Tuesday 27 February 2018

है मौन बहती
सरिता गहरी
उदण्ड बहते निर्झर
झर झर झर झर
करते भंग मौन
पर्वत पर
उछल उछल कर
शोर मचाये
अधजल गगरी छलकत जाये

ज्ञानी रहते मौन
यहाँ पर
ज्ञान बाँचते
पोंगें पंडित
कुहक कुहक कर
रसीले मधुर गीत
कोयलिया गाये
पंचम सुर में
कागा बोले
राग अपना ही
अलापता जाये
अधजल गगरी छलकत जाये

मिलेंगे यहाँ
हज़ारों इंसान
आधा अधूरा  ज्ञान लिये
गुण अपने करते बखान
कौन इन्हे अब समझाये 
अधजल गगरी छलकत जाये

रेखा जोशी

Monday 26 February 2018

श्मशान

चार कंधो पर सवार
फिर आया कोई
श्मशान
उठ रही लपटें बनती राख
चिता पर आज फिर सोया कोई
देखते श्मशान में हर रोज़
सुंदर रूप सत्य का
फिर भी
भेद  इसका न जान  पाया  कोई
राजा रंक अंत सबका एक समान
तन माटी का माटी में मिल जाना
इक दिन
है सत्य श्मशान
माटी के पुलते सत्य को पहचान
हो जाता है जीवन अर्पण
इक दिन
श्मशान के नाम

रेखा जोशी

Saturday 24 February 2018

त्रिवेणी

त्रिवेणी

ऋतुराज  बसंत ने  जादू बिखेरा
महकने   लगा घर  बाहर अंगना

इक झोंका पिया को छू कर आया
.

गुलाबी धूप गुलाबी हवाएँ
पीली पीली सरसों लहराए

बिन पिया सब सूना सूना

रेखा जोशी

Wednesday 21 February 2018

हर्ष में खिलता हुआ प्यार यह ज़िंदगी


माना दर्द भरा संसार यह ज़िंदगी
लेकिन फिर भी है दमदार यह ज़िंदगी
,
आंसू  बहते  कहीं  मनाते जश्न  यहां
सुख दुख देती हमें अपार यह ज़िंदगी
,
रूप जीवन का बदल रहा पल पल यहां
लेकर नव रूप करे सिंगार यह जिंदगी
,
ढलती शाम डूबे सूरज नित धरा पर
आगमन भोर का आधार यह ज़िंदगी
,
चाहे मिले ग़म खुशियां मिली है हज़ार
हर्ष में खिलता हुआ प्यार यह ज़िंदगी

रेखा जोशी

Monday 19 February 2018

शोषित हो रही नारी जाग मानो न अपनी हार

शोषित हो रही नारी जाग मानो न अपनी हार
आवाज़ उठा खिलाफ जुल्म के है तेरा अधिकार
,
मनुष्य रुप में छिपे भेड़िये कर पहचान उनकी
बनने पाये न  फिर से यहाँ कोई बाला शिकार
,
होती थी  पूजा  नारी की कभी  अपने  देश में
न जाने क्यों बढ़ रहा है अब भारत में व्यभिचार
,
शिक्षित बच्चें हो ऐसे देश में मिले संस्कार अच्छे
आने  न  पाये  भूल से  मन  में कोई  दुर्विचार
,
है  बहुत  सहे  जुल्म  नारी  ने अपने  ही देश में
नारी की व्‍यथा को हमें अब  करना है स्वीकार

रेखा जोशी

,

Saturday 17 February 2018

मुक्तक


मुक्तक 1

पुष्पित उपवन ने ,महकाया है आंगन,  अम्बुआ की डार पर,कुहके कोयलिया 
है छाई बहार यहाँ,दामन भर ले ख़ुशी,मौसम का है इशारा,साजन तड़पे जिया  
मचलती कामनाएँ , ज़मीन से आसमान ,पुकारे अब बहारे,  दिल के तार छिड़े 
खिला खिला रूप तेरा,ह्रदय मेरा लुभाये,आजा सजन अँगना,जिया धड़के पिया 
,
मुक्तक 2

