Wednesday 31 December 2014

हाथ थामा हमने रहेंगे साथ उम्र भर

अपना तुम्हे हम बनायेंगे  देख लेना
वफ़ा का दीपक  जलायेंगे देख लेना
हाथ थामा  हमने रहेंगे साथ उम्र भर
वादा  किया  है  निभायेंगे  देख लेना

रेखा जोशी

Sunday 28 December 2014

बूँद बन नैनो से मैने गिरा दिया अब तुम्हे

 खो गई 
दूर कहीं कल्पनायें मेरी 
धुंधला गई 

अब यादें तेरी 
मायूस हूँ इस कदर 
नही चाहता 

अपने ख्यालों में 
अब तुम्हे 
बूँद बन नैनो से मैने 

गिरा दिया  तुम्हे 
काबिल नहीं तुम 
प्यार के 
सोच समझ कर

कर लिया विचार 
नही चाहता 
अपने जीवन में 
अब तुम्हे 

रेखा जोशी 

ढूँढ़ लो तुम सुनहरे वो पंख

जो बीत गया  उसे भूल जा
पग चूमती नव उषाकिरण
ढूँढ़ लो तुम सुनहरे वो पंख
छू लो ऊँचे आसमां को तुम

  रेखा जोशी 

Saturday 27 December 2014

ढल गया दिन अब शाम हो गई है

ढल गया दिन अब शाम हो गई है
हसरते  सब  नाकाम   हो  गई  है
गुज़ार   दी   जिंदगी   यूहीं  हमने
ख़ास थी  जो  अब आम हो गई है

रेखा जोशी 

हैप्पी न्यू ईयर

क्षणिका

लो आ गया
फिर
शोर मचाता नव वर्ष
है करते नमस्कार
सब चढ़ते सूरज को
हैप्पी न्यू ईयर
इक दूजे को कहते
और
खुशियाँ मनाते सब लोग
दो भुला
जो बीत गया
छिपी जिसमे भी
थी एक कहानी
हमारी

रेखा जोशी 

Friday 26 December 2014

मंगलमय /वर्ष नूतन आया /खुशियाँ लाया


मंगलमय /वर्ष नूतन आया /खुशियाँ  लाया
बढ़ता  प्यार /आपस में सबका /मन हर्षाया
रहें खिलता /उपवन  हमारा /भाये  महक
करें प्रार्थना /पूरी चाहते सब /शीश झुकाया

रेखा जोशी 

दुखायें न किसी का दिल लो थाम रहें हाथ


सभी आज मनाये मिल जुल के  हम त्योंहार 
सभी  आज करें अब  मिल  सपने हम साकार 
दुखायें  न  किसी  का  दिल लो  थाम रहें हाथ 
सभी  आज  भुला  दर्द तड़प   दें  हम  उपहार 

रेखा जोशी 

Wednesday 24 December 2014

सजे क्रिसमस के पेड़ रंगीन सितारों से

''Merry Christmas'' to all friends

सांताक्लाज   आया   सांताक्लाज   आया
रंग     बिरंगे    खूबसूरत    उपहार    लाया
सजे   क्रिसमस  के  पेड़  रंगीन  सितारों  से
हर्षोल्लास साथ यीशु का जन्मदिन  मनाया 

रेखा जोशी 

Tuesday 23 December 2014

कालिया मर्दन

गोकुल में 
यमुना के तट पर 
नटखट नंदलाला 
ग्वालों के संग 
गेंद खेलत गोपाला 
आगे आगे गेंद 
भागे पीछे ग्वाले 
फेंकी गेंद यमुना में 
छवि नाग की देख 
कूद पड़े फिर यमुना में 
मनमोहन  कन्हैया
जा पहुंचे पाताल में
कालिया था जहाँ सोया 
घमासान हुआ 
फिर जल के भीतर
कालिया ने भरी जब फुंकार
काली हो गई यमुना 
रंग हुआ सांवला 
कान्हा श्याम कहलाये
मर्दन कर कालिया का
वापिस गेंद लाये
बंसी की मधुर धुन पर
हुआ चमत्कार
कान्हा का हुआ जयजयकार
पावन हो गई यमुना

