहुँचाते है ,अगर हम अपने क्रोध पर काबू नही कर पाते तब रिश्तों में कड़वाहट तो आयेगी ही लेकिन यह हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी क्षतिग्रस्त  करता है ।

क्रोध  क्षणिक पागलपन की स्थिति जैसा है जिसमे व्यक्ति अपने होश खो बैठता है और अपने ही हाथों से जुर्म तक कर बैठता है और वह व्यक्ति अपनी बाक़ी सारी उम्र पछतावे की अग्नि में जलता रहता है ,तभी तो कहते है कि क्रोध मूर्खता से शुरू हो कर पश्चाताप पर खत्म होता है |

मीता की समझ में आ गया कि क्रोध करने से कुछ भी हासिल नही होता उलटा नुक्सान ही होता है , उसने कुर्सी पर बैठ कर लम्बी लम्बी साँसे ली और एक गिलास पानी पिया और फिर आँखे बंद कर अपने मस्तिष्क में उठ रहे तनाव को दूर करने की कोशिश करने लगी ,कुछ देर बाद वह उठी और एक गिलास पानी का भरकर मुस्कुराते हुए अमित के हाथ में थमा दिया ,दोनों की आँखों से आँखे मिली और होंठ मुस्कुरा उठे |

रेखा जोशी

Wednesday 12 April 2017

देती दुहाई सूखी धरा

देती दुहाई सूखी धरा
करती रही पुकार
आसमाँ पर  सूरज फिर भी
रहा बरसता अँगार
सूख गया अब रोम रोम
खिच  गई लकीरें तन  पर
तरसे जल को प्यासी धरती
क्या पंछी क्या जीव जंतु
सबका हुआ बुरा हाल
है प्यासा तन मन
प्यासी सबकी काया
क्षीण हुआ  सबका  श्वास
सूख गया है जन जीवन
सूख गया संसार
है फिर भी मन में आस
उमड़ घुमड़ कर आयेंगे
आसमान में बदरा काले
होगा  जलथल चहुँ ओर फिर से
जन्म जन्म की प्यासी धरा पे
नाचेंगे मोर फिर से
हरी भरी धरा का फिर से
लहरायें गा रोम रोम
बरसेंगी अमृत की बूदें नभ से
होगा धरा पर नव सृजन
नव जीवन से
अंतरघट तक प्यासी धरा
फिर गीत ख़ुशी के गायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी

रेखा जोशी

था चाहा जो  वोह ज़िन्दगी से  मिल गया
चाहत हमारी को    नाम तुमसे मिल गया
लग गये अब पँख हमारे ख्वाबों को आज
ज़िन्दगी में  तुम्हारा  प्यार  हमें मिल गया

रेखा जोशी

श्रम ही हमारी ज़िंदगी


चलते   रहना सुबह  शाम
है करना अब  बहुत काम
श्रम   ही  हमारी  ज़िन्दगी
श्रम ही हमारा   अब धाम

रेखा जोशी

Monday 10 April 2017

याद तुम्हारी तन्हाई हमारी को महका जाती है

रूप  अनुपम  देख  चाँद  सा  चाँदनी  शरमा जाती है
याद   तुम्हारी  तन्हाई   हमारी  को   महका   जाती है
दिल मे छुपा कर रखा सदा हमने  प्यार अपना लेकिन
दिल  की  बातें  कभी  कभी होंठों पर भी आ जाती है

रेखा जोशी

खेली तेरी गोद बीता बचपन सुहाना

मन क्यों भया उदास, खिली ज़िन्दगी धूप सी
है  टूटी  अब  आस ,चाह  तेरी  अनूप  सी
खेली तेरी  गोद ,बीता  बचपन सुहाना
वह चली गई छोड़, माँ फिर से लौट आना

रेखा जोशी

Friday 7 April 2017

छोड़ दुनिया वो गये क्या याद कर भर नैन आये

2122  2122  2122  2122

ज़िन्दगी  में अब चली है आज कैसी यह हवायें
राह में क्यों आज मेरे यह कदम फिर डगमगाये
प्यार की अब ज़िन्दगी में खो गई उम्मीद थी जो
छोड़ दुनिया वो गये क्या याद कर भर नैन आये

रेखा जोशी

Thursday 6 April 2017

नमनकरें उस महात्मा को


अजब सा माहौल
था वोह
दुश्मनों का खौफ
था ओफ
दोस्त भी बन रहे
थे दुश्मन
चमक रहे थे ख़ंजर
तलवारे
था फैल रहा धुआं धुआं
जहर से भरा भरा
शांति दूत
बन आया धरा पर
अहिंसा का पुजारी
जहर से जैसे वो
अमृत निकाल देता है
हर जन को गले लगा कर
प्रीत का पाठ
पढ़ाता वोह
था देवदूत राष्ट्रपिता
वोह
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबको अपना बनाता
वोह
ईश्वर अल्लाहके नाम
पैगाम पहुंचाता
वोह
नमन करें उस महात्मा को
प्रेम पथ पर चलना
सिखाया जिसने

रेखा जोशी

नैन के दीप जलते रहे


बाग  में  फूल  खिलते रहे
नैन   के  दीप  जलते  रहे
वादा कर न निभाया पिया
रात  भर  ख्वाब सजते रहे

रेखा जोशी