शीतल चली हवाएँ मौसम प्यार का
गीत  गाते  भँवरे  मौसम  बहार  का
आजा  साँवरिया  दिल तुमको पुकारे
अरमां  मचलते  मौसम  इंतज़ार का

रेखा जोशी 

Friday 16 February 2018


जीवन में  हम  तुम  रहेंगे  संग संग
हाथ  में   ले  हाथ  चलेंगे  संग संग
हो जन्म जन्म  के  साथी  तुम हमारे
जियें और  मरें गे हम तुम संग संग

रेखा जोशी 

खुशी से खिल जायेंगे कमल

फिर  एक  दिन ऐसा आयेगा
खुशियाँ  घर   में बिखरायेगा
,
खुशी से खिल जायेंगे कमल
मेरा     सजन    मुस्कुरायेगा
,
सज जायेगा फिर सारा जहां
फूल उपवन खिलखिलायेगा
,
अब रोको न तुम उमंगों को
अंबर    भी   नैन   चुरायेगा
,
कागज़ कश्ती का खेल फिर से
बचपन की  याद दिलायेगा

रेखा जोशी

Tuesday 13 February 2018

बाइस्कोप

बाइस्कोप

आज रितु ने अपने पति सोनू एवं बच्चों टीनू और रिंकू संग खूब मज़े किए, मेले में बच्चों के लिए खिलौने खरीदे और अपने लिए सुंदर रंग बिरंगी चूड़ियाँ ली, चलते चलते सब काफी थक गए थे, तभी सोनू ने बच्चों को बाइस्कोप दिखाया, "यह क्या है रिंकू ने पूछा" l, "बेटा इसे बाइस्कोप कहते हैं, जब मै छोटा था तो इसमें पिक्चर देखा करता था, बहुत मज़ा आता था, चलो आज फिर से इसमें पिक्चर देखते हैं," सोनू अपने दोनों बच्चों के साथ  बाइस्कोप के अंदर की तसवीरें देखने लगा l बच्चों की तरह सोनू भी जोर जोर से ताली बजा रहा था l पिक्चर खत्म होने के बाद रितु ने अपने पति की ओर देखा, उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी, बिल्कुल टीनू की आंखों की तरह, बाइस्कोप देख  सोनू के चेहरे पर एक खूबसूरत बच्चा झाँक रहा था l

रेखा जोशी

Friday 9 February 2018

ताल सरोवर तैर रही रंग बिरंगी मीन


ताल सरोवर तैर रही रंग बिरंगी मीन
इक दूजे संग प्रेम पूर्वक खेलती मीन
कपटी बगुला आँखें मूँदे खड़ा एक टाँग
बैठा धूर्त साधू बना समझ न सकी मीन
,
जब तक तन में प्राण यहां साथ है निभाना
छोड़  कर  संसार  नहीं लौट कर  है आना
रहना  सदा  प्रेम  से  दो दिन का जीवन ये
फिर  मोह  माया  के  बंधन  तोड़  है जाना

रेखा जोशी

Thursday 8 February 2018

आया बसंत मनभावन

चोका

[57575757577=67वर्ण ]

बहार छाई
मदमस्त पवन 
खुशियाँ लाई
आंगन महकता t
गुंजित भौरा 
अंगना मेरे आलि 
नाचे छबीली
अब आया बसंत
मनभावन
बगिया गुलज़ार 
छलकता खुमार 

रेखा जोशी 

टेढ़ी दुनिया टेढ़ी राहें टेढ़ी यहां चाल है

टेढ़ी दुनिया टेढ़ी राहें टेढ़ी यहां चाल है
किसको सुनाएँ हाल अपना यहां सब बेहाल है
,
पैसे का वोह रोब दिखाते चलें अकड़ अकड़ कर
बैंकों में  धन  बहुत लेकिन दिल उनका कंगाल है
,
संत और फकीर मिलते बहुत हैं यहां पग पग पर
भोले भाले लोगों को लूट  हुए मालामाल है
,
झूठे फरेबी धोखेबाज़ों से रहना बच के तुम
संभलना यहां बन जाते ये जी का जंजाल है
,
घोटाले  यहां  पनप रहे  जेबें अपनी भर रहे
धूल झोंकें ये आँखों में बुनते रहते जाल है

