Sunday 31 May 2015

मृत्यु के बाद भी है ज़िंदगी

सफर नीर का
पर्वत से सागर तक
याँ फिर
सागर से पर्वत तक
चलता जा रहा
निरंतर
रुकता नही
बस केवल  है भ्रम
समाना नीर का
सागर में
ज़िंदगी भी रूकती नही
चलती सदा
मृत्यु के बाद भी
है ज़िंदगी
बदलता केवल स्वरूप
उसका

रेखा जोशी



चल इधर से अब यहाँ पत्थर मिले

चाह थी अब प्यार का मंज़र मिले 
दोस्त हाथों में लिए ख़ंजर मिले

देख उनको गैर के आगोश में 
दिल हमारे को सजन निश्तर मिले 

तोड़ कर दिल को हमारे क्या मिला 
चल इधर से अब यहाँ  पत्थर मिले 

घूँट कड़वा प्यार में  हमने पिया 
ज़हर पी कर अब हमे बिस्तर मिले  
.
काँच सा यह दिल यहाँ तोडा  गया 
ज़ख्म सीने में हमें अन्दर मिले 

रेखा जोशी 

निकला दगाबाज [वर्ण पिरामिड \

ये
दिल
माने न
है पागल
करता याद
उसे बार बार
निकला  दगाबाज

रेखा जोशी 

वर्ण पिरामिड

मै 
उड़ी 
नभ में 
पँछी  बन 
नीला गगन 
उन्मुक्त उड़ान 
छू लिया  आसमान 

रेखा जोशी 

एकरस हो जायें हमजब भी मिले ईश तुमसे

जैसे मिले नदिया का नीर  अपार  सागर में 
खो देता मिल कर नीर भी आकार  सागर में 
एकरस हो जायें हमजब भी मिले ईश तुमसे 
समायें  तुझ में हम जैसे जलधार  सागर  में 

रेखा जोशी 

Friday 29 May 2015

सदोका [नदी ]


करती सदा 
नदी अठखेलियाँ 
सागर से मिलना 
आस उसकी 
वह जीवन दाती 
बहती जलधारा 

रेखा जोशी

सदा करती
नदी अठखेलियाँ
जीवन दाती 

एहसान तेरा है सजन जो अब मिला यह प्यार


कब   दी  हमारी  ज़िंदगी  संवार  कहते  आज 
यूँ  मत करो  हमसे सजन तकरार कहते आज 
एहसान  तेरा है सजन जो अब मिला यह प्यार 
होगा  हमे  सोचा  नही  यह  प्यार कहते आज 
रेखा जोशी 

Thursday 28 May 2015

सपना सच हो उसका

सुबह सुबह
ठिठुरती सर्दी
कूड़े के ढेर में
वह
बीनता सपने
टुकड़ों में
फलों के रोटी के
नही सोऊँगा खाली पेट
सिर पर होगी छत
कह रहा उससे
वह जो
मांगता वोट
दे दूँगा जीते हारे
वह बला से
सपना
सच हो उसका

रेखा जोशी

हो गये पागल बेचारे मिस्टर किशोर

''तनु वेड्ज़ मनु रिटर्न्ज़ ''फिल्म के एक दृश्य से प्रेरित हो कर मैने यह हास्य व्यंग रच दिया

त्रस्त पत्नी की बातों से
हो गये आपे से बाहर इक रोज़
बेचारे मिस्टर किशोर
कुर्सी मेज डाले सब तोड़
झकझोर दिया पूरा घर
घबरा कर पत्नी ने
लिया बुला डाक्टर को घर
सुला दिया शांत करने
देकर गोली डाक्टर ने
फिर फैल गई झूठी खबर
आग की तरह सब ओर
हो गये पागल अब
बेचारे मिस्टर  किशोर
नींद से जागे जब वह
लज्जित हुये  करनी अपनी पे
जोड़े हाथ पत्नी के आगे
मांगी माफ़ी दिल से
क्रोध बड़ा भयंकर
रखूँ गा खुद पर काबू
पर छूट गया था तीर कमान से
थी फैल चुकी अफवाह चहुँ ओर
गली गली में  मचा शोर
हो गये  पागल
बेचारे मिस्टर  किशोर

रेखा जोशी


खड़ा फिर भी ठूठ अब माली की नज़र भी उठ चुकी

सूख  गये  पत्ते  अब  डाली  डाली  भी  सूख  चुकी 
खड़ा फिर भी ठूठ अब  माली की नज़र भी उठ चुकी 
लहराती  थी  डाली   जहां   कभी   खिलते  थे  फूल  
निष्फल  जीवन जीने  की यहाँ  आस भी टूट  चुकी 

रेखा जोशी 

तुम वफ़ा प्यार में अब निभाया करों


ज़िंदगी में हुनर अब दिखाया  करो 
तुम मुहब्बत भी थोड़ी कमाया करो
… 
देखो' ना तुम हमें प्यार से यूँ सजन
दिल के' अरमान ना  यूँ जगाया करो
....
प्यार की राह में मुश्किलें हैं बहुत
तुम वफ़ा  प्यार में अब निभाया करों
....
हम सदा प्यार तुमसे करेंगे सजन
गैर से ना मगर  दिल लगाया करो