रेखा जोशी 




सिलसिला मेरा तुम्हारा

आओ प्यार भरी
बाते करें
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें 
पर मेरी तुम कहाँ सुनोगे 
सुनती आई सदियों से 
मै तुम्हे 
बन परछाई चलती रही 
पीछे पीछे 
और 
शायद चलती रहूँ गी 
सदियों तक 
यूं ही रहेगा चलता
यह प्यार भरा 
सिलसिला 
मेरा तुम्हारा 

रेखा जोशी 

फैलाओ तुम पँख [ ताँका ]

पथ कठिन 
फैलाओ तुम पँख 
लम्बी उड़ान
नही मानना हार
है मन में विश्वास

रेखा जोशी 

बीती बातो को अब भुला भी दो जानम

रूठे  हो तुम  मनाना  तुम्हे  जानते  है
प्यार करते हो सनम  हमसे  जानते है
बीती बातो को अब भुला भी दो जानम
माफ़ तुम अब कर दोगे हमे  जानते है

रेखा जोशी 

Sunday 21 December 2014

खूबसूरत [लघु कथा ]

शन्नो की सगी बहन मन्नु लेकिन शक्ल सूरत में जमीन आसमान का अंतर ,शन्नो गोरी तो मन्नु साँवली ,शन्नो खूबसूरत तो मन्नु बदसूरत ,बेचारी मन्नु  को अपने  रंग रूप के कारण जहाँ अपने माता पिता की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था वहीँ उनके माता पिता  हर काम के लिए शन्नो से ही अपेक्षा करते थे |शन्नो  को अपनी सुंदरता का बहुत अभिमान था और  मन्नु नम्र स्वभाव की थी । एक दिन दुर्भाग्यवश उनकी माँ  बहुत बीमार पड़ गई ,मन्नु ने  शालीनता से माँ की सेवा के साथ साथ घर का बोझ भी अपने कंधों पर ले लिया जबकि उसकी नकचढ़ी बहन किसी भी काम में उसका हाथ नही बंटाती थी |धीरे धीरे मन्नु की मेहनत रंग ले आई और उसकी माँ के स्वास्थ्य में सुधार होना शुरू हो गया,अपनी बेटी को  इतना काम करते देख उसके माँ बाप की आँखों में आँसू  आ गये ,उन्होंने उसे गले लगा लिया ,वह जान चुके थे असली खूबसूरती तो मन की होती है |

रेखा जोशी 

गाते मधुर गीत पेड़ पौधे

संग संग पवन के 
गाते मधुर गीत पेड़ पौधे 
गूँज  उठते उपवन में 
तराने कुहकती कोयल के 
आज टूट रहे तार 
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार 
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे 
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे ,

रेखा जोशी 

Saturday 20 December 2014

आशा के दीप की कभी किरणे न बंद कीजिये

देख   मुश्किलें  जीवन  में  आँखे  न बंद कीजिये
चहुँ  ओर  से  आप  अपनी   राहें  न बंद कीजिये
विश्वास अगर खुद पर तुम्हे जगमगायेंगे रास्ते
आशा  के  दीप   की कभी किरणे न बंद कीजिये

रेखा जोशी

संतुष्टि [कहानी ]

