Sunday 29 September 2013

बेकरार है हम

कुछ तो बात है बेकरार है हम
यह गम कौन सा बेशुमार है गम

है वो शाख हम न खिले फूल जहाँ
न कभी खत्म हो इंतज़ार है हम

वो पत्थरों में जो रही गूँजती
न सुनी गई वह पुकार है हम

कोई हमे अब याद करे तो क्यूँ
भूली बात है इक मजार है हम

प्रो महेन्द्र जोशी

छोटी सी जिंदगी

 है छोटी सी जिंदगी यह तुम जी भर कर जीना इसे
 है बिखरे   यहाँ  खुशियों  के मोती  ढूंढ़  लेना  इसे
पल पल  फिसल  रही है यह  तुम्हारे हाथों से देखो
जियो हरेक पल चाहतों का कर मुकम्मल लेना इसे 

रेखा जोशी 

Friday 27 September 2013

यूँ ही चलता रहे यह सिलसिला

रितु और नीलांश का अभी हाल ही में विवाह हुआ है और वह भी प्रेम विवाह लेकिन माता पिता की मर्ज़ी से ,जहाँ प्यार होता है वहां एक दूसरे से गिले ,शिकवे और शिकायत तो होती ही रहती है ,आजकल यही कुछ उन दोनों के साथ भी हो रहा है ,हर सुबह शुरू होती है प्यार की मीठी तकरार से और हर रात गुजरती है ढेरों गिले, शिकवे और शिकायते लिए हुए ,यही अदायें तो जिंदगी को रंगीन बनाती है पहले रूठना और फिर मनाना ,मान कर फिर रूठ जाना |यह रूठने और मनाने का सिलसिला जब तक यूं ही चलता रहे तो समझ लो उनकी शादी को ईश्वर का वरदान मिला हुआ है ,ऐसे झगड़े हमेशा उनकी शादी की ताजगी बनाये रखते है|वैसे तो हमारे शास्त्रों में लिखा हुआ है कि शादी के बाद पति और पत्नी का मिलन ऐसे होना चाहिए जैसे दो जगह का पानी मिल कर एक हो जाता है फिर उस पानी को पहले जैसे अलग नही किया जा सकता ,लेकिन ऐसा होना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि दो व्यक्ति अलग अलग विचारधारा लिए अलग अलग परिवेश में बड़े हुए जब एक दूसरे के साथ रहने लगते है तो यह सम्भाविक है कि उन दोनों की सोच भी एक दूसरे से भिन्न ही होगी ,उनका खान पान ,रहन सहन, बातचीत करने का ढंग ,कई ऐसी बाते है जो उनके अलग अलग व्यक्तित्व को दर्शाती है | पति पत्नी के इस खूबसूरत रिश्ते में और भी निखार लाता है उनकी एक दूसरे के प्रति नाराज़गी का होना और फिर उसकी वह नारजगी को दूर कर एक दूसरे के और करीब आना |रितु को अगर घर का खाना पसंद आता है तो नीलांश को बाहर खाना अच्छा लगता है ,रितु को यदि घर सजाना अच्छा लगता है तो नीलांश को घर फैलाना ,बस इन छोटी छोटी बातों से वह दोनों एक दूसरे पर खीजते रहते है और शिकवे शिकायतों का यह सिलसिला यूँ ही चलता रहता है ,कभी रितु नाराज़ ,तो कभी नीलांश लेकिन वह ऐसी नोक झोंक का भी लुत्फ़ लेते हुए आनंदित रहते है ,वह इसलिए कि उनका प्रेम एक दूसरे के प्रति विशवास और मित्रता पर आधारित है,वह दोनों आपस में खुल कर एक दूसरे से अपने विचार अभिव्यक्त करते है ,लेकिन जब वैवाहिक जिंदगी में एक दूसरे के प्रति अविश्वास पनपने लगे यां पुरुष प्रधान समाज में पति का अहम आड़े आने लगे तो ऐसे में असली मुद्दा तो बहुत पीछे छूट कर रह जाता है और शुरू हो जाता है उनके बीच न खत्म होने वाली शिकायतों का दौर ,पति पत्नी दोनों को एक दूसरे की हर छोटी बड़ी बात चुभने लगती है ,इसके चलते उन दोनों का बेचारा कोमल दिल शिकवे शिकायतों के बोझ तले दब कर रह जाता है और बढ़ा देता है उनके बीच न खत्म होने वाली दूरियाँ ,जो उन्हें मजबूर कर देती है कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पर और खत्म होती है उनके वैवाहिक जीवन की कहानी तलाक पर जा कर ,अगर किसी कारणवश वह तलाक नही भी लेते और सारी जिंदगी उस बोझिल शादी से समझौता कर उसे बचाने में ही निकाल देतें है ,पति पत्नी का आपस में सामंजस्य दुनिया के हर रिश्ते से प्यारा हो सकता है ,अगर पति पत्नी दोनों इस समस्या को परिपक्व ढंग से अपने दिल की भावनाओं को एक दूसरे से बातचीत कर सुलझाने की कोशिश करें तो इसमें कोई दो राय नही होगी कि उनके बीच हो रहे शिकवे और शिकायतों का सिलसिला उन्हें भी रितु और नीलांश कि तरह आनंद प्रदान करेगा और एक दिन वह अपनी शादी की सिल्वर जुबली याँ गोल्डन जुबली अवश्य मनाएं गे |

Thursday 26 September 2013

भारत की शान है हिंदी

इस सदी के महानायक हिंदी फिल्मों के सरताज आदरणीय अमिताभ बच्चन जी की एक फिल्म नमक हलाल का एक संवाद था ,”आई केन टाक इंग्लिश ,आई केन वाक् इंग्लिश एंड आई केन लाफ इंग्लिश बिकाज़ इंग्लिश इज ए फन्नी लैग्वेज ,भैरो बिकम्स बायरन एंड बायरन बिकम्स भैरों ,देयर माइंड इज नैरो ” जी हाँ अच्छी टांग तोड़ अंग्रेजी बोली थी उन्होंने उस फिल्म में और ऐसी ही टूटी फूटी हास्यप्रद अंग्रेजी बोल कर हमारे ही देश भारत के वासी अपने पढ़े लिखे होने का सबूत देते है ,कितनी शर्म की बात है कि अपनी मातृ भाषा हिंदी में बात न कर के हम विदेशी भाषा बोल कर गर्व महसूस करते है,और ऐसा करने के लिए मजबूर हो जाते है हिंदी भाषी स्कूलों से शिक्षित हुए हमारे देश के कई युवावर्ग जो अपने आप को अंगेजी भाषा बोलने वालों के समक्ष हीन भावना से बचने की कोशिश में उपहास का पात्र बन जाते है ,जबकि हम सहजता से हिंदी में बोल कर अपनी बात को सरलता से अभिव्यक्त कर सकते है | क्या हमारी मानसिकता अभी भी अंग्रेजों की गुलाम बनी हुई है ?क्या पढ़े लिखे होने का अर्थ केवल अंग्रेजी का ज्ञान होना है ?क्या बुद्धिजीवी सिर्फ अंग्रेजी भाषी ही हो सकते है ?ऐसे कई अनगिनत प्रश्न है जो भारत की प्रगति के आड़े आ रहे है ,इसके लिए कौन दोषी है ?कब तक इस देश की विकलांग शिक्षा प्रणाली को हम घसीटते जाएँ गे ? क्या कभी हिंदी भाषी सरकारी स्कूलों में पढने वाले छात्रों और अंग्रेजी भाषी स्कूलों में पढने वाले छात्रों के बीच बढ़ती हुई खाई भर पाए गी ? हमारी शिक्षा प्रणाली में स्नातक होने के लिए छात्रों को अंग्रेजी विषय लेना और उसमे उतीर्ण होना आवश्यक है ,क्यों अंग्रेजी की तरह ही हिंदी भाषा को भी शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत मुख्यधारा में नही लाया जा सकता जबकि इस दुनिया का हर देश अपनी शिक्षा प्रणाली में अपने देश की भाषा को प्राथमिकता देते है ,जैसा की रूस में शिक्षा ग्रहण करने के लिए रूसी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है और ,चीन में शिक्षा लेने के लिए चीनी भाषा आनी चाहिए तो भारत में हिंदी को क्यों नही प्राथमिकता दी जाती ?जब तक हमारी शिक्षा प्रणाली में हिंदी को उचित स्थान नही मिलता तब तक हिंदी सम्मानजनक रूप से मुख्य धारा में उचित स्थान कैसे प्राप्त कर सकती है | हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसने अनेकता में एकता को बाँध रखा है ,गीतकार इकबाल का लिखा गीत सारे ”जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा”की पंक्ति ,”हिंदी है हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा ”ने स्वतंत्रता की लड़ाई के समय सभी धर्मों के लोगों को एकजुट कर महत्वपूर्ण योगदान दिया था ,इस में कोई दो राय नही कि सम्मान की हकदार है हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी, हमारे भारत की शान है हिंदी ,केवल यही एक भाषा है जिसे अनेक राज्यों में बोला जाता है|आज़ादी के बाद हमारे संविधान ने इसे राज भाषा का मान दिया जिसके अनुसार सभी राजकीय कार्य हिंदी भाषा में ही होने चाहिए ,लेकिन इस भाषा का उपयोग करते समय कई बार ऐसे जटिल शब्द प्रयोग में लाये जाते है जिनके अर्थ समझना थोड़ा कठिन हो जाता है| अगर इस भाषा को जटिल न बना कर हम इसे सरल और व्यवहारिक रूप में इस्तेमाल करें तो न केवल इसका रूप निखरेगा बल्कि इस भाषा को अधिक से अधिक लोग इस्तेमाल करेने लगेंगे |
हिंदी हमारी
पहचान अपनी
जान हमारी
……………
राष्ट्र की भाषा
मिले सम्मान इसे
है मातृ भाषा
……………..
आन है यह
भारत हमारे की
शान है यह