दो दिनों  की यहाँ ज़िंदगी है सजन
हर ख़ुशी तुम यहाँ अब मनाया करो

रेखा जोशी

प्यास दिल की अधूरी अभी रह गई

बात दिल की ज़ुबाँ पर धरी रह गई
इक कहानी मगर अनकही रह गई

दिल मचलता हुआ कब कहाँ खो गया
प्यास दिल की अधूरी अभी रह गई

यूँ चले क्यों गये छोड़ कर तुम हमे
मै सफर में अकेली खड़ी रह गई

अब न जाना हमें तड़पा' कर तुम कभी
ज़िंदगी में अधूरी ख़ुशी रह गई

वार दी अब सजन प्यार पर ज़िंदगी
प्यार बिन कुछ नही ज़िंदगी रह गई
रेखा जोशी

Tuesday 26 May 2015

पा कर तुम्हे आज पा लिया सारा जहाँ हमने


इस  भरी  दुनियाँ  में कोई अपना नहीं देखा 
किसी की आँखों सेप्यार छलकता नहीं देखा 
पा कर तुम्हे आज पा लिया सारा जहाँ हमने 
देखी  धरती  गगन  देखा  तुमसा नहीं देखा 

रेखा जोशी 

Monday 25 May 2015

अलिवर्णपाद छंद



कहते रहते 
तुम हो नादान 
आ जाती सबकी 
बातों में हमेशा 
ख़त्म कर दिया 
मनोबल मेरा 

रेखा जोशी 

बहक गये दर्द की गलियों में हम तो

बातो में उन्हें आता है बहलाना
दिल तो हमारा पगला है दीवाना
बहक गये दर्द की गलियों में हम तो
दर्द का हमसे अब रिश्ता है पुराना
रेखा जोशी

महक बसी तेरे प्यार की डायरी के पन्नों में


रखी   सँभाल  यादें   तेरी  डायरी  के  पन्नों  में 
लिख दी सभी बाते दिल की डायरी के पन्नों में
पढ़ के  उसे  पाता  फिर चैन ओ सकूँ दिल मेरा
महक  बसी  तेरे  प्यार  की  डायरी के पन्नों में

रेखा जोशी


Saturday 23 May 2015

लम्बे लम्बे बाँस [नवगीत ]

माटी रोती
चाहती पकड़ना चाँद
आसमान को छू रहे
लम्बे लम्बे बाँस

खाने को घास
नाच रही  बकरियाँ पगली
नोचते कौवे अखियाँ रोती
भीग रहे आँचल
सिसकती आहें
दिखा कर घास
पीटते बाँस

दिखाते सुहाने सपने
मुखौटे लगाये
बँसी बजाते
लम्बे लम्बे बाँस

जलता दीया रोती बाती
अँधेरी काली रात
जुगनूयों  की आस
टिमटिमाती धरा
फड़फड़ाते श्वास
अधर पर हास
मुस्कुराते  बाँस

साँझ सवेरे
दौड़ती आँखे ढूँढती राहें
काटते श्वान
रास्ता रोके
लम्बे लम्बे बांस

रेखा जोशी






इन्तिहा दर्द की

हो गई
इन्तिहा  दर्द की
कुचल दिया मसल दिया
भावनाओं को मेरी  बैरी सजन ने
चला कर छुरिया सीने में
बन रहा अनजान कोई
भीगी है पलके टपकते है आँसू
परवाह नही निर्मोही वो
घूम रहा पत्थर सा दिल लिये
अनजान सा चलता रहा
अपनी ही राह पे
काश पिघले सीने का पत्थर कभी
काश ऐसा ही दर्द हो कभी
सीने में उसके
फफक फफक कर रोये
वह भी कभी
है दिल क्या चीज़
समझ सके वो भी
कर सके महसूस वो
इन्तिहा दर्द की

गिरेगी बिजली आज तो फिर किसी पर

चेहरा   मासूम   आँखों  में  शरारत
है उपर भी क़यामत नीचे क़यामत
गिरेगी बिजली आज तो फिर किसी पर
ऐ खुदा रखना सदा  हम पे इनायत

रेखा जोशी

Friday 22 May 2015

अब शमा बुझने लगी परवाने' के जाने के बाद


छुप गया कोई कहीं फिर पास अब आने के बाद
याद आई फिर हमें तेरे कहीं जाने के बाद
....
दूर हमसे तुम चले जाना मगर आना न याद
रात  भर रोते  रहे गे  फिर सजन हम जाने के बाद

जान तुम तो हो हमारी क्या कहें तुमसे सजन युँ
टूट जायेगा हमारा फिर सजन दिल जाने के बाद 

छोड़ कर साजन हमे अब तुम चले जाओ अगर युँ
जान दे देंगे सनम फिर हम यहाँ अब तेरे जाने के बाद
....
खत्म होगा प्यार में इस बेबसी में तड़पना युँ
अब शमा बुझने लगी परवाने' के जाने के बाद

रेखा जोशी








नहीं सहूँगी अत्याचार

आँखों में आँसू लिये
छमिया खड़ी थी मेरे द्वार
बिठाया उसे प्यार से
फिर पिलाया पानी उसे
सुबक सुबक कर बोली फिर
रोज़ रोज़ की मारपीट से
हो गई अब बेज़ार
नहीं समझता जो प्यार से
उसके ही  अंदाज़ से
लूँगी बदला अब
खग की भाषा खग ही जाने
बात बिलकुल सही
उठा लूँगी  लाठी गर
उठेगा  उसका हाथ
तोड़ दूंगी हाथ अगर
करेगा मुझपे वार
और नहीं अब और नही
नहीं सहूँगी अत्याचार
अब
नहीं सहूँगी अत्याचार

रेखा जोशी 

Thursday 21 May 2015

नहीं प्यार को था निभाना अगर

न तुमने  कभी की कदर हमसफ़र 
युँ कैसे कटेगा सफर हमसफ़र
नहीं प्यार को था  निभाना अगर 
मिले तुम हमे क्यों इधर हमसफ़र

