Tuesday, 24 September 2013

वह प्यारे पल

वह प्यारे पल

बचपन की याद आते ही मानस पटल पर कई स्मृतियाँ  तैरने  लगती है ,माँ का अंगना और मेरा वहां  अपनी सहेलियों संग खेलना ,मेरे पास एक,बहुत ही सुन्दर  गुड़िया थी ,जिसे मेरी नानी ने ख़ास तौर पर मेरे लिए बनाया था ,मै सदा उसे अपने साथ ही रखती थी और उस पर मेरी एक सहेली का दिल आ गया लेकिन मै उसे अपनी गुड़िया को हाथ भी लगाने नही देती थी ,उसने मेरे साथ एक चाल चली और अपने गुड्डे को मेरे पास ले आई ,मेरा बालमन जो शादी के बारे में जानता भी नही था ,अपनी गुड़िया की शादी रचाने की तैयारी में जुट गया उसके गुड्डे के साथ ,घर में पार्टी का आयोजन किया गया ,मैने अपने परिवार के सदस्यों को भी शामिल कर लिया ,पूरी सब्जी हलवा सब अपनी माँ से बनवाया ,उस गुड़िया के लिए कपड़े ,गहने भी इकट्ठे किये और अपनी गुड़िया से उसके गुड्डे को वरमाला पहना कर उसकी विदाई भी कर दी | उसके बाद जब वह लडकी मेरी गुड़िया को ले कर चली गई तब मै बहुत रोई थी और अपनी गुड़िया को वापिस लाने की जिद करने लगी ,किसी तरह से मेरी माँ उस लड़की के घर से मेरी प्यारी गुड़िया को ले आई और उसे देखते ही मेरी आँखों से ख़ुशी के आंसू बहने लगे थे ,आज भी याद करती हूँ तो उस शादी की पूरी तस्वीर मेरी आँखों के सामने उतर आती है | अब सोचती हूँ तो महसूस कर सकती हूँ कितनी मुश्किल होती है बिटिया की विदाई | 

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