जय भारत जय हिंदी

उनका ख्याल

ख्याल उनका आज अब आ ही गया है 
मुहब्बत में वह मुकाम आ ही गया है 
छुपा रखा जिसे दिल की गहराइयों में 
लब पर उनका नाम अब आ ही गया है 

रेखा जोशी

Tuesday 24 September 2013

वह प्यारे पल

वह प्यारे पल

बचपन की याद आते ही मानस पटल पर कई स्मृतियाँ  तैरने  लगती है ,माँ का अंगना और मेरा वहां  अपनी सहेलियों संग खेलना ,मेरे पास एक,बहुत ही सुन्दर  गुड़िया थी ,जिसे मेरी नानी ने ख़ास तौर पर मेरे लिए बनाया था ,मै सदा उसे अपने साथ ही रखती थी और उस पर मेरी एक सहेली का दिल आ गया लेकिन मै उसे अपनी गुड़िया को हाथ भी लगाने नही देती थी ,उसने मेरे साथ एक चाल चली और अपने गुड्डे को मेरे पास ले आई ,मेरा बालमन जो शादी के बारे में जानता भी नही था ,अपनी गुड़िया की शादी रचाने की तैयारी में जुट गया उसके गुड्डे के साथ ,घर में पार्टी का आयोजन किया गया ,मैने अपने परिवार के सदस्यों को भी शामिल कर लिया ,पूरी सब्जी हलवा सब अपनी माँ से बनवाया ,उस गुड़िया के लिए कपड़े ,गहने भी इकट्ठे किये और अपनी गुड़िया से उसके गुड्डे को वरमाला पहना कर उसकी विदाई भी कर दी | उसके बाद जब वह लडकी मेरी गुड़िया को ले कर चली गई तब मै बहुत रोई थी और अपनी गुड़िया को वापिस लाने की जिद करने लगी ,किसी तरह से मेरी माँ उस लड़की के घर से मेरी प्यारी गुड़िया को ले आई और उसे देखते ही मेरी आँखों से ख़ुशी के आंसू बहने लगे थे ,आज भी याद करती हूँ तो उस शादी की पूरी तस्वीर मेरी आँखों के सामने उतर आती है | अब सोचती हूँ तो महसूस कर सकती हूँ कितनी मुश्किल होती है बिटिया की विदाई | 

Monday 23 September 2013

कृष्ण कन्हैया

देवकीनंदन कृष्ण कन्हैया सब का प्यारा था 
राधिका का मोहन तो गोपियों का भी दुलारा था 
नाम तेरे से पिया मीरा ने विष का प्याला भी 
ममतामयी यशोदा की वह आँखों का तारा था 

रेखा जोशी 

विरह



नयनों  में लौ दिये की जला कर
पथ में पिया के पलके बिछा कर
निहार रही वह राह प्रियतम की
दिल में विरह की पीड़ा छुपा कर

रेखा जोशी 

Sunday 22 September 2013

तमसो मा ज्योतिर्गमय---

तमसो मा ज्योतिर्गमय---

मेरे पड़ोस में एक बहुत ही बुज़ुर्ग महिला रहती है ,उम्र लगभग अस्सी वर्ष होगी ,बहुत ही सुलझी हुई ,मैने न तो आज तक उन्हें किसी से लड़ते झगड़ते देखा  और न ही कभी किसी की चुगली या बुराई करते हुए सुना है ,हां उन्हें अक्सर पुस्तकों में खोये हुए अवश्य देखा है| गर्मियों के लम्बे दिनों की शुरुआत हो चुकी थी ,चिलचिलाती धूप में घर से बाहर निकलना मुश्किल सा हो गया था ,लेकिन एक दिन,भरी दोपहर के समय मै उनके घर गई और उनके यहाँ मैने एक छोटा सा  सुसज्जित  पुस्तकालय ,जिसमे करीने से रखी हुई अनेको पुस्तकें थी ,देखा  |उस अमूल्य निधि को देखते ही मेरे तन मन में प्रसन्नता की एक लहर दौड़ने लगी ,''आंटी आपके पास तो बहुत सी पुस्तके है ,क्या आपने यह सारी पढ़ रखी है,''मेरे  पूछने पर उन्होंने कहा,''नही बेटा ,मुझे पढने का शौंक है ,जहां से भी मुझे कोई अच्छी पुस्तक मिलती है मै खरीद लेती हूँ और जब भी मुझे समय मिलता है ,मै उसे पढ़ लेती हूँ ,पुस्तके पढने की तो कोई उम्र नही होती न ,दिल भी लगा रहता है और कुछ न कुछ नया सीखने को भी मिलता रहता है ,हम बाते कर ही रहे थे कि उनकी  बीस वर्षीय पोती हाथ में मुंशी प्रेमचन्द का उपन्यास' सेवा सदन' लिए हमारे बीच आ खड़ी हुई ,दादी क्या आपने यह पढ़ा है ?आपसी रिश्तों में उलझती भावनाओं को कितने अच्छे से लिखा है मुंशी जी ने |आंटी जी और उनकी पोती में पुस्तकों को पढ़ने के इस जज़्बात को देख बहुत अच्छा लगा | अध्ययन करने के लिए उम्र की कोई सीमा नही है उसके लिए तो बस विषय में रूचि होनी चाहिए |मुझे महात्मा गांधी की  लिखी पंक्तियाँ याद आ गयी ,'' अच्छी पुस्तके मन के लिए साबुन का काम करती है ,''हमारा आचरण तो शुद्ध होता ही है ,हमारे चरित्र का भी निर्माण होने लगता है ,कोरा उपदेश या प्रवचन किसी को इतना प्रभावित नही कर पाते जितना अध्ययन या मनन करने से हम प्रभावित होते है ,कईबार महापुरुषों की जीवनियां पढने से हम भावलोक में विचरने लगते है  और कभी कभी तो ऐसा महसूस होने लगता है जैसे वह हमारे अंतरंग मित्र है | अच्छी पुस्तकों के पास होने से हमें अपने प्रिय मित्रों के साथ न रहने की कमी नही खटकती |जितना हम अध्ययन करते है ,उतनी ही अधिक हमें उसकी विशेषताओं के बारे जानकारी मिलती है | हमारे ज्ञानवर्धन के साथ साथ अध्ययन से हमारा  मनोरंजन भी होता है |हमारे चहुंमुखी विकास और मानसिक क्षितिज के विस्तार के लिए अच्छी  पुस्तकों ,समाचार पत्र आदि का बहुत महत्वपूर्ण  योगदान है |ज्ञान की देवी सरस्वती की सच्ची आराधना ,उपासना ही हमे अज्ञान से ज्ञान की ओर ले कर जाती है |हमारी भारतीय संस्कृति के मूल धरोहर , एक उपनिषिद से लिए गए  मंत्र  ,''तमसो मा ज्योतिर्गमय   '',अर्थात हे प्रभु हमे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ,और अच्छी पुस्तकें हमारे ज्ञान चक्षु खोल हमारी बुद्धि में छाये अंधकार को मिटा देती है | इस समय मै अपनी पड़ोसन आंटी जी के घर के प्रकाश पुँज रूपी पुस्तकालय में खड़ी पुस्तको की उस अमूल्य निधि में से पुस्तक रूपी अनमोल रत्न की  खोज में लगी हुई थी ताकि गर्मियों की लम्बी दोपहर में मै  भी अपने घर पर बैठ कर आराम से उस अनमोल रत्न के प्रकाश से  अपनी बुद्धि को प्रकाशित कर सकूं |