रेखा जोशी 


Wednesday 20 May 2015

जुड़ गये देखो साहिल जुदा होकर भी पुल से

बहती  रहती  सदा  किनारों  के बीच जीवन भर
हूँ  जीवन  दाती   धाराओं   के   बीच  जीवन भर
जुड़  गये  देखो  साहिल  जुदा  होकर भी पुल से
हो गया मिलन अब दो पाटों के बीच जीवन भर

रेखा जोशी 

जीवन की राह पे तुमसा मनमीत मिलाया

झंकृत  हुआ  मन  अधरों  ने गीत गुनगुनाया
जीवन की राह पे  तुमसा मनमीत मिलाया
ज़िंदगी  में  दोस्त  मिला  तुमसे  स्नेह अपार 
हूँ   खुशनसीब  जो  मैने   तुमसा  मीत  पाया  

रेखा जोशी

चले हाथ थामे जहाँ ले गया

ज़मीं से पकड़ आसमां ले गया 
मुक़द्दर कहाँ से कहाँ ले गया 
.... 
खिली है चमन में बहारें यहाँ 
 ख़ुशी है जिधर वह  वहाँ ले गया 
.....
नशा आज छाया था कुछ इस तरह
चले हाथ थामे जहाँ ले गया 
.... 
जला कर हमारा जहाँ  चल दिये 
मिटा प्यार के सब निशाँ ले गया 
… 
नहीं कोई ' मेरा यहाँ क्या करे 
सजन साथ में कहकशाँ ले गया 

रेखा जोशी 

Monday 18 May 2015

आइना जिंदगी का [गीत]


यह मन तो मेरा पगला है
पर आइना  ये जिंदगी का
...
डूब जाता है कभी तो ये 
भावनाओं के समन्दर में
कभी तो अथाह प्यार उमड़े 
अंत नही कोई नफरत का
...
रोता  बिछुड़ने  से ये  कभी
गाता गीत खुशियों के कभी
आँसू  बहाता  भी  ये  कभी
है प्याला  भी मधुर प्रेम का
...
छोटा  सा है यह जीवन रे
हर पल युँ हाथ से छूटा रे
सुन ओ पगले मनुवा मेंरे
है मोल बहुत रे इस पल का
...
यह मन तो मेरा पगला है
पर आइना ये  जिंदगी का

रेखा जोशी


बेमतलब आवारा सी हो गई यह ज़िंदगी

सूनी सूनी सी
बेमतलब आवारा सी
हो गई यह ज़िंदगी

कौन है  तेरा यहाँ
पूछे जो कभी हाल तेरा
अपनी ही धुन में सबकी
चली जा रही है ज़िंदगी
बेमतलब आवारा सी
हो गई यह ज़िंदगी

पागल मन
टीस सीने में दबाये
खुद ही हँसे रोये मन में अपने
और कभी
खुद अपने से ही बात करे
तन्हा तन्हा आज
बेमतलब आवारा सी
हो गई यह ज़िंदगी

रेखा जोशी

न भूलना कभी बंदे उस परवरदिगार को

दया करुणा स्नेह और वह प्यार देता है
ज़िंदगी में खुशियाँ भी वह अपार देता है
न भूलना कभी बंदे उस परवरदिगार को
अनुकँपा हो उसकी जीवन सँवार देता है

रेखा जोशी


Sunday 17 May 2015

रखे ध्यान न बहायें व्यर्थ जल हम

बुझती नही प्यास तपती गर्मी में
है व्याकुल सभी पशु पँछी गर्मी में
रखे ध्यान न बहायें व्यर्थ जल हम
नीर से ही  प्यास बुझती गर्मी में
रेखा जोशी

चार दिन की चांदनी फिर अन्धेरा छाया

लुभाती हम सभी को सुन्दर सलोनी काया
लेकिन देखो तो वक्त की यह कैसी माया
सुन्दर से सुन्दर देह भी आखिर जाती ढल 
चार दिन की चांदनी फिर अन्धेरा छाया
रेखा जोशी

धरतीपुत्र की व्यथा

धरतीपुत्र की व्यथा 

आसमान में उमड़ते घुमड़ते काले काले बादल देख कर और झमाझम बारिश से जहाँ किसानो के दिल बल्लियों उछलने लगते थे वहीँ बेमौसम की लगातार बरसात और पथरीले ओलों ने आज उनकी अनथक मेहनत पर पानी फेर दिया। आजमगढ़ के कुरियांवा गांव निवासी गुलाबी और उसके पति रामकुमार ने गेहूं काटकर रखा  था। खराब मौसम के चलते वह जल्द से जल्द मड़ाई करने के लिए परेशान थे कि  इसी बीच तेज़ बारिश से उनकी पूरी की पूरी फसल पानी में डूब गई। इस सदमे को बेचारा रामकुमार सह न सका और उसी रात हृदयगति रुक जाने से उसकी मौत हो गई । 

