Friday, 12 December 2014

मत खेलो तुम मेरे जज़्बातों से

मत खेलो तुम
मेरे जज़्बातों से
नही समझ सकते
इस दिल की
पीड़ा तुम
तो
क्यों कुरेद रहे हो
सुलगते अरमानो को
सिसकती आहों से
हो गई
धुआँ धुआँ
ज़िंदगी मेरी
कैसे आती
मुस्कुराहट
होंठों पर तुम्हारे
समझ गई
शायद
मेरी यह तड़प
है तुम्हारी
ज़िंदगी

रेखा जोशी

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