रेखा जोशी
         

Wednesday 7 February 2018

है जब तक इस जीवन में सांस

टूटी   नहीं  ज़िन्दगी  से  आस
है जब तक इस जीवन में सांस
तन  से गर  लाचार  हैं  तो क्या
हमें  खुद  अपने पर है  विश्वास

रेखा जोशी

बगिया में फूलों को मुस्कुराते देखा


बगिया  में फूलों को मुस्कुराते  देखा
भँवरों को भी गुन गुन गुनगुनाते देखा
,
कुहुक रही  कोयलिया यहाँ डार डार
तितली  को  भी उत्सव  मनाते  देखा
,
छाई  बहार भर लो आंचल में खुशी
मुस्कुराती   उमंगों   को   गाते  देखा
,
छिड़े   दिल  के  तार  पुकारती बहारें
दिल की धड़कन को खिलखिलाते देखा
,
नाच रही सखियाँ झूम झूम अंगना
मस्ती   में   झूमते   लहराते   देखा

रेखा जोशी

    

Monday 5 February 2018

मुक्तक

हाल दिल का किसी से कहा नहीं जाता
बिना बताये  भी  अब  रहा  नहीं  जाता
कब  तक  उठाएँ गे हम बोझ जीवन का
दर्द  अब  और  हमसे  सहा  नहीं जाता

रेखा जोशी

Friday 2 February 2018

फूल  देख भँवरे को गुनगुनाना आ गया

फूल  देख भँवरे को गुनगुनाना आ गया
महफिल  में तेरी  यहाँ  दीवाना आ गया
जलने की परवाह नहीं पगला  है वह तो
शमा पर मर मिटने को परवाना आ गया

रेखा जोशी

Thursday 1 February 2018

तुम मिले ज़िन्दगी को सहारा मिला

गीतिका

तुम मिले ज़िन्दगी को सहारा मिला
डूबती नाव को  इक किनारा मिला
,
साथ तेरा मिला हर खुशी है मिली
अब  हमें  खूबसूरत  नज़ारा मिला
,
आ  गए  ज़िन्दगी में हमारी सजन
आपका साथ रब का इशारा मिला
,
साथ  तकदीर  ने  है दिया ज़िन्दगी
प्यार हमको पिया अब हमारा मिला
,
थी  अँधेरी  पिया  रात  काली बहुत
दूर  अंबर सजन इक सितारा मिला

रेखा जोशी

ग़ज़ल

प्यार तुमसे है किया हमने निभाने के लिए
छोड़ हमको क्यों गए तुम दिल दुखाने के लिए
,
रात रोती रह गई है चाँद खोया आसमां
इक सितारा है चमकता ग़म भुलाने के लिए
,
चाहतें रूठी हमारी आस भी कोई नहीं
जिंदगी है बोझ अपना अब उठाने के लिए
,
जिंदगी से दर्द ही हमको मिले किससे कहें
और मत लो इम्तिहाँ अब आज़माने के लिए
,
खूबसूरत ये नज़ारे अब बुलाते हैं हमें
गर न आओ तुम यहां  है  दिल जलाने के लिए
,
देखते हैं रात भर हम ख्वाब तेरे जिंदगी
गीत लब पर आ गए हैं गुनगुनाने के लिए
,
आरज़ूएँ हज़ार रखते हैं जिंदगी से हम
आज फिर उड़ने  लगे है मुस्कुराने के लिए

रेखा जोशी

पतझड़

ओ पिया भूल गए
क्यों अपना अंगना
जानें कहाँ
चले गए तुम
रूठ कर हमसे
हुआ जीवन
अब पतझड़ बिन तेरे
जानें कैसी चली हवा
टूट कर डाली से
बिखर गए सभी पत्ते
यहाँ वहाँ
था कभी जो हरा भरा
अपना अंगना
सूना सूना सा लगे अब
बिन तेरे
आ भी जाओ पिया
बन के बहार
जीवन में हमारे
पुकारे तुम्हें हम
बिन तेरे
ओ पिया
लागे न जिया

रेखा जोशी