सवेरे से ही रामकुमार की दोनों बेटियों रधिया और उसकी छोटी बहन रमिया ने अपने आप को पीछे की छोटी कोठरी में बंद कर लिया tरामकुमार की पत्नी गुलाबी  का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया ,उधर रामकुमार के पिता रामधन के दिल का हाल शायद ही कोई समझ पाता,उपर से पत्थर बने बुत की भांति अपना सर हाथों में थामे ,घर के बाहर एक टूटी सी चारपाई पर वह निर्जीव सा पड़ा हुआ था ,लेकिन उसके भीतर सीने में जहाँ दिल धडकता रहता है ,उसमे एक ज़ोरदार तूफ़ान ,एक ऐसी सुनामी आ चुकी थी जिसमें उसे अपना  घर बाहर सब कुछ बहता दिखाई दे रहा था ,''कोई उसे क्यों नही समझने की कोशिश करता,बेटे की मौत का सदमा उसकी बर्दाश्त से बाहर था , पता नही उसकी किस्मत में क्या लिखा था परन्तु वह कर भी क्या सकता ,उसका इकलौता बेटा उसे सदा के लिए छोड़ कर चला गया और  उसके खेतों ने भी उसका साथ छोड़  दिया ,फसल बर्बाद हो गई ,लेकिन उसके सर पर सवार क़र्ज़ की मोटी रकम को वह कैसे चुकता कर पायेगा  ,उपर से भुखमरी ,घर गृहस्थी का बोझ एक बार तो उसके दिल में आया कि क्यों न जग्गू की तरह वह भी नहर में कूद कर अपनी जान दे दे ,लेकिन अपनी बहू गुलाबी ,पोतियाँ रधिया  और रमिया कि खातिर वह ऐसा भी तो नही कर सकता ,जग्गू के परिवार की  उसके मरने के बाद हुई दुर्गति से वह भली भाँती  परिचित था ''|आज रामधन अपने आप को बहुत असहाय ,बेबस और निर्बल महसूस कर रहा था ।

प्रकृति की इस मार से देश भर के किसानों पर कहर टूट पड़ा है। खेतों में बर्बाद फसल देख  मरने वालों का सिलसिला थम ही नहीं रहा ,किसानो की व्यथा का कोई पारावार नहीं है ,आजमगढ़ का रामकुमार हो या  बलिया का राधेश्याम , गाजीपुर का हरिभाई हो या जौनपुर का इंद्रजीत,पंजाब ,हरियाणा हो या पूर्वांचल भारत के हर गाँव में  एक-एक करके  किसान दम तोड़ रहे है ,गरीबी रेखा के नीचे रहते कई किसान भाई ,जिनका जीवन सदा उनके खेत और उसमे लहलहाती फसलों के इर्द गिर्द ही घूमता रहता था ,आज उनके घर के चूल्हे ठंडे पड़  चुके है ,गाँव के गाँव  शोक में पूरी तरह डूबे  हुए है । अपनी  फसल की बर्बादी का दंश कई किसान नहीं झेल पा रहे और हृदयाघात के चलते वह इस दुनिया से कूच कर रहे है और कई किसान भारी क़र्ज़ के कारण खुद अपने ही हाथों अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने पर मजबूर हो रहे है । 

कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला  हमारा भारत देश , जिसकी  सोंधी सी महक लिए माटी में सदा लहलहाते रहे है ,हरे भरे खेत खलिहान,किसानो के इस देश में ,उनके साथ  आज क्या हो रहा है ?  उनके सुलगते दिलों से निकलती चीखे कोई क्यों नही सुन पा रहा ,संवेदनहीन हो चुके है लोग यां सबकी अंतरात्मा मर चुकी है ,इस देश को चलाने वाले भी शायद बहरे  हो चुके है ,भारत के धरतीपुत्र अपनी अनथक मेहनत से दूसरों के पेट तो भरते आ रहें है ,लेकिन वह आज अपनी  ही जिंदगी का बोझ स्वयम नही ढो पा रहे और अब हालात यह हो गए है की वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहें है। 

धरती से सोना उगाता
धरतीपुत्र कहलाता
भर कर पेट सबका
खुद भूखा सो जाता
फिर भी नहीं घबराता
देख फसल खड़ी खलिहान में
मन ही मन हर्षाता
लेकिन नही सह पाता
प्रकृति और क़र्ज़ की मार 
मन ही मन टूट जाता 
कभी झमाझम बारिश
कभी सूखे से दुखी लाचार 
आखिर
थक हार कर जीवन से
असहाय वह छोड़ कर
सबका साथ
थाम लेता अंत में 
मौत का हाथ

रेखा जोशी 

आओ हम भर दे श्वेत स्याम के बीच महकते रंग अनेक

नहीं बँधी ज़िंदगी 
केवल दो रंग समेटे 
श्वेत स्याम 
इसके बीच भी 
है मुस्कुराती खिलखिलाती 
ज़िंदगी ज़िंदगी
अनेक रंगों से सजी
थिरक रहे खूबसूरत नज़ारे
आवरण नीला ओढ़े
लिये  आगोश में अपने अवनी
रंगीन पुष्पित पल्ल्वित
हरा भरा संसार
आओ सजायें ज़िन्दगी अपनी
रंग भर अनेक
छोटी छोटी खुशियों से
आओ महकायें ज़िंदगी अपनी
बाँट खुशिया सब में अनेक
आओ हम भर दे
श्वेत स्याम के बीच
महकते रंग अनेक

रेखा जोशी





Friday 15 May 2015

अंतर्राष्ट्रीय परिवार -दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

घर अँगना
रहता खुशहाल
नेह प्यार से
.......
सबकी सुनो
है सम्बल मिलता
अपनी कहो
……
मिलता प्यार
माता पिता का
स्नेह अपार
……
है दादी मेरी
कहानियाँ सुनाती
लगती प्यारी
.......
सुन्दर मेरा
अपना परिवार
सबसे न्यारा

रेखा जोशी


पा ली हमने भक्ति उसकी अनुपम कृपा से


शीश  अपना  प्रभु  चरणो  में  रख  दिया हमने
प्रेम का  प्याला  लब पर  अब धर  दिया  हमने
पा  ली  हमने  भक्ति  उसकी  अनुपम  कृपा से
नामुमकिन को मुमकिन आज कर दिया हमने