सुशीला गुप्ता ,अपने प्रोफेसर पति गुप्ताजी और अपने दोनों बेटों नीरज और सौरभ के साथ पंजाब के जालन्धर शहर में अपने छोटे से घर में बहुत खुश थी |हर रोज़ सुबह नहा धो कर ईश्वर की पूजा आराधना कर वह उस परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करती और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करती |उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा ,जब नीरज को इंजीनियरिंग करने के बाद एक अच्छी कम्पनी में नौकरी मिल गई और सौरभ को मेडिकल कालेज में दाखिला मिल गया |उसने और उसके पति प्रोफेसर गुप्ता जी ने मिल कर अपने दोनों बेटों की अच्छी परवरिश की थी और उसी का यह फल था जो आज उसका परिवार सफलता की सीढीयाँ चढ़ रहा था ,लेकिन कब अनहोनी ने दबे पाँव उसकी जिंदगी में दस्तक दे दी ,जिसकी कभी उसने कल्पना तक नही की थी |अंग्रेजी लिटरेचर के प्रोफेसर गुप्ता जी का दीवाना दिल उनकी ही एक क्रिश्चयन छात्रा तारा पर आ गया ,उनके बीच की दूरियाँ कब नजदीकियों में बदल गई ,किसी को भी इसकी भनक तक नही पड़ी |जिस दिन दोनों ने चर्च में जा कर शादी कर ली ,तब यह खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई और उड़ते उड़ते सुशीला और उसके बेटों के कानो में पड़ी | क्रोध के मारे नीरज और सौरभ का खून खौल उठा और सुशीला पर तो जैसे बिजली गिर पड़ी ,उस दिन उसे पहली बार अपनी हार का अहसास हुआ और उस क्रिश्चयन लड़की की जीत का ,जो न जाने क्यों और कहाँ से उसकी जिंदगी बर्बाद करने ,उसके और गुप्ता जी के बीच आ गई थी | 
सुशीला ,नीरज और सौरभ सहित उनके रिश्तेदारों ने प्रोफेसर साहब को बहुत समझाने की कोशिश की ,लेकिन सब बेकार ,गुप्ता जी तारा के इश्क में इस कदर पागल हो चुके थे कि उन्होंने घर छोड़ दिया ,परन्तु उसका साथ नही छोड़ा और उस दिन के बाद से गुप्ता जी गुप्तारा के नाम से मशहूर हो गए | सुशीला अपनी नीरस जिंदगी में सदा पराजय की भावना लिए अपने बच्चों के साथ ,उनकी ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी ढूंढने की कोशिश में लगी रहती लेकिन उसके मन के किसी कोने में सदा अपने प्यार के छिन  जाने की कसक असहनीय पीड़ा देती रहती थी ,वह अपने पति की बेवफाई को  भूल नही पा रही थी,आक्रोश की एक चिंगारी हमेशा उसे भीतर से कटोचती रहती थी।  उधर अधेड़ उम्र के गुप्ता जी को भी तारा का साथ ज्यादा दिन नसीब न हो सका और एक दिन दिल का दौरा पड़ने पर वह इस दुनिया को छोड़ कर उपर चले गए |तारा के सारे रिश्तेदार ,दोस्त उसके पार्थिव शरीर को दफ़नाने की तैयारी में जुट गए |
कई बार इंसान अपनी आत्म तुष्टि के लिए पता नही किस सीमा तक पहुंच जाता है जिसके कारण आत्मग्लानि के भरे हुए अपराधबोध के साथ  सारी  ज़िंदगी तड़पता रहता है ,ऐसा की कुछ सुशीला के साथ हुआ  ,जैसे ही उसे अपने पति की मौत का पता चला तो वह भी अपने रिश्तेदारों को इकट्ठा कर गुप्ता जी के पार्थिव शरीर को लेने वहां पहुँच गई ,और हिन्दू धर्म की दुहाई देते हुए गुप्ता जी के पार्थिव  शरीर पर अपना हक़ जताने लगी । सबने मिल कर  तारा एवं उसके रिश्तेदारों को समझाया  कि गुप्ता जी के अंतिम संस्कार करने का अधिकार केवल उसके बड़े बेटे नीरज का ही है |गुप्ताजी के पार्थिव शरीर को ले कर पादरियों और पंडितों के बीच ज़ोरदार बहस छिड़ गई ,ईसाई दफनाना चाहते थे और हिन्दू उनके पार्थिव शरीर को जलाना चाहते थे |आख़िरकार फैसला हो गया ,पहले गुप्तारा को ताबूत में डाल कर ईसाई धर्म के अनुसार दफनाया गया फिर ताबूत को मिटटी से खोद कर बाहर निकाला गया ,उसके बाद गुप्ता जी के पार्थिव शरीर को श्मशानघाट ले जाया गया और उनके बेटे नीरज ने अपने पिता की चिता को अग्नि दे कर बेटे होने का कर्तव्य निभाया |आँखों में आंसू लिए जलती चिता की ओर लगातार निहारते हुए सुशीला को मन ही मन अपनी जीत पर गर्व हो रहा था,आज उसकी आत्मा अपना कर्तव्य निभा कर पूर्ण रूप से संतुष्ट थी । 