Saturday 21 September 2013

न कोई शिकवा न शिकायत



छू लें आसमान को कभी यह तमन्ना रखते है
गम मिलें याँ खुशियाँ हर हाल में खुश रहते है
न कोई शिकवा न शिकायत है अब जिंदगी से
संग हवा के चलने पर ऊँचाइयों सा मजा लेते है

रेखा जोशी

Thursday 19 September 2013

चटपटी खिचड़ी हिंगलिश

ऊँची आवाज़ में टी वी चल रहा था ,”हर एक फ्रेंड जरूरी होता है ,”जिसे सुन कर मीना की एक वर्ष की नन्ही परी रोते रोते अचानक चुप हो गई ,मीना ने हैरानी से टी वी की तरफ देखा तो वहां पर विज्ञापन के लिए ब्रेक चल रहा था ,जी हाँ मीना की नन्ही परी विज्ञापनों की दुनिया में खोई हुई थी ,अपनी नन्ही सी गुडिया के साथ विज्ञापनों की इस दुनिया ने मीना का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया, हिंगलिश में बने विज्ञापनों ने हमे बहुत सी सुन्दर सदाबहार पंक्तिया दी है जैसे ”यह दिल मांगे मोर ”, ”क्या करें कंट्रोल नही होता” याँ फिर ”मेरा नम्बर कब आये गा, ” ऐसी अनेक पंक्तिया हम हर दिन कहावतों जैसे अपनी भाषा में प्रयोग करते है | मीना को कोई भी ऐसा विज्ञापन दिखाई नही दिया जो शुद्ध हिंदी भाषा में हो ,चाहे वह बाल धोने का शैम्पू हो या कपड़े धोने का साबुन ,पिज़्ज़ा का विज्ञापन हो याँ मुहं पर लगाने वाली क्रीम का ,अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए बहु राष्ट्रीय कम्पनियां विज्ञापनों में ऐसी भाषा को उपयोग में ला रहीं है जो जन साधारण की अपनी भाषा हो और यह सही भी है क्योंकि आज क्या बच्चा क्या बूढ़ा,आफिस में बॉस हो याँ घर पर पत्नी ,काम वाली बाई से ले कर सब्ज़ीवाले को यह चटपटी भाषा रास आ गई है ,कल घर का काम करने वाली बाई बोल रही थी ”बाबा रे बाबा मुझे तो बहुत टेंशन है ”तो आज सब्जीवाला कह रहा था ,”मेम साहब ओनियन एटी रुपीज़ किलो हो गया है ”| हिंदी भाषा में चटपटे छोंक का काम कर रहे है वाक्य के बीच बोले जाने वाले अंग्रेजी के शब्द |
इंग्लिश ,इंग्लिश है और हिंदी ,हिंदी है ,1980 के दशक में आई एक बालीवुड फिल्म ”चुपके चुपके”में कलाकार ओम प्रकाश ने अपने संवादों दुवारा दर्शकों का खूब मनोरंजन किया था ,उस फिल्म की भूमिका में उसे दो भाषाओं की खिचड़ी बिलकुल भी पसंद नही थी,लेकिन हिंदी भाषा में अंग्रेजी भाषा का अतिक्रमण तो सन1600 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भारत में कदम रखते ही शुरू हो गया था ,लेकिन धीरे धीरे समय के साथ बहुत ही सहज ढंग से अंग्रेजी भाषा में हिंदी के शब्द और हिंदी भाषा में अंग्रेजी भाषा के शब्द ऐसे घुल मिल गए और उभर कर आ गई एक नई चटपटी खिचड़ी भाषा ”हिंगलिश” ,जिसे क्वींस हिंगलिश के नाम से भी जाना जाता है,जो आज पूरी दुनिया में लगभग 350 करोड़ लोगों दुवारा बोली जाने लगी है | ”अब तो दिन प्रतिदिन इसका रूप और भी अधिक निखर कर आ रहा है | गृह मंत्रालय के एक आर्डर के अंतर्गत सरकारी कामकाज के लिए सरकारी अफसर,सेक्शन अफसर राज भाषा हिंदी के साथ हिंगलिश को भी उपयोग में ला सकते है ,वह इसलिए कि हिंगलिश के उपयोग से कम समय में और अधिक सरलता के सरकारी कामकाज को निपटाया जा सकता है |
आज जाने माने लेखक सलमान रश्दी और लेखिका शोभा डे की देखा देखी कई उभरते हुए लेखक भी अब खुल कर अपनी लेखनी में हिंगलिश का प्रयोग कर रहे है| साईंस और टेक्नोलोजी में हो रही नित नई प्रगति के कारण जब आज पूरा विश्व सिमट कर पास आ रहा है ऐसे में हिंगलिश हर दिन एक नये आयाम की तरफ अपने कदम बढ़ा रही है , जहां आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में भी बिंदास ,तमाशा ,मेहँदी जैसे शब्द मिल जाते है वहीं अंग्रेजी के कई शब्द हमारी रोजमर्रा जिन्दगी का हिस्सा बन चुके है | एक तरफ तो हम कम्प्यूटर के दुवारा हिंदी शब्दों को अंग्रेजी में लिखकर दूर देश में बैठे ,हिंदी न लिखने वाले लोगों के साथ भी संवाद स्थापित कर सकते है तथा दूसरी ओर हम हिंगलिश दुवारा पूरी दुनिया में हिंदी ब्लागिंग की बढ़ती लोकप्रियता को बुलंदियों तक पहुँचाने में कामयाब हो सकते है|

Wednesday 18 September 2013

आसमान पा लिया है

चाहा था जाम पर हमने सागर को पा लिया  है 
मांगा था तुम्हे  पर हमने तो खुदा पा  लिया है 
पा कर तुम्हे पा लिया है अब सारा जहान हमने 
ज़मीं के साथ साथ आसमान को भी पा लिया है 