रेखा जोशी 

Thursday 14 May 2015

सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा द्वार तेरे आके

अनुपम सौंदर्य 
अलौकिक छटा देख 
खुल गए द्वार अंतर्मन के 
झंकृत हुआ मन 
रूप नया देख 
मै इस पार तुम उस पार 
हो गए अब आर पार 
मिलन नही यह धरा गगन का 
आगोश में अब मै  तेरे  
पा लिया अमृत घट  
सुधापान कर लिया मैने 
एकरस होकर प्रभु अब 
समाया रोम रोम मेरा तुझमे 
बुझ गई प्यास जन्म जन्म की 
नेह तेरा पा के 
सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा 
द्वार तेरे आके 

रेखा जोशी 





तीन मुक्तक

तीन मुक्तक

1
बुझती नही यहाँ अनबुझ आज प्यास कैसी 
आतुर  हुआ  यहाँ   मनवा  आज आस कैसी 
बेचैन क्यों  सदा नज़रें  अब  यहाँ  दरस को 
होगा मिलन यहाँ  प्रभु से आज न्यास कैसी 
..................................................
2
टूटे दिल का अब  हम  मलाल क्यों करें
बीते दिनों का अब हम ख्याल क्यों करें
नसीब  में  हमारे  जब  थे गम  ही गम
बेवजह  ज़िंदगी  पर  सवाल  क्यों करें
……………………………………

ज़िंदगी भी  होश  अब  खोने लगी साजन
हसरते   भी  बोझ  बन  रोने  लगी साजन 
हाथ मेरा तुम पकड़  भी लो अगर तो क्या 
ज़िंदगी  की  शाम अब  होने  लगी साजन

रेखा जोशी

नहीं आकाश छूना मुझे

नहीं आकाश छूना मुझे
है धरती पर रहना मुझे
महका कर अवनी यहाँ पर
है रँग इसमें भरना  मुझे

रेखा जोशी 

Wednesday 13 May 2015

बंध गये अपने ही जाल में हम

चाहतों    के    दायरे   बढ़ने    लगे
उन में फिर से अब हम फँसने लगे
बंध   गये अपने   ही  जाल में  हम
शूल अब  तो हमे  फिर चुभने लगे

रेखा जोशी

क्यों जाना पड़ा मुझे छोड़ तेरा अँगना

सुर्ख लाल जोड़ा
मेहंदी रचे हाथ
नैनों में आँसू भर
देख रही  मुड़ मुड़ कर
बाबुल का द्वार
छूट रहा माँ का अंगना
आगे  साँवरिया
बिलख रही पीछे
माँ की ममता
रहा देख बाबुल
सजल नैनों से
दे रहा दुआएँ
दूर खड़ा कोने में
बसाने दुनिया नई
डोली में बैठ चली
छोड़ बाबुल का अँगना
बता मोरे बाबुल
क्यों हुई मै  पराई
क्यों जाना पड़ा मुझे
छोड़ तेरा अँगना
क्यों बनाई रब ने
बेटियाँ पराई

रेखा जोशी



सदा प्यार का मै जहाँ चाहता हूँ


नहीं पास नफरत यहाँ चाहता हूँ
सदा  प्यार का मै जहाँ चाहता हूँ

नही  चाहिये चाँद  तारे  मुझे सब
सदा आसमाँ अब खुला  चाहता हूँ

न दामन उड़ाओ यहाँ पर हवाओ
ख़ुशी की लहर अब कहाँ चाहता हूँ
....
किसी रोज़ आ कर सजन देख लो अब
सदा प्यार में   अब वफ़ा  चाहता हूँ

न चाहा कभी प्यार हमने सजन
नही साथ तेरा यहाँ चाहता हूँ

रेखा जोशी 

Tuesday 12 May 2015

तोड़ तोड़ खाना खट्टी अम्बियाँ पेड़ से

याद आया  बचपन वो खेलना खिलाना
अंबुआ  की   डाली पर  झूलना  झुलाना 
तोड़  तोड़  खाना  खट्टी अम्बियाँ  पेड़ से
छुपते छुपाते फिर वहाँ मिलना मिलाना

रेखा जोशी


गम का अब हमसे रिश्ता है


दिल मेरा तुमने तोड़ा है
इन बातों में क्या रक्खा है

महकी बगिया मेरे मन की
 साजन को  जबसे चाहा है
… 
बैठे है गम दिल में रख कर 
गम का अब  हमसे रिश्ता है 
… 
साथी है हम तो जन्मों के 
रिश्ता यह रब से मिलता है 
.... 
छोड़े ना हम तुम को  साजन 
तुमसे तो  नाता गहरा है

रेखा जोशी 
फिल्म हकीकत का हृदयस्पर्शी गाना गायक आ रफ़ी जी को  समर्पित ,मेरे पुत्र मनुज की आवाज़ में 
Tried Karaoking "Me ye soch kar" Please comment.
https://soundcloud.com/…/mei-ye-sochkar-11-05-15-82…/s-q9gFy
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Monday 11 May 2015

नसीब में हमारे जब थे गम ही गम


टूटे  दिल का अब  हम मलाल क्यों करें
बीते दिनों का अब हम ख्याल क्यों करें
नसीब  में  हमारे  जब  थे गम  ही  गम
बेवजह  ज़िंदगी  पर सवाल   क्यों  करें

रेखा जोशी


आ मेहँदी हसन जी को समर्पित उनकी ग़ज़ल मनुज दर्शन की आवाज़ में

https://soundcloud.com/manujarch/navazish2-06-04-15-1223-pm/s-W8pze

Sunday 10 May 2015

पर्दे के पीछे

टी वी के एक शो में  राजनीति पर गर्मागर्म बहस चल रही थी । दो विरोधी पार्टियों के सदस्य एक दूसरे पर खूब आरोप प्रत्यारोप लगा  रहे थे ,मामला इतना गर्म था की जैसे दोनों हाथापाई पर उतर आयेगे ,जैसे तैसे संचालक ने स्थिति संभाली और शो को नियंत्रित कर लिया । आश्चर्यजनक  पर्दे के पीछे दोनों महाशय  एक दूसरे के गले मिल रहे थे ।

