Sunday 31 March 2024

भारत माँ को बचाना है

जागो भारत के 
वीर सपूतो
डूब रहा यह देश हमारा
भारत माँ को बचाना है 

इसे लूट रहे भाई बंधु तेरे 
खनकते पैसों से 
हैं पगलाये
भर रहे सब अपना घर
तार तार हुआ माँ का आंचल
भारत माँ को बचाना है 

धधकती लालच की ज्वाला
पर पनप रहा 
है भ्रष्टाचार
नोच खा रहे कपूत माँ के 
जकड़ अनेक घोटालों में
खत्म कर घोटालों को 
भारत माँ को बचाना है 

याद करो अमर शहीदों को
मर मिटे भारत की खातिर
भर कर पानी आँखों में  
माँ को गद्दारों से  मुक्त कराना है
भारत माँ को बचाना है 

जागो भारत के 
वीर सपूतो
है डूब रहा यह देश हमारा
भारत माँ को बचाना है 

रेखा जोशी

गीत

गीत
आधार छन्द- रास छंद  
8,8,6 पर यति  इसमें चार चरण होते हैं 
हर चरण में 22 मात्राएं होती हैं 
चरण के अंत में 112 अनिवार्य है
दो क्रमागत पंक्तियों में तुकांत होते हैं

अँगना चिड़िया, है फुदक रही, चहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं,  महक रही 
..
पिया न आए, हिय घबराये ,दिल धड़के 
जियरा चाहे, देखूँ  उनको, जी भर के 
मदमस्त समां, ली अँगड़ाई , बहक रही 
आओ सजना,कोयल भी अब, कुहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 
काली काली ,घटा घनघोर, घन बरसे
अब तो आजा, साँवरे पिया,मन तरसे 
भीगा मौसम ,सर से चुनरी, सरक रही 
चमके बिजुरी,आसमान पर,दमक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 
..
अँगना चिड़िया, है फुदक रही, चहक रही 
चुरा के महक, फूलों से मैं, महक रही 

रेखा जोशी 



Saturday 30 March 2024

गीतिका

गीतिका 

आधार छंद- सार 
विधान- कुल २८ मात्रा, १६,१२ पर यति। अन्त में गुरु गुरु अनिवार्य।
समांत आना पदाँत होगा 

बहुत किया इंतजार तेरा, तुमको आना होगा 
सोया भाग्य मेरा भगवन, तुम्हें जगाना होगा 
..
हूँ अकेली इस जगत में प्रभु, कोई नहीं सहारा 
बीच भंवर डूब रही नाव, तुम्हें बचाना होगा 
..
ना कोई है संगी साथी, जीवन से मैं हारी 
निर्जन राह पर चलती रही, साथ निभाना होगा 
..
सूना पथ पाँव पड़े छाले, भगवन किसे पुकारूँ 
कोई नहीं तुम बिन मेरा,गले लगाना होगा 
..
हे दीन दयाला प्रभु मेरे, रक्षा करो तुम मेरी
तुम ही तुम रखवाले मेरे, पास बुलाना होगा 

रेखा जोशी 

..






Thursday 21 March 2024

नव भोर

शीर्षक  नव भोर

"आज भी कोई मछली जाल में नही आई "राजू ने उदास मन से अपने साथी दीपू से कहा l दोनों मछुआरे अपनी छोटी सी नाव में सवार सुमुद्र में मछलियाँ पकड़ने सुबह से  ही घर से निकले हुए थे l उनके  पास थोड़ा सा खाना और पीने का पानी था, जो शाम होते होते खत्म हो चुका था, तभी राजू को सुमुद्र में फैंके जाल में हलचल महसूस हुई और जाल भारी भी लगा, उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर आ गई l वह जोर से चिल्लाया,"दीपू हमारी मेहनत सफल हो गई, लगता है जाल में काफी मछलियाँ फंस गई हैँ, आओ दोनों मिलकर जाल ऊपर खींचते हैँ l मछलियों को देख दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, लेकिन जैसे उनकी ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई, आसमान में घने बादल छा गए, तेज होती हवाओं से उनकी नाव लड़खड़ाने लगी और उनकी ज़िन्दगी में तूफान दस्तक दे चुका था, शाम ढलने को थी,लहरों पर तेज़ी से झूलती नाव हिचकोले खाने लगी और कश्ती  में सुमुद्र  का का पानी भरने लगा, राजू और दीपू के चेहरे की रंगत बदल गई, आज उनकी परीक्षा की घड़ी थी l दोनों बाल्टी से नाव में भरते पानी को निकाल सुमुद्र में फेंक रहे थे और जी जान से नाव को संभालने की कोशिश करने लगे, लेकिन प्रकृति के आगे उनके हौसले कमजोर पड़ गए l वह दिशा भटक गए थे, अँधेरी रात, बारिश, दिशाहीन लड़खड़ाती नाव और तेज तूफान में वह दोनों फंस चुके थे l उसी आंधी तूफान में दीपू को दूर एक चमकीली रोशनी दिखाई दी, सुमुद्र की ऊँची ऊँची लहरों के थपेड़ों से उनकी कश्ती चरमराने लगी थी, फिर भी दीपू ने दम लगा कर नाव का रुख उस "लाइट हाउस" की ओर मोड़ दिया, दोनों बुरी तरह से थक चुके थे, हार कर उनके हाथ से पतवार छूट गई  उस भयंकर तूफान से लड़ते लड़ते वह दोनों बेहोश हो गए, कब रात बीती कब सुबह हुई, वह दोनों बेखबर नाव में ही गिर हुए थे l तेज सूरज की रोशनी से जब राजू की आँख खुली तो उनकी नाव सुमुद्र के किनारे पर थी और तूफान थम चुका था, कुछ लोग उनकी नाव के पास खडे थे, उन लोगों ने उन्हें उस टूटी नाव से बाहर निकाला दीपू और राजू सहित वहाँ खडे सभी लोग हैरान थे की वह इतने भयंकर तूफान से कैसे बच गए दोनों ने उगते सूरज को प्रणाम किया, यह सुबह उनके जीवन की इक नव भोर थी उन्हें नया जीवन जो मिला था l