रेखा जोशी 

Tuesday 17 September 2013

भूख

भूख


''बेटा आज पता नही क्यों हलवा पूड़ी खाने का मन हो रहा है ,तनिक बना कर खिला दो न ,'' बूढ़ी अम्मा की आवाज़ ने मीरा को चौंका दिया । मीरा ने प्यार से अम्मा को अपने घर के भीतर बुला कर पूरी श्रधा से उसने बूढ़ी अम्मा  के आगे हलवा और पूड़ी बना कर परोस दिया |पता नही इस बुढ़ापे में शायद अम्मा की सारी की सारी इन्द्रिया उसकी जुबान के रस में केन्द्रित हो गई थी  जो वह आये दिन नयें नयें व्यंजनों की फरमाइश ले कर उसके दरवाज़े पर खड़ी हो जाती थी ,  ,कभी उसकी जिहा को आलू के गर्मागर्म परांठों  का स्वाद तरसाता था तो कभी गुलाब जामुन के मीठे रस के स्वाद को याद कर उसके मुह में पानी भर जाता था ,मीरा भी उसकी बहू और बेटे से छिप कर उसके मन की मुराद पूरी करती रहती थी ,लेकिन उसके पेट की भीख तो नित्य नये स्वादों में भटकती रहती थी । उस दिन मीरा ने अम्मा से पूछ ही लिया ,''अम्मा ,तुम अपनी  बहू से क्यूँ नही कहती ,वह भी तो  तुम्हे यह सब बना कर खिला सकती है ,''पूड़ी खाते खाते अम्मा के हाथ वहीं रुक गए,आँखें उपर कर मीरा को देखते हुए अम्मा बोली   ,''न बाबा न ,वह जो मुझे दलिया देती है ,उसे देना भी वह बंद कर देगी ,अरे बेटा वह तो फ्रिज  को ताला लगा कर जाती है,बाहर मेज़ पर रखे फलों की गिनती उसे सदा याद रहती है ,बेटा अगर वह कुछ बढ़िया सा खाना बनाती है तो मुझ पर  एहसान कर ऐसे देती है मानो किसी कुत्ते के आगे रोटी का टुकड़ा डाल रही हो ,छि ऐसे खाने को तो  किसी का दिल भी नही करेगा ,''कहते कहते अम्मा की आँखें नम हो गई |अम्मा तो पूड़ी हलवा खा कर मीरा को ढेरों आसीस  देती हुई अपने घर चली गई ,लेकिन मीरा के दिलोदिमाग में अनेक सवाल छोड़ गई ,माँ बाप बहुत  ही प्यार से अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा  करते है लेकिन बच्चे अपने बुज़ुर्ग और बुढ़ापे से लाचार माता पिता को बिना उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाएं सेवा भाव से दो वक्त की रोटी देने से भी क्यों कतराने लगते है ?अम्मा की बाते मीरा के अंतर्मन को झकझोरने लगी ,किसी कुत्ते के सामने या किसी भिखारी के आगे रोटी फेंकना और अपने बुज़ुर्ग, माता पिता शरीर से लाचार ,जो अब उम्र के आखिरी  पड़ाव पर पहुंच चुके है ,उनको आदर सहित प्रेमपूर्वक दो जून खाना खिलाने  में जमीन आसमान का अंतर होता है ,क्या इसे आज के स्वार्थी बच्चे समझ पा रहें  है ,अपने ही पेट से जन्मे बच्चों के ऐसे रूखे ,संवेदन शून्य व्यवहार से न जाने कितने ही बुज़ुर्ग बूढ़े माँ बाप ,अम्मा की तरह खून के आंसू पी कर हर रोज़ अपने बच्चों से प्यार की आस लिए और आत्मसम्मान की  भूख से मरते हुए अपनी जिंदगी के बचे खुचे दिन गुज़ार रहें है |क्या यही है हमारी संस्कृति ?क्या हमारे बुज़ुर्ग सम्मान के हकदार नही है ?





Monday 16 September 2013

उड़ने वाले पंछी

गीत

नभ पर उड़ने वाले पंछी
गीत मधुर सा गा रहे तुम
……………………
 झूमती हवाओं के संग
यहाँ वहाँ  इठला के तुम
रूप सुंदर सजा कर तुम
आज किसे  लुभा रहे हो
……………………
मीठे   मीठे   बोल  तेरे
रस घोले कानो  में मेरे
मीठी बोली सुन कर अब 
चहकने लगा  मेरा मन
……………………
नभ पर उड़ने वाले पंछी
गीत मधुर सा गा रहे तुम

रेखा जोशी 

Sunday 15 September 2013

शिव ही सुन्दर



रच कर  सुन्दरता को वह स्वयं इसमें खो गया है
फिर स्वयं को खोज रहा यह उन्हें  क्या हो गया है
मन ही मन आनंद ले है सुन्दरता ही  परम सत्य
सत्य ही शिव है शिव ही सुन्दर भान यह हो गया है

रेखा जोशी



Saturday 14 September 2013

मातृ भाषा प्रति सौतेला व्यवहार

विरिष्ठ लेखक सरदार खुशवंत सिंह के अनुसार ''हिन्दी एक गरीब  भाषा है ''| सही ही तो कहा है उन्होंने,हिंदी सचमुच गरीबों की ही भाषा है,यह सोच कर  सुधीर बहुत दुखी था ,सरकारी स्कूल और सरकारी कालेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद सुधीर ने कई कम्पनियों में इंटरव्यू दिए पर असफलता ही हाथ लगी ,ऐसा नही था की वह बुद्धिमान नही था ,याँ वह वह होनहार नही था ,वह बहुत प्रतिभाशाली था लेकिन अंग्रेज़ी भाषा को ले कर उसका आत्मविश्वास बुरी तरह से आहत हो चुका था ,डगमगा चुका था ,हिंदी भाषी संस्थानों से पढाई करने के बाद जब उसने बाहरी दुनिया में कदम रखा तो अंग्रेजी भाषा में संवाद स्थापित करने में असमर्थ सुधीर हीन भावना का शिकार होने लगा ,केवल सुधीर ही क्यों हमारे देश में आधी से ज्यादा जनसंख्या हिंदी भाषी है एवं हिंदी भाषी विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करती है और वह सभी लोग अंगेजी बोलने वालो के सामने अपने को तुच्छ और हीन समझने लगते है  वह इसलिए क्योंकि  हिंदी भाषा को हेय दृष्टि से देखा जाता है ,हिंदी के प्रति यह सौतेला व्यवहार ,आखिर क्यों ,जो हिंदी बोलते है उन्हें क्यों गंवार  समझा जाता है और जो अंग्रेजी में प्रतिभाशाली करते है उन्हें इज्ज़त से देखा जाता है जबकि हिंदी हमारे भारत की राष्ट्र भाषा है हमारी अपनी मातृ भाषा है ,परन्तु  आज हिंदी गरीबों और अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गई है ,केवल अंग्रेजी ही पढ़े लिखों की भाषा मानी जाती है | इन सारी बातों ने सुधीर को झकझोर कर रख दिया था ,आज़ादी मिलने के  छ्यासठ वर्ष बाद भी हम आज तक अंग्रेजी के गुलाम बने हुए है ,कब तक सुधीर जैसे अनेक नौजवान अपने ही देश हिन्दुस्तान में हिंदी की वजह से पिछड़े हुए कहलाते रहें गे | यह इस देश का दुर्भाग्य है कि किसी  सरकारी स्कूल के विद्यार्थी और पब्लिक ,प्राइवेट और अन्य अंग्रेजी भाषी स्कूल के विद्यार्थी का एक जैसा पाठ्यक्रम होने पर भी हिंदी भाषी सरकारी स्कूल के छात्र  अंग्रेजी भाषी स्कूल के छात्रों से सदा पिछड़े हुए रहते है ,इसी कारण अब मध्यमवर्गीय परिवार के लोग तो क्या निर्धन परिवारों के लोग भी अंग्रेज़ी भाषी स्कूलों में अपने बच्चो को शिक्षित करना चाहते है ,चाहे उन्हें उसके लिए अपना पेट काट कर क्यों न रहना पड़े |  हमारे भारत की तीन चौथाई जनसंख्या गाँवों में रहती है जहां याँ तो स्कूल न के बराबर होते है अगर है तो सिर्फ हिंदी भाषी जिनका अंग्रेजी भाषा से दूर दूर तक कोई सरोकार  नही होता ,ऐसे में  आज के नौजवान, युवा वर्ग  इस देश की भविष्य नीधि जब अंग्रेज़ी भाषा के सामने हीन भावना से ग्रस्त रहेगी तो इस देश के भविष्य का क्या होगा  ? 