रेखा जोशी 

माँ के आँचल में बसा संसार

माँ से सदा हमे मिलता प्यार
आशीष देती वह सदा हज़ार
तेरा  साया मुझ पर रहे सदा
माँ के आँचल में बसा  संसार

रेखा जोशी 

हास परिहास का वक्त नही यह

आओ  स्नेह  दीप  जलायें  आज
गिरतों  को  दिल से लगायें आज
हास  परिहास का वक्त नही यह
कोई'काम  अमिट कर जायें आज

रेखा जोशी

Friday 8 May 2015

पहन मुखौटा घूम रहे

हर कदम
रखना संभाल के
मतलब की  दुनिया
चेहरे  पर
ओढ़े  कई  चेहरे
मिल जायेंगे कई जन
पहन मुखौटा  घूम रहे
छुपा  कर
अपना  असली  मन
उलझा  देते बातों में
दिखाते
इंद्रधनुषी स्वप्न
बस देखते रह जाओगे
जाएँगे चुपके  से निकल
रहना संभल कर  इनसे तुम
दिखावा
करते  जो हर पल

रेखा जोशी

सभी मित्रों को मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनायें



मेरी पूर्व प्रकाशित रचना 

ममता का अथाह सागर ''माँ ''

कहते है ईश्वर सर्वव्यापक है ,जी हां वह  सब जगह है सबके पास है ''माँ ''के रूप में ,''माँ ''इक छोटा सा प्यारा शब्द जिसके गर्भ में समाया हुआ है सम्पूर्ण विश्व ,सम्पूर्ण सृष्टि और सम्पूर्ण ब्रह्मांड  और उस अथाह ममता के सागर में डूबी हुई  सुमि के मानस पटल पर बचपन की यादें उभरने लगी |”बचपन के दिन भी क्या दिन थे ,जिंदगी का सबसे अच्छा वक्त,माँ का प्यार भरा आँचल और उसका  वो लाड-दुलार ,हमारी छोटी बड़ी सभी इच्छाएँ वह चुटकियों में पूरी करने के लिए सदा तत्पर ,अपनी सारी खुशियाँ अपने बच्चों की एक मुस्कान पर निछावर कर देने वाली ममता की मूरत माँ का ऋण क्या हम कभी उतार सकते है ?हमारी ऊँगली पकड़ कर जिसने हमे चलना सिखाया ,हमारी मूक मांग को जिसकी आँखे तत्पर समझ लेती थी,हमारे जीवन की प्रथम शिक्षिका ,जिसने हमे भले बुरे की पहचान करवाई और इस समाज में हमारी एक पहचान बनाई ,आज हम जो कुछ भी है ,सब उसी की कड़ी तपस्या और सही मार्गदर्शन के कारण ही है । 

”सुमि  अपने सुहाने बचपन की यादो में खो सी गई ,”कितने प्यारे दिन थे वो ,जब हम सब भाई बहन सारा दिन घर में उधम मचाये घूमते रहते थे ,कभी किसी से लड़ाई झगड़ा तो कभी किसी की शिकायत करना ,इधर इक दूजे से दिल की बाते करना तो उधर मिल कर खेलना ,घर तो मानो जैसे एक छोटा सा क्लब हो ,और हम सब की खुशियों का ध्यान रखती थी हमारी प्यारी ''माँ '' ,जिसका जो खाने दिल करता माँ बड़े चाव और प्यार से उसे बनाती और हम सब मिल कर पार्टी मनाते” |

एक दिन जब सुमि खेलते खेलते गिर गई थी .ऊफ कितना खून बहा था उसके सिर से और वह कितना जोर जोर से रोई थी लेकिन सुमि के आंसू पोंछते हुए ,साथ साथ उसकी माँ के आंसू भी बह रहें थे ,कैसे भागते हुए वह उसे डाक्टर के पास ले कर गई थी और जब उसे जोर से बुखार आ गया  था तो उसके सहराने बैठी उसकी माँ सारी रात ठंडे पानी से पट्टिया करती रही थी ,आज सुमि को अपनी माँ की हर छोटी बड़ी बात याद आ रही थी और वह ज़ोरदार चांटा भी ,जब किसी बात से वह नाराज् हो कर गुस्से से सुमि ने अपने दोनों  हाथों से अपने माथे को पीटा था ,माँ के उस थप्पड़ की गूँज आज भी नही भुला पाई थी सुमि ,माँ के उसी चांटे ने ही तो उसे जिंदगी में सहनशीलता का पाठ पढाया था,कभी लाड से तो कभी डांट से ,न जाने माँ ने  जिंदगी के कई बड़े बड़े पाठ पढ़ा दिए थे सुमि को। 

,यही माँ के दिए हुए संस्कार थे जिन्होंने उसके च्रारित्र का निर्माण किया है ,यह माँ के संस्कार ही तो होते है जो अपनी संतान का चरित्र निर्माण कर एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान  करते  है ,महाराज छत्रपति शिवाजी की माँ जीजाबाई को कौन भूल सकता है ,  दुनिया की हर माँ अपने बच्चे पर निस्वार्थ ममता लुटाते हुए उसे भरोसा और सुरक्षा प्रदान करती हुई उसे जिंदगी के उतार चढाव पर चलना सिखाती है । 