रेखा जोशी

Wednesday 20 March 2024

आखिरी मुलाकात

कितनी खुश थी तुम
उस दिन
रस छलका रहीं थीं
बाते तुम्हारी
याद आ रही थी वो भूली बिसरी यादें
गुज़ारे थे जो पल हम दोनों में
मुझे याद है
वो आखिरी मुलाकात
जब बात करते करते तुम
चुप हो गई थी
सोचा था मैंने शायद तुम
सो गई हो
बिस्तर पर लेटते ही
लेकिन मुझे
कुछ चुभने लगी तुम्हारी
खामोशी
उठ कर देखा तो केवल तेरा
जिस्म पड़ा था सामने मेरे
और तुम
दूर जा चुकी थी सदा सदा
के लिए
छोड़ तन्हा मुझे आंसू बहाने के लिए

रेखा जोशी

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 

दिलों में प्यार लिएआज आई है होली
संग संग मस्ती चहुँ ओर लाई है होली
..
रंगों में उमंग औ उमंगो में है रंग
लाल,गुलाल ,नीले ,पीले बिखरे हैं रंग
..
बगिया सूनी लगे बिना फूलों के.जैसे
अधूरी है होली बिना गाली के वैसे
..
प्यार से भरी गाली ने किया वोह कमाल
हुए गोरे गोरे गाल लाल बिना गुलाल
..
 मौसम  फूल गुलाबों का बगिया बहार पे
कुहक रही कोयलिया ,अंबुआ की डाल पे
..
हो के बदरंग आज  रंगों  में लुभा  रहे
होली में थिरक रहें सभी हर्षौल्लास से 

रेखा जोशी 

Tuesday 19 March 2024

आधार छंद गीतिका

1.
आधार छंद गीतिका 
2122 2122 2122 212

ऋतु सुहानी आ गई खिलती बहारें वादियाँ 
फूल उपवन खिल उठे फूलों भरी हैँ डालियाँ
गुनगुनाते साथ भौरे गीत कोयल गा रही 
मुस्कुराती आज बगिया खिलखिलाती तितलियाँ
2.
आधार छंद- गीतिका
विधान- 212 2 2 12 2 2122 212

आज अपनों से हमें वादा निभाना है यहां
साथ रह कर जिन्दगी में मुस्कुराना है यहां
जिन्दगी रूके नहीं है चार दिन की चाँदनी 
तोड़ के बंधन हमें सब छोड़ जाना है यहां

रेखा जोशी


Saturday 16 March 2024

गीतिका

गीतिका "लावणी छंद "

बसंत आया मधुरस छाया ,धरा पर मुस्कुराते दिन
अम्बुआ डार कोयल कुहकी , बाग में गुनगुनाते दिन
..
है महक रहे बाग बगीचे, बिखरी खुशबू यहाँ वहाँ 
इधर उधर नाचती तितलियाँ ,है उपवन महकाते दिन 
..
शीतल मदमस्त पवन बहती, है सहरा जाती तन मन
उड़ रही चुनरिया गोरी की, अंग अंग सहलाते दिन
..
रंग चुरा तितली फूलों का, कर रही सिंगार अपना,
पुष्प हवा संग लहरा रहे,फूलों को भी भाते दिन
..
 गुलाबी मौसम ऋतुराज का, पीली चहुँ ओर बहारें
खेत खलिहान पीले पीले, रंग पीला लुभाते दिन 