रेखा जोशी 

Friday 19 December 2014

हाइकु

हाइकु

नैन सजल
नयनों  में सजन
निहारें पथ
.............
साँसों की डोर
सजन संग बाँधी
साँझ सवेरे
…………
मनमोहन
मनोहर गोकुल
मुरलीधर
.............
चाँदनी  रात
चंचल चितवन
चकोरी मग्न

रेखा जोशी 

Thursday 18 December 2014

फल मिलता कर्मो का काहे करे पछतावा

जीवन के दिन चार यह दुनिया एक छलावा
मुखौटा लगा कर कपटी  करना  न  दिखावा 
जैसा   तुम   करोगे    वैसा   ही  तो    भरोगे 
फल मिलता  कर्मो  का  काहे करे   पछतावा

रेखा जोशी 

सजन जब प्यार में पाई वफ़ा हमने


कभी तो  हम  मिलेंगे ज़िन्दगी तुमसे
कहीं तो तुम मिलोगी  ज़िन्दगी  हमसे
 सजन जब  प्यार में पाई  वफ़ा  हमने
गिला शिकवा न कोई  ज़िन्दगी तुमसे

रेखा जोशी 

Wednesday 17 December 2014

चल पड़े हम साथ साथ

देख हमे
जब तुम  मुस्कुराये
आँखों आँखों में
बात हुई
न कुछ हमने कहा
न कुछ तुमने कहा
हलचल सी
हमारे दिल में हुई
थामा हमने
इक दूजे का
हाथों ने हाथ
चल पड़े
हम
साथ साथ

रेखा जोशी 

लिपटे है देखो अब कफन में


गए थे सुबह 
स्कूल यूनिफार्म में 
लिपटे है देखो 
अब कफन में 
बुझ गए 
चिराग 
घरों के जिनके 
घुप अंधेरों में कटेगी 
अब ज़िंदगी 
उनकी 
पत्थर दिल जिनके 
माँ की ममता 
वह 
क्या जानें 

रेखा जोशी 







जिया खिल खिल जाये ,लहराती जाये चुनरी

बदरी गरजे गगन में , घिरी घटा घनघोर 
रास रचा दामिनी से ,मचा रही है शोर 
मचा रही है शोर ,धड़काये है वो जिया
नाच रहे है मोर ,घर आये मोरे  पिया
जिया  खिल खिल जाये   ,लहराती जाये चुनरी  
भिगोये तन मोरा ,नभ से बरसती बदरी 

रेखा जोशी 

Tuesday 16 December 2014

खत्म कर दिये घरों के चिराग

दर्द का एहसास वो क्या जाने
पत्थर सीने में वो क्या जाने
खत्म कर दिये घरों के चिराग 
बरस रहे आँसू वो क्या जाने
रेखा जोशी

मचलता है यह तो तेरी इक झलक के लिये

मेरी वफ़ा का यह दिल इकरार चाहता है 
जीवन  में सदा यह तेरा  प्यार चाहता है 
मचलता है यह तो तेरी इक झलक के लिये 
पगला दिल सजन  तेरा दीदार चाहता है 

रेखा जोशी 

Sunday 14 December 2014

लहराया आंचल जब निशा ने

शाम ढली छुपने लगे  नज़ारे
टिमटिमाने  लगे नभ में  तारे
लहराया आंचल जब निशा ने
जगमगाने  लगे  चाँद सितारे

रेखा जोशी 

Saturday 13 December 2014

तुम जो मिल गये मिल गया सारा जहान

चाहा जाम  हमने सागर पा लिया  है
माँग  तुम्हे  हमने  ईश्वर  पा लिया है
तुम जो मिल गये मिल गया सारा जहान 
ज़मीं के साथ साथ अम्बर पा लिया है

रेखा जोशी 

छोड़ जाते है वह वक्त की धारा को भी पीछे

वह अपने हाथों की लकीरो को बदल देते है 
जो मेहनत को ही अपना नसीब बना लेते है 
छोड़ जाते है वह वक्त की धारा को भी पीछे 
वैभव और समृद्धि उनके अंक में खेलते है 