अपने बचपन के वो छोटे छोटे पल याद कर सुमि की आँखे भर आई , माँ के साथ जिंदगी कितनी खूबसूरत थी और उसका बचपन महकते हुए फूलों की सेज सा था | बरसों बाद  आज  सुमि भी जिंदगी के एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुकी है जहां पर कभी उसकी माँ थी ,एक नई जिंदगी उसके भीतर पनप रही है  और अभी से उस नन्ही सी जान के लिए उसके दिल में प्यार के ढेरों जज्बात उमड़ उमड़ कर आ रहे है  ,यह केवल सुमि के जज़्बात ही नही है  ,हर उस  माँ के है जो इस दुनिया में आने से पहले ही अपने बच्चे के प्रेम में डूब जाती है,यही प्रेमरस अमृत की धारा बन प्रवाहित होता है उसके सीने में ,जो बच्चे का पोषण करते हुए माँ और बच्चे को जीवन भर के लिए अटूट बंधन में बाँध देता है |आज भी जब कभी सुमि अपनी माँ के घर जाती है तो वही बचपन की खुशबू उसकी नस नस को महका देती है ,वही प्यार वही दुलार और सुमि फिर से एक नन्ही सी बच्ची बन अपनी माँ के आँचल में मुहं छुपा कर डूब जाती है ममता के उस अथाह सागर में। 

रेखा जोशी 

Thursday 7 May 2015

ममतामयी माँ

गुस्से में प्यार
प्यार में दुलार
करुणा सागर
रूप ईश्वर का
ममतामयी माँ
करते नमन

रेखा जोशी

Wednesday 6 May 2015

होगा मिलन यहाँ प्रभु से आज न्यास कैसी


बुझती नही यहाँ अनबुझ आज प्यास कैसी 
आतुर  हुआ  यहाँ   मनवा  आज आस कैसी 
बेचैन क्यों  सदा नज़रें  अब  यहाँ  दरस को 
होगा मिलन यहाँ  प्रभु से आज न्यास कैसी 

रेखा जोशी

माँ की पूजा जो करता वह है मुझे प्रिये

हाथ जोड़  झुकाये मस्तक
उर में भाव हृदय में वंदन
पूछा भक्त ने भगवन से
पूजा करूँ निस दिन तिहारी
कब दोगे  दरस अपने
कब  मिलोगे हे प्रभु
शीश झुकाये करूँ नित वंदन
हे करुणानिधान
अंतरघट  तक प्यासे  नैना
दरस तेरा पाने को
अलौकिक चमत्कार
हुआ इक फिर
आकाशवाणी से गूंजे
प्रभु के स्वर मधुर
मै तो रहता साथ तेरे
हर घड़ी हर पल
देख माँ के नैनों में
ममता दिखेगी मेरी
पूरी करती  इच्छायें  तेरी
लूटा कर
अपना सब कुछ तुम पर
तेरे लिए प्रार्थना  करती
जीती वह तेरे लिये
खुद को स्वाहा कर के
तेरे लिये मरती
माँ ही भगवान माँ ही ईश्वर
दिल न कभी दुखाना उसका
माँ की पूजा जो करता
वह है मुझे प्रिये
वह है मुझे प्रिये

रेखा जोशी



हमारा साथ गर तुम दो सजन तो


 नहीं साथी हमारा   दूसरा है 
जहाँ में साथ तेरा  आसरा है
 ... 
रहो गर साथ जीवन में हमारे 
किसी की फिर ज़रूरत और क्या है 
.... 
 गुज़र यह  ज़िंदगी जाये हमारी
सफर इस  ज़िंदगी का आइना  है
… 
हमारा साथ गर तुम दो सजन तो 
हसीं तब फिर  सजन यह रास्ता है 
… 
 बहुत आगे चले आये सजन हम
मेरा बचपन अभी तक भागता है
.... 
रेखा जोशी

साज पर इक प्यार की धुन भी मचलनी चाहिए


 रात काली यह सुबह में आज ढलनी चाहिए 
ज़िंदगी की शाम भी साजन सँभलनी चाहिए
....
राह में मिलते बहुत से लोग अपनी ही कहें
सोच अपनी भी यहाँ अब तो बदलनी चाहिए

इस जहाँ में प्यार की कीमत को'ई समझे नहीं
साज पर इक प्यार की धुन भी मचलनी चाहिए
....
बाँह मेरी थाम साजन ले चलो अब उस जहां,
चाह इक दूजे की ' भी तो आज फलनी चाहिए

जोश भर कर ज़िंदगी का अब मज़ा ले लो सजन
साथ लहरें भी नदी की अब उछलनी चाहिए

रेखा जोशी

Tuesday 5 May 2015

है हर्षित मन देख लाल फूलों से सुसज्जित उपवन


गर्म  हवाओं  से पेड़ पर  झूलते  फूल गुलमोहर के
लाल  अंगार  धरा  पर  बिखरते  फूल गुलमोहर के
है हर्षित मन देख लाल फूलों से सुसज्जित उपवन
तपती दोपहरी  में  भी   खिलते  फूल गुलमोहर के
रेखा जोशी

बुझती नही प्यास अंतर्मन की

बुझती नही
प्यास अंतर्मन की
है चाहत कुछ पाने की
इक तड़प उठती रह रह कर
अंतस में
दिये  की लौ की तरह
है थरथराती
यह पीड़ा मन की
नहीं बाँध पाती शब्दों में
 न जाने
क्या चाह रहा व्याकुल मनवा
लेकिन प्यास अनबुझ
अंतर्मन की
बढ़ती जा रही