रेखा जोशी



Wednesday 13 March 2024

उड़ते पंछी नील गगन पर

छंदमुक्त रचना 

उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान
.
दल बना उड़ते मिल कर 
संगी साथी 
देते इक दूजे का साथ
चहक चहक खुशियाँ बांटे
गीत मधुर स्वर में गाते
उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान
..
भरोसा है अपने
पंखों पर
नहीं मानते हार कभी 
हौंसलों में है इनके जान
थकते नहीं रुकते नहीं
लड़ते आँधियों तूफानों से
हैं मंज़िल अपनी पा लेते 
उड़ते पंछी
नील गगन पर
उन्मुक्त इनकी उड़ान

रेखा जोशी



Monday 11 March 2024

मुक्तक

जय शिव शंकर भोलेनाथ दुख हरता
दर्द का  सागर  प्रतिदिन जाता भरता
हलाहल पीना तुम मुझे भी सिखा दो
कर जोड़  अपने  प्रार्थना  प्रभु करता
..
सारथी पार्थ के , गीता पाठ समझाया
राधा के साँवरे, था प्रेमरस छलकाया   
कान्हा के रंग में, रास रचाती गोपियाँ
नतमस्तक धनंजय,विराट रूप दिखलाया

रेखा जोशी 

Saturday 9 March 2024

ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने


आधार छंद- गीतिका 

2122 2122 2122 212

ज़िन्दगी का अर्थ हमको है सिखाया आपने 
दिल हमारे आस का दीपक जगाया आपने
..
ज़िन्दगी की  ठोकरों से टूट थे हम तो गए
फिर नया इक जोश सा हमको दिलाया आपने
..
मुस्कुराना ज़िन्दगी में भूल हम तो थे गए
आज जीवन की ख़ुशी से फिर मिलाया आपने
..
भर दिए वो ज़ख्म सारे जो दिए थे ज़िन्दगी 
प्यार में हमको पिया अपना बनाया आपने
..
फूल मुरझाये कभी थे प्यार के उपवन पिया
प्यार की बरसात ने उनको खिलाया आपने

रेखा जोशी 











Thursday 7 March 2024

जय महाकाल

हे शिव शम्भू
जय महाकाल 
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि 
..
जगत के हों पालनहार
शीश झुकाएं  तेरे द्वार 
और नहीं कुछ चाहिए 
तुम्हीं तो हो तारणहार 
नाम लेकर तेरा
हुई धन्य मैं, त्रिपुरारि
..
डम डम डम
जब डमरू बाजे
ताल पर इसकी हर कोई नाचे
सर्प हार गले पर साजे
शशिधरण का रूप निराला
आई शंभू मैं तेरे द्वार
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि
..
गरल पान करने वाले
दुखियों के दुख हरने वाले
भोले बाबा,भोले भण्डारी
कृपा करो कृपानिधान 
पाकर  आशीष  तेरा
हुई धन्य मैं,त्रिपुरारि 
..
हे शिव शम्भू
जय महाकाल 
पा कर सान्निध्य तेरा 
हुई धन्य मैं त्रिपुरारि 
..
 रेखा  जोशी 









रिसते ज़ख्म

रिस रहे  हैं ज़ख्म दिल में,
पर टूटा तो नहीं दिल अब तक मेराl 
जी रही हूँ असहनीय पीड़ा के साथ,
लेकिन न जाने क्यों,
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी. अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

तुम आओगे फिर से बहार बन,
जिंदगी में मेरीl
थाम लोगे मुझे गिरने से तुम ll
लगा दोगे मलहम अपने हाथों से,
मेरे रिसते जख्मों परl
भर दोगे खुशियाँ फिर से मेरे जीवन में तुमll
काश आ जाओ प्रियतम,
कर दो मेरी बगिया गुलज़ार फिर सेl 
आस और उम्मीद संजोये हूँ बैठी,
अभी भी अपना दामन फैलाये 
इंतज़ार में तुम्हारीll

रेखा जोशी 





Wednesday 6 March 2024

दर्द का कोई धर्म नहीं होता



छंद मुक्त रचना 

हाँ होता है दर्द सबको जब लगती है चोट,
चोटिल हो पशु पक्षी भी कराहते हैं दर्द से,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

लिया है जन्म जिसने इस धरा पे,
बहता है खून जिसकी भी रगों में,
तड़पता  है दर्द से  हर जीवधारी,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

है कर सकता इंसान बयाँ,
अपने तन मन के दर्द को l
लेकिन उन मूक प्राणियों का क्या,
सुनी है कराह कभी उनके दर्द की,
देखे है आंसू क्या , बयाँ करते जो पीड़ा उनकी l
मासूम सहते पीड़ा चुपचाप
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता

रेखा जोशी