हो गई
इन्तिहा दर्द की
कुचल दिया मसल दिया
भावनाओं को मेरी बैरी सजन ने
चला कर छुरिया सीने में
बन रहा अनजान कोई
भीगी है पलके टपकते है आँसू
परवाह नही निर्मोही वो
घूम रहा पत्थर सा दिल लिये
अनजान सा चलता रहा
अपनी ही राह पे
काश पिघले सीने का पत्थर कभी
काश ऐसा ही दर्द हो कभी
सीने में उसके
फफक फफक कर रोये
वह भी कभी
है दिल क्या चीज़
समझ सके वो भी
कर सके महसूस वो
इन्तिहा दर्द की
इन्तिहा दर्द की
कुचल दिया मसल दिया
भावनाओं को मेरी बैरी सजन ने
चला कर छुरिया सीने में
बन रहा अनजान कोई
भीगी है पलके टपकते है आँसू
परवाह नही निर्मोही वो
घूम रहा पत्थर सा दिल लिये
अनजान सा चलता रहा
अपनी ही राह पे
काश पिघले सीने का पत्थर कभी
काश ऐसा ही दर्द हो कभी
सीने में उसके
फफक फफक कर रोये
वह भी कभी
है दिल क्या चीज़
समझ सके वो भी
कर सके महसूस वो
इन्तिहा दर्द की
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