रेखा जोशी 

ज़िंदगी भर तुम्हारा इंतज़ार कर लूँगा

मै  मुहब्बत  का तुमसे इकरार कर लूँगा
फूल  राह में  बिछा कर इज़हार कर लूँगा
आ कर महका दो मेरे जीवन की बगिया
ज़िंदगी भर  तुम्हारा  इंतज़ार कर  लूँगा

रेखा जोशी 

रूठने और मनाने का यह दौर यूँही चलता रहे

शिकवे और शिकायतों का यह दौर यूँही चलता रहे 

रूठने और मनाने का यह दौर यूँही चलता रहे 

ज़िन्दगी और कुछ भी नही है तेरी मुहब्बत के सिवा 

हम दोनों के बीच का यह सिलसिला यूँही चलता रहे 

रेखा जोशी

Friday 12 December 2014

मत खेलो तुम मेरे जज़्बातों से

मत खेलो तुम
मेरे जज़्बातों से
नही समझ सकते
इस दिल की
पीड़ा तुम
तो
क्यों कुरेद रहे हो
सुलगते अरमानो को
सिसकती आहों से
हो गई
धुआँ धुआँ
ज़िंदगी मेरी
कैसे आती
मुस्कुराहट
होंठों पर तुम्हारे
समझ गई
शायद
मेरी यह तड़प
है तुम्हारी
ज़िंदगी

रेखा जोशी

रूकती नही कभी भी ज़िंदगी किसी के बिना

टूट जाता है दिल सिर्फ दर्द ही अपने हुए  

ज़िंदगी में जब भी कभी अपने पराये हुए 

रूकती नही कभी भी ज़िंदगी किसी के बिना

प्रेम से अपना लो तो पराये भी अपने हुए 


रेखा जोशी 

धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है

गीतिका

पुष्प को बगिया में खिलने की आस है
बसंत  भी तो पतझड़  के  आस पास है

बगिया वीरान है बिन तेरेअब सजन
धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है

अँगना  तेरे मुस्कुराये गी धूप भी
खिलखिलाते  फूल भी तो आस पास है

पोंछ ले आँसू आँखों से तुम अपने 
बहार फूलो की भी तो  आस पास है

न उदास हो अब तो ज़िंदगी तू मुझसे
गुनगुनाती खुशियाँ यहॉँ आस पास है

रेखा जोशी

Thursday 11 December 2014

"ऊँची दुकान फीका पकवान"

लिये भर 
अब अपने घर 
मोटा 
हो गया पेट 
लद  गये 
घोटालों  से 
जेब में डाल भ्रष्टाचार 
घूम रहे 
लाल बत्ती लगाये 
लम्बी चमकती 
इनकी कार 
सेवक यह जनता के 
अनोखी इनकी शान 
बेईमान इन लोगों की 
दिखती ऊँची दुकान 
लेकिन 
यह परोस रहे 
भोली भाली जनता को
फीका पकवान 

रेखा जोशी 




राह में हम चले पकड़ हाथ अब


प्यार  तेरा  बलम  हमे  मिल  गया 
तुम मिले तो सजन  हमे मिल गया 
राह  में  हम   चले  पकड़  हाथ अब 
साथ  तेरा  सनम  हमे  मिल   गया 

रेखा जोशी 

Wednesday 10 December 2014

सेदोका

नीला अंबर
घिरी काली घटायें
बरसता सावन
इन्द्रधनुष
चमकती बिजली
बरखा रिमझिम

रेखा जोशी 

फिसल जायेगा रेत का महल हाथ से

धरती और गगन कभी मिल नही सकते
फूल  पत्थरों  में  कभी खिल नही सकते
फिसल जायेगा  रेत  का  महल  हाथ से
ख्याली  पुलाव हकीकत बन नही सकते

रेखा जोशी 

Tuesday 9 December 2014

बस इक नज़र प्यार से देखो तुम इधर

लाख इलज़ाम हम पर लगा लो तुम मगर 
रिश्ता ए मुहब्ब्त को समझ सको तुम गर 
कहते सुनते ही बीत न जाये ज़िंदगी 
बस इक नज़र  प्यार से देखो तुम इधर

रेखा जोशी

दिल के जज़्बात अब कहें किससे

न कोई  शिकवा न शिकायत तुमसे
 दिल के  जज़्बात  अब  कहें किससे 
आईना मुहब्बत का धुंधला  सा गया
देखी थी कभी तस्वीर ए यार जिसमे

रेखा जोशी 

क्या वास्तव में पुनर्जन्म होता है ?