दोस्त

एक मुक्तक दोस्तों के नाम 

महक  दोस्ती की  किसी इश्क से कम नहीं होती
इश्क करने वालो को किसी की परवाह नही होती 
दोस्ती हो अगर तो कृष्ण और सुदामा जैसी  हो 
ऐसी  दोस्ती में प्यार की कोई कीमत नही होती 

रेखा जोशी 

Friday 13 September 2013

हिंदी दिवस पर हाइकु

हिंदी दिवस पर हाइकु 

जान अपनी 
पहचान अपनी 
है हिंदी भाषा 
.................
खाते कसम 
हिंदी दिवस पर 
है अपनाना 
.................
हिंदी हमारी 
मिले सम्मान इसे 
है मातृ भाषा 
................. 
शान यह है 
भारत हमारे की 
राष्ट्र की भाषा 
................. 
मित्र जनों को 
हिंदी दिवस पर
मेरी बधाई

रेखा जोशी ``````

Thursday 12 September 2013

मीठे बोल


सूरत पर मत जाओ सीरत मन की सुन्दरता है
कोयल की मीठी वाणी ने दिल सबका जीता है
कडवी बोली कागा की भाती  नही किसी को भी
मीठे  बोल  बोलने से  कानों में रस  घुलता   है

रेखा जोशी 

Wednesday 11 September 2013

झूठ सत्य पर भारी है

सत्य वचन की मारी है ,दुखिया वो बेचारी है 
सत्य को अपना रही है ,अब थक कर वह हारी है  
झूठ का दामन छोड़ कर अब उसकी सच की खातिर 
मिटने की तैयारी है, झूठ सत्य पर भारी है

 रेखा जोशी 

Tuesday 10 September 2013

रोला छंद

रोला  छंद 
मात्रा - ११ ,१३ , चार चरण अंत में २ गुरु 

याद सवेरे शाम ,राधिका को है आये |
मनभावन है भगवान ,धुन मुरली की बजाये |
गोकुल के गोपाल ,सभी के मन को भाये |
मनमोहन चितचोर ,दिल सबका है चुराये। 

रेखा जोशी 
भाईचारा [लघु कथा ]

खिड़की खोलते ही भुवन बाबू ने सामने से लोगों की भीड़ को चिल्लाते हुए अपने घर की तरफ आते देखा ,उनके हाथों में ईंट ,पतथर ,टूटे हुए कांच के टुकड़े, लाठियाँ और न जाने कैसे कैसे हथियार थे ,भीड़ के रौद्र रूप को देखते ही वह कांपने लगे ,घबराहट से उनका बदन पसीने से तरबतर हो गया और जल्दी से उन्होंने खिड़की पट बंद कर दिए ,तभी उनका ड्राइवर युसूफ भाग कर हांफता हुआ उनके पास आया ,''साहब शहर में दंगे शुरू हो गए है ,साहब आपको हमारे भाईचारे का वास्ता ,आप देर मत कीजिए और यह लीजिये चाबी , आप पीछे के रास्ते से निकल कर जल्दी से मेरे घर में चले जाईये ,वहां आप को कोई हाथ नही लगा पाए गा और मै यहाँ सब सम्भाल लूँगा ,आप जल्दी करें ''।जब  भुवन बाबू को पीछे के रास्ते से अपने घर भेज कर उनकी जान बचाने के युसूफ कामयाब हो गया तब उसने  चैन  की सांस ली  और फिर वह भुवन बाबू के घर के बाहर अपने ही सुमदाय के लोगों के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया ।

 रेखा जोशी 

Monday 9 September 2013

मुस्कुराने लगा चाँद

मेरे दिल की उमंगों  ने  ली अंगडाई
चाहतों में मेरी  मुस्कुराने लगा चाँद
......................................... ……
सुहानी चांदनी से भीगता यह बदन
नाचे मन मयूरा  बांवरा ये तन मन
.......................................... ………
उड़ने लगी चाहतें ले के संग कई रंग
हसीन ख्वाबों के पंखों तले मेरा मन
............................................... …
महकने लगी वादियाँ उनकी आहट पर
खिलने लगा मेरी तम्मनाओं का जहां।
................................................
मेरे दिल की उमंगों  ने  ली  अंगडाई
चाहतों में मेरी  मुस्कुराने लगा चाँद .

रेखा जोशी

Sunday 8 September 2013

गणेश वन्दना

 गणेश वन्दना 


सुन कर अब पुकार मेरी
तुम जल्दी से आ जाओ
कहाँ छुपे हो ओ मेरे प्रभु
दरस अपना दिखा जाओ
………………………
पार लगा दीजो नैया मेरी
डगमगा रही बीच मझधार
सहारा अब तेरा ही पा कर
मिले चैन  मेरे इस मन को
………………………।
मुश्किल है राहें  मेरी मगर
तुम हो भक्तों के रखवाले
हर पल रहते हो साथ मेरे
विघ्नहर्ता विघ्न हरो सबके

गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें

रेखा जोशी 


''अपना अंगना ''में दिव्या जी दुवारा रेखा जी से साक्षात्कार

shared Nisha Mittal's photo. ''अपना अंगना ''में दिव्या जी दुवारा रेखा जी से साक्षात्कार 
दिव्या की अनुपस्थिति में आज की प्रस्तुति साक्षात्कार (जो दिव्या द्वारा ही लिया गया और तैयार किया गया है ) मैं आपके लिए प्रस्तुत कर रही हूँ
नमस्कार, साथियों अपना अंगना में आप सभी का स्वागत है | आज रविवार को खास ब्लोगिंग जगत के किसी खास ब्लोगर का साक्षात्कार लेके आते है | मैं जिनसे आप का परिचय कराने जा रही हूँ वो बहुत सौम्य, मृदु भाषी है साथ ही एनर्जेटिक है एक अध्यापिका के रूप में जहाँ वो बहुत से छात्र छात्राओं का भविष्य बनाने में भूमिका निभाई है वहीं अपने लेखन से उन्होंने जागृति फैलाई है ... निरंतर लेखन में सक्रिय बहुत से ब्लॉग और पत्रिकाओ में उनकी कहानी कविताये छपती आई है वहीं उनके द्वारा लिखी लघु कथा कहानी का मंचन उन्ही के छात्रों द्वारा भी हुआ है जी हाँ हम बात कर रहे है रेखा जोशी जी की आइये उन्ही से जानते है कुछ उनके अनछुए पहलु के बारे में उन्ही से
दिव्या : रेखा जी हम आप को एक ब्लोगर के रूप में जानते है ,आप कुछ अपने विषय में बताइए?
रेखा जी: प्रिय दिव्या ,मेरा जन्म अमृतसर में हुआ था, मेरे पापा हिन्दू कालेज अमृतसर से वाइस प्रिंसिपल रिटायर हुए थे। उन्होंने हम सभी बहनों को ऊँची शिक्षा एवं अच्छे संस्कार दिए । हिन्दू कालेज ,अमृतसर से मैने बी एस सी ,[नान मेडिकल] से किया और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से एम् एस सी [भौतिक विज्ञानं ] से किया ,उसके बाद शादी हो गई और सर्विस भी मिल गई ,मेरे पति केंद्र में सरकारी नौकरी में कार्यरत थे और वहीँ से रिटायर हुए । 1978 में मुझे फरीदाबाद में'' के एल एम् दयानंद कालेज फार वीमेन ''में भौतिक विज्ञानं विभाग में लेक्चरार की नौकरी मिल गई और हमने दिल्ली से फरीदाबाद शिफ्ट कर लिया ,32 साल के अंतराल बाद मै इसी कालेज से जून 2010 में रिटायर हुई ,मुझे रिटायरमेंट के बाद भी जाब की आफर आई पर मैने इनकार कर दिया क्योकि मेरा झुकाव लेखन में था

दिव्या : आप विज्ञान की छात्रा रही है साथ है, साथ ही आप ने अध्यापन का विषय भी साइंस रहा है | साहित्य में रुझान किस तरह हुआ

रेखा जी:जी हाँ दिव्या मैने फिजिक्स में एम् एस सी किया था और अध्यापन भी इसी विषय में किया ,साहित्य के प्रति मेरी रूचि बचपन से ही है ,मै यही कहना चाहूँ गी यह शौंक मुझे विरासत में मिला ,मेरी दादी ,मेरे पापा और मेरे चाचा सब कुछ न कुछ हिंदी में लिखा करते थे , मै अपनी बरसों पुरानी हाबी को पुनः जीवित करना चाहती थी | मेरी दादी हिंदी की टीचर थी और उनकी अलमारी में सभी विरिष्ठ हिंदी लेखकों की पुस्तकें थी,गुरुदेव रविन्द्रनाथटैगोर,शरतचंद्र ,मुंशी प्रेमचंद्र की लिखी पुस्तकें मैने आठवी कक्षा के बाद हुई छुट्टियों में अपनी दादी की अलमारी से निकाल कर पढ़ ली थी ,वैसे कई बाते उस समय मेरी समझ से परे थी लेकिन मुझे उन्हें पढना बहुत अच्छा लगता था ,उनके उपन्यास पढ़ते हुए मै भावविभोर हो जाती थी और मेरी आँखों से आंसू बहने लगते थे |मेरी माँ भी यही कहती है की मै जब बहुत छोटी थी तब भी मै किसी को दुखी नही देख सकती थी और उसके दुःख को अपना समझ कर रो पडती थी ,मै आज भी वैसी ही हूँ और कोशिश करती हूँ की किसी तरह से उनके दुःख को कम कर सकूं |