रेखा जोशी


भर दें उजाला हम अब जहान में खुशियाँ लुटाकर

चलो दिल को जलाकर आज फिर से रोशनी कर दें
अँधेरे पथ पे हम आज फिर से चांदनी भर दे
भर दें उजाला हम अब जहान में खुशियाँ लुटाकर
सूनी आँखों में हम आज फिर से ज़िंदगी भर दें
रेखा जोशी

Monday 4 May 2015

जीवन साथी जन्म जन्म के तुम्ही मेरे

चाहा तुम्हे मुख अपना मोड़ नही जाना 
थामा   दामन  तुम्हारा छोड़ नही जाना 
जीवन साथी जन्म जन्म के  तुम्ही मेरे 
बंधन है यह  प्यार का  तोड़  नही जाना 

रेखा जोशी

है आकुल मन विकल ह्रदय शरण भगवन मै अब आया

कुरुक्षेत्र में जीवन के बन अर्जुन मै अब  आया
है आकुल मन विकल ह्रदय शरण भगवन मै अब आया

भ्रष्टाचार की है तौबा बढ़े है पेट लालों के
भाई  बँधु  है सब अपने डूबे जो घोटालों  में
खाते  है छीन चारा मुख से अपने भाइयों के
चढ़ा प्रतंचया फिर से ले  गांडीव मै अब आया
है आकुल मन विकल ह्रदय शरण भगवन मै अब आया

पूछो न पाखंडों की ,भरे  आश्रम है बाबों से 
दिखा कर चमत्कार झूठे  लूटे वो मासूमों को
करें खिलवाड़ उम्मीदों का ,आहत कर गरीबों को
चढ़ा प्रतंचया फिर से ले  गांडीव मै अब आया
है आकुल मन विकल ह्रदय शरण भगवन मै अब आया

 लाज अपनी बचाने को पुकारे आज पांचाली
भरे बाज़ार लुटती है यहाँ पर आज है नारी
करो इन्साफ हे भगवन शरण अब आई दुखियारी
चढ़ा प्रतंचया फिर से ले गाँडीव मै अब आया
है आकुल मन विकल ह्रदय शरण भगवन मै अब आया


कुरुक्षेत्र में जीवन के बन अर्जुन मै अब  आया
है आकुल मन विकल ह्रदय शरण भगवन मै अब आया

रेखा जोशी

अनुपम कल्पनाओं सा बना यह रंगीन चित्र

सुनहरी किरणों से नभ जगमगाने लगा है
गुलाबी  रंग  आसमान  पर   छाने लगा है
अनुपम कल्पनाओं सा बना यह रंगीन चित्र
मनमोहक दृश्य अब मुझे यह भाने लगा है

रेखा जोशी

Sunday 3 May 2015

शीशे सा दिल लिये आ गया मै कहाँ

शीशे सा दिल लिये
आ गया मै कहाँ
पत्थरों के शहर में
मुख पर मुखौटे ओढ़े
पाषाण हृदय लिये
संवेदनशून्य
चले जा रहे सब
अपनी ही धुन में
पत्थरों की भीड़ संग
ठोकरों से बचता बचाता
संभालता खुद को
शीशे सा दिल लिये
आ गया मै कहाँ
इससे पहले कहीं
न हो जाऊँ मै चकनाचूर
ऐ दिल भाग कहीं दूर
पत्थरों के शहर से

 रेखा जोशी

Saturday 2 May 2015

आँचल की छाँव [अलिवर्णपाद छंद]

खेले बचपन
ममता की गोद
माता का दुलार
आँचल की छाँव
चरण वंदन
प्रभु वरदान

रेखा जोशी

फिर होगी सुबह होगा नव नाम

समुद्र तट पर 
चल रहे किनारे किनारे 
मचा रही शोर 
आती जाती लहरे 

सूरज चूम रहा
सागर का आंचल 
रंग सिंदूरी चमक रहा 
आसमां भरा गुलाल 

जीवन चलता रहा 
ढलती है शाम 
फिर होगी सुबह 
होगा नव नाम 

रेखा जोशी 

सुख दुख के साथी

याद है वो दिन
तपती दोपहरी के बाद
शाम को
जब गली में अपनी
लगता था बच्चों का मेला
पड़ोस के सब बच्चे
मिल कर खेलते थे खेल नये
और हाथ में परात  लिये
लगता था मेला
साँझे  चुल्हे  पर
भीनी भीनी पकती 
वह तन्दूर की गर्मागर्म रोटियाँ
याद कर खुशबू जिनकी
आ जाता मुहँ में पानी
पड़ोसी नही थे वो
भाई बंधु थे अपने
सुख दुख  के साथी
हाथ बँटाते बिटिया की शादी में
आँसू  बहाते उसकी विदाई पे
जाने कहाँ गये वो दिन
जब पड़ोसी ही
इक दूजे के काम आते

रेखा जोशी

Friday 1 May 2015

छोड़ न जाना तुम कभी राह में अकेले

गीतिका

जीवन की राहों में ले हाथों में हाथ
साजन मेरे चल रहे हम अब साथ साथ

अधूरे  है हम  तुम बिन सुन साथी  मेरे
आ  जियें जीवन का हर पल साथ साथ

हर्षित हुआ  मन देख  मुस्कुराहट तेरी
खिलखिलाते रहें दोनों अब  साथ साथ

आये कोई मुश्किल कभी जीवन पथ पर
सुलझा लेंगे  दोनों मिल कर साथ साथ

तुमसे बंधी हूँ मै  साथी यह मान ले
निभायें गे इस बंधन की हम साथ साथ

छोड़ न जाना तुम कभी राह में अकेले
अब जियेंगे और मरेंगे हम साथ साथ

रेखा जोशी