क्या वास्तव में पुनर्जन्म होता है ?
आज मीता बहुत दुखी और उदास थी ,उसकी प्यारी भाभी को अचानक दिल का दौरा पड़ा और उसके हृदय गति रुक गई,देखते ही देखते वह यह दुनिया छोड़ कर चली गई |,कितना प्यार था उन दोनों में ,सगी बहनों से भी ज्यादा ,मीता को वह दिन अच्छी तरह याद था जब उसके भैया की बारात उसकी भाभी के पीहर के घर के द्वार पर पहुंची थी |कितनी सुंदर लग रही थी वह दुलहन बनी हुई ,ऐसे लग रहा था मानो चाँद सज कर धरती पर उतर आया हो और आज तीस साल बाद वह अर्थी पर वैसी  ही सुन्दरता लिए दुल्हन बनी निर्जीव सी पड़ी हुई थी |उसे इस रूप में देखते ही मीता का दिल भर आया और उसकी आँखें छलक उठी ,यही हाल उसके भैया का और उसके भतीजे भतीजियों का था ,सभी की आखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी .उसके साथ बिताये वह सारे पल मीता के मानस पटल पर उभर आये ,वह भाभी तो थी ही लेकिन उसने अपने प्यार से मीता का दिल जीत लिया था ,मीता को पता ही नही चला कब वह भाभी से उसकी अंतरंग सखी बन गई थी |मीता अपनी सारी बातें उसके साथ बांटती थी ,जब तक वह अपनी प्यारी भाभी को अपने दिल की हर बात बता नही देती थी उसे रात को नींद ही नही आती थी |आज यह कैसे हो गया वह उसे सदा के लिए अकेली छोड़ कर क्यों चली गई  ,कहाँ चली गई ?उसे ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने उसके भीतर से कुछ खींच लिया हो । 

यह जिंदगी भी कितनी अजीब है,यहाँ  किसी को भी मालूम नही कि हम कौन है ?कहाँ से इस दुनिया में आये है ? इस दुनिया में जन्म लेने  के उपरांत हम सब कितने ही रिश्ते नातों  में एक दूसरे के साथ बंध जाते है और फिर एक दिन सब रिश्तों को तोड़ कर न जाने हमेशा के लिए सब को रोता बिलखता छोड़ कर कहाँ चले जाते है ,विज्ञान ने भले ही धरती और आकाश के अनगिनत रहस्यों पर से पर्दा उठाया है लेकिन  इस बारे में वह आज भी खामोश है ,हमारा हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विशवास रखता है ,गीता में भी भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कि आत्मा अमर है ,न तो वह जन्म लेती है और न ही मरती है ,मरता है तो यह शरीर ,नाशवान है तो यह शरीर ,जिस प्रकार मनुष्य अपने वस्त्र  बदलता है ठीक उसी प्रकार आत्मा अपना पुराना शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करती है ,लेकिन वैज्ञानिक अभी तक इसे सिद्ध नही कर पायें है ,तो क्या यह जिंदगी मात्र एक पानी के बुलबले जैसी है ,जब तक दिखाई देता है तब तक बुलबुला है ,फट गया तो सब खत्म ,क्या  मरने पर सब कुछ समाप्त हो जाता है ,एक दूसरे के प्रति प्यार भरी भावनाएं ,इच्छाएँ ,आक्रोश ,जज़्बात क्या  मृत्यु के बाद उन सब का अस्तित्व यहीं इसी दुनिया में समाप्त हो जाता है ?इस बारे में कोई कुछ भी नही बता पाता  कि मृत्यु के उस पार क्या है ,हाँ कभी कभार पुनर्जन्म की घटनाएँ अवश्य सुनने को मिल जाती है ,लेकिन यथार्थ तक शायद ही कोई पहुंच पाया हो,कितनी रहस्यमयी है हमारी यह जिंदगी | 