दिव्या आप शादी से पहले जॉब करते थे फिर शादी दूसरे शहर होने के कारण नौकरी छोडनी पड़ी | क्या कशमकश रही थी उस समय मन में
रेखा जी:हाँ दिव्या। एम् एस सी के तुरंत बाद मेरी सेक्रेड हार्ट कान्वेंट स्कूल ,अमृतसर में साइंस टीचर की नौकरी लग गई थी ,लेकिन शादी के बाद मुझे नौकरी छोडनी पड़ी क्योकि मेरे पति दिल्ली में सरकारी नौकरी किया करते थे। नौकरी तो मैने उस समय ख़ुशी से छोड़ थी ,लेकिन बाद में मुझे बहुत अफ़सोस हुआ था ,उस समय मेरे बच्चे बहुत छोटे थे और मै दूसरी जॉब का सोच भी नही सकती थी ,चार साल के अंतराल के बाद मुझे फिर से अमृतसर के एक कालेज में लेक्चरार की नौकरी मिल गई थी,जहां मै केवल दो वर्ष ही रह पाई थी ।

दिव्या: शादी के कुछ सालो बाद फिर से नौकरी करना .. क्या कठिनाई आई और क्या सहयोग मिला परिवार से
रेखा जी: जब मुझे दुबारा नौकरी मिली तब मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी ,लेकिन मुझे दो वर्ष पति से अलग रहना पड़ा था । उस समय मेरे पति ने भी होम टाउन में बदली करवाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन नियति में हमारा अलग रहना लिखा हुआ था । उस वक्त मेरी सासू माँ और मेरी मम्मी ने मुझे पूरा सहयोग दिया ,उनके साथ होने से मुझे अपने बच्चों की चिंता नही रहती थी और मैने घर की जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर पूरी निष्ठा से सर्विस की । दो साल बाद मुझे फरीदाबाद में जाब मिल गई ,तब हमने फरीदाबाद में शिफ्ट कर लिया और तब से यहीं के हो कर रह गए ।
दिव्या: आप का बचपन कैसा रहा
रेखा जी: बचपन की याद आते ही मेरे होंठों पर मुस्कुराहट आ जाती है,सबसे बड़ी बेटी होने के नाते से मुझे घर में सभी का प्यार मिला ,मम्मी पापा तो प्यार करते ही थे मेरी दादी मुझे अपनी बेटी की तरह प्यार करती थी ,मेरे चाचा मुझे हमेशा अपनी छोटी बहन मानते है आज भी मै उनकी कलाई पर राखी बांधती हूँ ,जब मै छोटी थी तब मेरा हर जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाया करते थे ,मेरे नाना जी का घर हमारे घर के पास था ,इस कारण हमारा परिवार एक बहुत बड़ा संयुक्त परिवार की तरह था ,मै और मेरी बहने अक्सर अपने ममेरे भाई बहनों के साथ खूब हल्ला मचाया करते थे ,बहुत ही प्यारे दिन हुआ करते थे ।
दिव्या : आप अमृतसर से ..जहाँ का स्वर्ण मंदिर विश्व प्रसिद्ध है ... अमृतसर की कोई और बात जो आप हमारे साथ साझा करना चाहेंगी
रेखा जी: मै एक बहुत ही शर्मीली लड़की हुआ करती थी ,घर से स्कूल याँ फिर कालेज और फिर घर वापिस ,ज्यादा इधर उधर घूमती नही थी। मेरी दादी का आदेश था की शाम को घर में बत्ती जलने से पहले वापिस घर पहुंच जाओ ,बस तब से यही आदत बन गई । विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर के मैने बहुत बार दर्शन किये है ,जब भी अमृतसर जाती हूँ ,एक बार तो अवश्य दर्शन करने जाती हूँ ,बहुत सुकून मिलता है वहां जा कर ।
दिव्या :शादी के बाद आप दिल्ली आ गए थे कहा जाता है दिल्ली दिल वालो की .. क्या कहना चाहेंगी इस विषय में क्या सच में दिल्ली दिल वालो का शहर है
रेखा जी: ठीक कहा दिव्या ''दिल्ली है दिल वालो की'' शादी के बाद मेरे दिल्ली आने पर मेरे पतिदेव ने मुझे पूरी दिल्ली की सैर करवाई ,हम लोग वसंत विहार और उसके बाद मुनीरका डी डी ए फ्लैट्स में रहे ,वहां से हम हर रोज़ शाम को पैदल ही घूमते हए चाणक्य थियेटर तक और वापिसी भी पैदल मार्च करते हुए आते थे ,बहुत अच्छे दिन थे वो ।
दिव्या: आप की एक कहानी में देहरादून के टपकेश्वर मंदिर का जिक्र है तो हमारा शहर कैसा लगा कुछ इस विषय में बताइए
रेखा जी: जी हाँ दिव्या ,वैसे तो मै आपके शहर देहरादून बहुत बार गई हूँ देहरादून मेरे पति का पसंदीदा शहर है क्योकि उन्होंने पी जी डी ए वी कालेज से कैमिस्ट्री में एम् एस सी किया था और उनकी कई यादें इस शहर से जुडी हुई है ,लेकिन टपकेश्वर मंदिर मै दो बार ही जा पाई , आज भी जब मै आँखे बंद करती हूँ उस स्थल का पूरा दृश्य आँखों के सामने आ जाता है ,दो बहुत पुराने वटवृक्ष और नीचे की ओर जाती हुई सीढियां ,मंदिर के अंदर का शांत वातावरण ,शिवलिंग के उपर टपकता जल और पीछे कल कल बहता हुआ जल ,मन को शान्ति देता हुआ बहुत ही मनमोहक दृश्य ,बहुत ही अच्छा लगा वहां जा कर ।
दिव्या: भ्रष्टाचार, अनैतिकता, दुर्व्यवहार हत्या ..समाचार पत्र इसी तरह की घटनाओ से भरा रहता है समाज में व्याप्त बुराई की मुख्य वजह आप किसको मानती है
रेखा जी: सच में दिव्या हमारे समाज में अनेक बुराईयाँ व्याप्त है और इन सब की मूल जड़ हमारे विलुप्त होते संस्कार है ,आजकल हर आदमी भौतिकवादी बन रहा है ,पैसे के पीछे भाग रहा है ,एक दूसरे को देख कर लोगों में लालच बढ़ रहा है जो भ्रष्टाचार का मुख्य कारण है ,एकल परिवारों की वृद्धि हो रही है ,भागा दौड़ी की इस जिंदगी में माँ बाप को अपने बच्चों के लिए समय ही नही मिल पाता । एक और वजह है जिसे मै अवश्य कहना चाहूँ गी वह यह है कि हमारे समाज में अमीर और गरीब के बीच की बढती खाई ,आजकल इतनी महंगाई हो गई है कि गरीब की मूलभूत आवश्यकतायें ही पूरी नही हो पाती ,यह कारण भी देश में बढ़ती अराजकता का कारण बनता जा रहा है । तीसरी मुख्य वजह शराब है,जिसे पी कर इंसान अपने होश खो बैठता है , इसकी बिक्री पर तत्काल रोक लग जानी चाहिए ।

