Saturday, 23 May 2015

इन्तिहा दर्द की

हो गई
इन्तिहा  दर्द की
कुचल दिया मसल दिया
भावनाओं को मेरी  बैरी सजन ने
चला कर छुरिया सीने में
बन रहा अनजान कोई
भीगी है पलके टपकते है आँसू
परवाह नही निर्मोही वो
घूम रहा पत्थर सा दिल लिये
अनजान सा चलता रहा
अपनी ही राह पे
काश पिघले सीने का पत्थर कभी
काश ऐसा ही दर्द हो कभी
सीने में उसके
फफक फफक कर रोये
वह भी कभी
है दिल क्या चीज़
समझ सके वो भी
कर सके महसूस वो
इन्तिहा दर्द की

No comments:

Post a Comment