शोषित हो रही नारी जाग मानो न अपनी हार
आवाज़ उठा खिलाफ जुल्म के है तेरा अधिकार
,
मनुष्य रुप में छिपे भेड़िये कर पहचान उनकी
बनने पाये न फिर से यहाँ कोई बाला शिकार
,
होती थी पूजा नारी की कभी अपने देश में
न जाने क्यों बढ़ रहा है अब भारत में व्यभिचार
,
शिक्षित बच्चें हो ऐसे देश में मिले संस्कार अच्छे
आने न पाये भूल से मन में कोई दुर्विचार
,
है बहुत सहे जुल्म नारी ने अपने ही देश में
नारी की व्यथा को हमें अब करना है स्वीकार
रेखा जोशी
,
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