दिव्या: लड़कियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार की घटनाओ की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है समाज में हर कोई चिंतित है फिर भी लड़कियों के साथ हो बढ़ रही इन घटनाओ के पीछे किस को दोषी मानेगी ???
रेखा जी: यह एक गम्भीर और चिंताजनक विषय है ,लडकियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार का कारण हमारे समाज की ही संस्कारहीन पीढ़ी ,विक्षिप्त मानसिकता लिए हुए उभर कर आ रही है। अशिक्षित नारी ,परिवारों में नारी की अवहेलना करना ,उसे पड़ताडित करना ,जब नारी ही निराश और उपेक्षित रहे गी वह अपनी संतान को क्या संस्कार दे पायगी ,इस पुरुषप्रधान समाज में जो बच्चे देखेंगे वह वही सीखेंगे और उसी का अनुसरण भी करेंगे । लडकियों के साथ हो रहे दुर्वयवहार के लिए सरकार और न्याय व्यवस्था भी ज़िम्मेदार है ,आरोपियों को जल्द से जल्द कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए ताकि आगे से कोई दुर्व्यवहार करने से पहले हजार बार सोचे ।
दिव्या: अक्सर एक लड़की को दोष दे दिया जाता है आप का क्या विचार है इस विषय में
रेखा जी: दिव्या ,लड़की जो स्वयम घटना की शिकार होती है उसे दोष देना सरासर अनुचित है ,उसका तो तन मन और आत्मा तक आहत होती है और उसके लिए जो भी दोषी पाया जाये उसे तुरंत सजा मिलने का प्रवधान होना चाहिए ।
दिव्या: कहा जाता है जैसा राजा होगा वैसी ही प्रजा होगी ... हमारे देश के हालत देखते हुए आप क्या सोचती है क्या हमरे देश के नेताओ का आचरण अनुकरणीय है ???

रेखाजी: दिव्या आपकी यह बात बिलकुल सही है'' जैसा राजा होगा वैसी ही प्रजा होगी''समाज में हर बुराई उपर से नीचे को आती है जब उपर करोड़ों के घोटाले हो रहे हो तो बेचारा एक चपड़ासी क्यों नही सौ रूपये की रिश्वत ले सकता ,हमारा देश सचमे रसातल में जा रहा है ,यह एक विचारणीय विषय है ।
दिव्या: एक तरफ युवा वर्ग जनहित के लिए सोचता है उसमे आक्रोश है देश की अव्यवस्था में वहीँ दूसरी तरह बुजुर्ग नेता कहे या संत उनका आचरण कहीं से भी विचारणीय नहीं है
रेखा जी: हाँ ,आज की युवा शक्ति बहुत कुछ कर सकती है ,उनमे पनप रहे आक्रोश को जरूरत है साकारात्मक दिशा निर्देश की ,हम सब ने देखा है किस तरह अन्ना के आन्दोलन में युवा को एकजुट होते ,दामिनी हो या गुडिया अन्याय के विरुद्ध हमारे देश के युवा एकमत है और मुझे विशवास है कि एक दिन यही युवा वर्ग इस देश मे बदलाव लायेगा ।
दिव्या: आप एक अध्यापिका भी रही है को ऐसी घटना जिसमे जिंदगी में एक सबक दिया हो
रेखा जी : दिव्या, अध्यापन एक ऐसा पेशा है जिसमे आप युवा वर्ग के संसर्ग में रहने कारण उन्हें बहुत नजदीक से देखते हो और उनको समझ सकते हो ,मैने एक ऐसी छात्रा को करीब से देखा है जिसने अपने पिता की मौत के बाद पढाई के दौरान पार्ट टाइम नौकरी करते हुए कठिन परस्थितियों में अपने छोटे भाई बहनों और माँ को संभाला ,आज वह आर्मी में सैकिंड लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर कार्यरत है ,जब मन में कुछ करने की इच्छा और विश्वास हो तो जिंदगी में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है

दिव्या: गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सबसे ऊपर है पर आज के समय में छात्र न तो गुरु की इज्जत करते है और न ही अब गुरुजन भी छात्रो के भविष्य के लिए सोचते है आप के क्या विचार है इस विषय में

रेखा जी: भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सदा सबसे ऊपर रहा है ,भारतीय परमपरा में गरु शिष्य प्रणाली के अनेक उदहारण मिलते है लेकिन यह भी एक गम्भीर विषय है, आजकल शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है जो देश के लिए ठीक नही है जब शिक्षा को पैसे से तोला जाए गा तो ज्ञान का ह्रास निश्चित है तब न तो छात्र अध्यापक की इज्जत करें गे और अध्यापक बस अपनी झोली भरते रहेंगे ।
दिव्या: आज कल न्युकिलर फेमली का चलन बढ़ा है इसके बहुत से नुकसान देखने को मिल रहे है फिर भी सब एकल परिवार में ही रहना चाहते है ... आप का क्या कहना
रेखा जी : यह सही है कि आज कल न्युकिलर फेमली का चलन बढ़ा है परन्तु कई बार नौकरी दूर होने के कारण भी एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि हो रही है ,बच्चे अपने माता पिता को साथ रखना चाहते है लेकिन माँ बाप ही वह जगह नही छोड़ना चाहते जहां उन्होंने सारी जिंदगी बिताई है ,वैसे अगर देखा जाए तो संयुक्त परिवार के अनेक फायदे है अगर इस पर लिखने बैठूं गी तो पूरा ब्लॉग तैयार हो जाएगा

दिव्या: आधुनिकता और विकास के नाम पर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को विनाश के मुहाने में ला के छोड़ दिया है क्या विकास के नाम पर अन्धानुकरण सही मानती है आप

रेखा जी: कुछ हद तक यह सही है कि आधुनिकता और विकास के नाम पर हम अपनी हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूल रहे है और विकास के नाम पर अन्धानुकरण तो बिलकुल गलत है ,हमे अपनी संस्कृति और सभ्यता को साथ लेते हुए दुनिया के साथ चलना है और देश को विकसित करना है

दिव्या: आप का पहला ब्लॉग किस में था ब्लोगिंग जगत में जुड़ना कैसा हुआ
रेखा जी : जी,मैने कब लिखना यह तो मुझे भी याद नही , जब स्कूल ,कालेज,यूनिवर्सिटी में मै पढ़ती थी तब मै लेख कविता और विज्ञान के कई विषयों पर हिंदी एवं अंग्रेजी में लिखा करती थी,अपने कार्यकाल के दौरान आल इण्डिया रेडियो ,रोहतक से विज्ञान पत्रिका के अंतर्गत अनेक बार मेरे दुवारा वार्ता प्रसारण भी हुआ,अपनी नौकरी केकार्यकाल में भी मैने कई लघु नाटक लिखे है जिसका छात्राओं ने मंच पर प्रदर्शन कर कई इनाम भी जीते है । लेखिका के रूप में मै रिटायरमेंट के बाद पहली बार जागरण जंक्शन पर आई और उसके बाद मैने पीछे मुड़ कर नही देखा .पत्रिकाओं में सबसे पहले ''वुमेन आन टाप'' में मेरा लेख ''बड़े मियाँ दीवाने ''प्रकाशित हुआ ,उसके बाद 'मेरी सजनी '',दिल्ली प्रेस ''से प्रकाशित पत्रिका ,कई ई पत्रिकाएँ ,निर्झर टाइम्स व् अन्य कई अखबारों में मेरे लिखे हुए लेख ,कवितायें प्रकाशित होने लगी | अपनी इस कामयाबी का श्रेय मै जागरण जंक्शन को देती हूँ ।

दिव्या: ब्लोगिंग से जोडी कोई मजेदार घटना
रेखा जी: ब्लोगिंग से जुडी कोई घटना तो इस समय मेरे जहन में नही आ रही ,हाँ यह मेरा सौभाग्य है कि जे जे के कारण, मै आपसे,निशा जी ,प्रदीप सिंह खुशवाहा जी ,शाशिभूष्ण जी ,जवाहर जी ,योगी जी अनिल जी ,संतोष जी ,चातक जी ,मनोरंजन जी ,रीता जी ,सरिता जी और कई अन्य लेखक मित्रों से मेरी जान पहचान हो पाई|

दिव्या: जिंदगी का यादगार लम्हा
रेखा जी: जिंदगी का यादगार लम्हा ,मेरा अपने पति से मिलना था ,उस पल को ,जब मैने उन्हें पहली बार देखा था वह पल आज भी मेरी आँखों में बसा हुआ है ।