अभी कुछ दिन पहले मीता ने  मियामी के एक मनोवैज्ञानिक डा बराईन वीस दुवारा लिखी एक पुस्तक पढ़ी थी ,जिसमे उसने पुनर्जन्म के कई सच्चे किस्सों का जिक्र किया था ,मेडिकल साइंस भले इसे नही मानती लेकिन वह मेडिकल साइंस का विधार्थी रहा था और वह खुद भी हैरान था क्योकि अपने पेशे के दौरान कई ऐसे मनोवैज्ञानिक रोगी उसकी नजर में आये जिनके तार उनके पिछले जन्म से जुड़े हुए थे | मीता सोच में डूब गई ,क्या उसकी भाभी से भी उसका कोई पिछले जन्म का नाता था  याँ शायद अगले जन्म में भी वह उसे मिलेगी क्योंकि प्यार तो आत्मा से आत्मा का होता है यह शरीर तो नाशवान है |अपनी आँखों में आंसू लिए मीता और उसके घरवाले सभी मीता की प्यारी भाभी के  पार्थिव शरीर की अंतिम यात्रा में उसे अंतिम श्रधांजलि देने के लिए  निकल पड़े |

वेद वचन

एक पुरानी पोस्ट 

वेद वचन

1 ओम विश्वानि देव सवितुदुर्रितानि परासुव ।
यदभद्र्म तन्न्यासुव। । 

हे स्रष्टा संसार के ,दुःख दुर्गुण दूर करो ।
हे पालक सर्वजगत के ,जो भला वह दो । ।

2 यो भूतं च भव्यं च सर्वयश्चाधितिशृति .।
सर्वस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रहमो नमा :। ।

जो भूत है और भविष्य जो ,औ यह सब जो वर्तमान है ।
सर्वाधार सुख स्वरूप ,उस परम बह्म को प्रणाम है । ।

3 यस्य भूमि प्र्मान्तरिक्षमतो उदरम ।
दिवं यश्चक्षे मूद्रानं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रहमो नमा :। ।

पृथ्वी जिसकी पदस्थली और अन्तरिक्ष उदर समान है ।
दिव्य लोक मस्तक है जिसका ,उस परम बह्म को प्रणाम है । ।

[ प्रो महेन्द्र जोशी ]

हमारी दीवानगी ने दे दिया दिल तुम को

अथाह  प्यार  तुमसे  कर  क्या हमने पाया है 
तड़पा  कर  हमे  आखिर  क्या  तुमने पाया है 
हमारी  दीवानगी  ने   दे   दिया  दिल तुम को 
चाहत  की  राह  में  दुख   ही  सबने  पाया  है 

रेखा जोशी

Monday 8 December 2014

मिल रहा हो जहाँ धरती से गगन

चलो चले सजन हों बहारें जहाँ
खूबसूरत से हों नज़ारे जहाँ
मिल रहा हो जहाँ धरती से गगन 
खुशियाँ हरदम हमे पुकारे जहाँ

रेखा जोशी 

नहीं जानती यह कैसी तड़प है इस दिल में

न जाने क्यों  आज  बेचैन है यह मन ऐसे
किसी से कोई शिकवा न गिला है अब वैसे 
नहीं जानती यह कैसी तड़प है इस दिल में 
लगता कहीं कुछ छूट सा रहा हर पल जैसे

रेखा जोशी

Sunday 7 December 2014

तुम में है वो फन

होता दुःख कैद  देख तुम्हे
दीवारों में
जो बना रखी खुद तुमने
अपने ही हाथों
खुद को किया  कैद
क्यों पिंजरे में
मुहँ छिपाये पँख लपेटे
कब तक बुनोगे जाल 
अपने इर्द गिर्द
तोड़  अब बंधन सब
भर लो उड़ान
फैला कर अपने पँख
उन्मुक्त ऊपर दूर गगन  में
है विश्वास तुम्हे खुद पर
जानते हो  तुम में है वो फन 
मंज़िल तुम्हारी है उड़ान  
कर अपना इरादा पक्का
फैला कर अपने पँख 
निकल पड़ो फिर से
ज़िंदगी की इक
लम्बी उड़ान भरने

रेखा जोशी