दिव्या : कोई ऐसा पल जिसको आप बदलना चाहेंगी
रेखा जी :नही दिव्या ,जिंदगी बहुत खूबसूरत है ,जो कुछ भी मुझे मिला है और जो भी आगे मिलेगा सबका स्वागत है ।
दिव्या: रेखा जोशी को आप क्या कहेंगी
रेखा जी : रेखा जोशी एक ऐसी शख्सियत है जो हर ज़िम्मेदारी को पूर्णता से करना जानती है ,चाहे वह कोई घरेलू कार्य हो याँ कोई समाज से जुड़ा अन्य कार्य ,वह समस्याओं को सुलझाने में यकीन करती है न कि उनके संग चलने में ।

दिव्या: कोई पसंदीदा पंक्ति या सूक्ति
रेखा जी: परमात्मा पर सदा विश्वास रख कर वही कार्य करो जो आपकी अंतरात्मा आपसे करने को कहती है ।

दिव्या: कुछ शब्द जिनका आप को अपने शब्दों में परिभाषित करना है
रेखा जी
गुरु
गुरु वही जो अपने शिष्यों को सही मार्ग दिखाए और उस पर चलने की प्रेरणा दे ।

माँ
माँ ईश्वर का दूसरा नाम है और अपनी संतान की प्रथम गुरु ।

परिवार
परिवार वही है जहां सभी सदस्य प्रेमपूर्वक मिलजुल कर रहें ।

शादी
शादी एक प्यार भरा बंधन ।

समाज
समाज ऐसे लोगों का समूह जो सुख दुःख में एक दूसरे का साथ दे
कोई एक ख्वाहिश
मिर्ज़ा ग़ालिब के अनुसार ''हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले ''
मेरी स्वरचित पंक्तियाँ
चाहते चाहते चाहते है
ज़िन्दगी में चाहते
कुछ पूरी कुछ अधूरी
चलता रहे यह यूं ही
न खत्म हो कभी भी
यह सिलसिला। ……
बहुत ही सुंदर रचना बहुत अच्छा लगा आप से बात करके, अपना अंगना में आपकी उपस्थिति ने यादगार बना दिया है आप यूँ हीं लिखते रहिये इसी दुआ के साथ हम विदा लेते है फिर मिलेंगे चलते चलते ...

Saturday 7 September 2013

मुस्कुराता हुआ चेहरा

तुम  इस  कदर छाये हो ख्यालों  में मेरे 
कुछ और नजर आता नही सिवा तुम्हारे 
मुस्कुराता हुआ चेहरा समाया निगाहों में 
महका गया आज वो मेरी तनहाइयों को 

Friday 6 September 2013

“नव परिवर्तनों के दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग”

अंग्रेजी में स्नातक होने पर भी मनु ने हिंदी में लिखना शुरू कर दिया ,वह इसलिए कि हिंदी हमारी अपनी मातृ भाषा हैऔर  हम अपने विचारों को बहुत ही सुगमता से अभिव्यक्त कर सकते है ,यह विचार ही हैं जो समाज को प्रभावित कर उसे एक नई  दिशा दे सकते है । हिंदी भाषा ही एक ऐसी भाषा है जो भारतवासियों  को आपस  में जोड़ सकती है ।अपने  विचारों को मनु हिंदी में समसमायिक विषयों पर ब्लॉग लिख  कर इंटरनेट से  विभिन्न मंचों  पर पोस्ट करने लगा । जैसा कि हम सब जानते है, आजकल इंटरनेट का जमाना है ,जिसने पूरी दुनिया की दूरियों को नजदीकियों में बदल दिया है । दूर दराज़ बैठे हुए लोगों से क्षण भर में ही संपर्क स्थापित किया जा सकता है ,एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान भी किया जा सकता है ,यही कारण है कि मनु के ब्लॉग'स को केवल भारत में ही नही दुनिया के कई देशों में भी पढ़ा और सराहा जाने लगा है  ,उसकी पोस्ट पर कभी अमरीका से कमेंट्स आते है तो कभी रूस से यां जर्मनी से ,कनाडा ,अबूधाबी,पोलैंड ,स्वीडन सारे के सारे देश सिमट कर  मनु के ब्लाग्स की साईट पर आ गए | उनकी प्रतिक्रियाएं पढ़ कर मनु के चेहरे पर चमक आ जाती है ,हिंदी भाषा में लिखे गए ब्लॉगस को केवल भारत में नही पूरी दुनिया में पसंद किया जा रहा है| इंटरनेट ,फेस बुक,गूगल के इस नव  दौर में हिंदी, भारत के जनमानस की भाषा ,न केवल दुनिया भर में लोकप्रिय हो रही है  बल्कि  दिनोदिन इसका रूप निखर कर आ रहा है | हिंदी भाषा में लुप्त हो रहा छंद विधा नव परिवर्तनों के आज के इस दौर में फिर से उभर कर आ रही है ,हिंदी साहित्य में रूचि  रखने वाले न केवल इस विद्या के रस का आनंद उठा रहे है बल्कि इसे सीखने का भरसक प्रयास भी कर रहें है |आजकल मनु  जैसे हजारों ,लाखों ब्लागर्स  हिंदी में ब्लागिंग कर रहे है | कई ब्लागर्स  ब्लागिंग से अपनी हाबी के साथ साथ आर्थिक रूप से भी सम्पन्न भी हो रहे है | आज मनु को अपने फैसले पर गर्व है कि उसने बदलते हुए इस नयें दौर में अपने विचारों कि अभिव्यक्ति के लिए हिंदी ब्लागिंग को चुना | इसमें कोई दो राय नही है कि नव परिवर्तनों के इस  दौर में एवं आने वाले समय में हिंदी ब्लागिंग का भविष्य उज्जवल है | 

Wednesday 4 September 2013

शिक्षक दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें


दीपक ज्ञान
शिक्षक को नमन
 हरे अज्ञान

गुरु सिखाता
राह करे रौशन
तम मिटता

ज्ञान का दीप
बनाता उज्जवल
जीवन राह

शिक्षक दिवस पर  हार्दिक शुभकामनायें

रेखा जोशी


हाइकु

हाइकु

तो कौन हूँ मै
नचिकेता का प्रश्न
पूछा यम से 
..................
कौन है पिता 
शरीर विनाशी है 
मेरी आत्मा का 
.................
जीवन पथ 
तलाश जिसे रहा 
मौत का पथ 
................
 यम का दर 
उठ रही जिज्ञासा 
मृत्यु रहस्य
...................
आत्मा अमर
सपना यह जग
तन नश्वर

रेखा जोशी






Tuesday 3 September 2013

खूबसूरत थी जिंदगी

खूबसूरत थी जिन्दगी जब हाथो में हाथ था तुम्हारा
खूबसूरत थी जिंदगी जब प्यार भरा साथ था तुम्हारा
दे कर दर्द कहाँ चले गए हमे अपनी यादों में छोड़ के
पाते है हम चैन औ सुकून ख्याल आता है जब तुम्हारा 
रेखा जोशी

Monday 2 September 2013

उड़ने वाले पंछी

ओ  उड़ने  वाले  पंछी सुन ,बता तेरा क्या नाम है
अपने  सुंदर पंख  बिखेरे,  फुदक रहे सुबह शाम है
...............................................……………
मस्त पवन दे रही हिचकोले, डाली डाली झूल रहे
मेरी बगिया में तुम आ के ,गाना मधुर सा गा रहे
रंग बिरंगी  तेरी काया ,रूप  अनुपम तुमने पाया
दूर देश के पंछी हो तुम , अब  आगे  कहाँ जा रहे
.................................................. …………
रंग बिरंगी  तेरी काया ,रूप  अनुपम तुमने पाया
मधुर  कंठ  है  तूने  पाया ,गीत  मधुर  तूने  गाया
आज़ाद नभ में उड़ते तुम,मुक्त सब बंधनों से हो
मधुर रस से भरा मेरा मन,तूने जिसको बिखराया
.................................................. …………
ओ  उड़ने  वाले  पंछी सुन ,बता तेरा क्या नाम है
अपने  सुंदर पंख  बिखेरे,  फुदक रहे सुबह शाम है

रेखा जोशी