Tuesday 31 March 2015

खूबसूरत मुखड़ा प्यार भरा


खूबसूरत  मुखड़ा  प्यार भरा
है सुन्दर बचपन  निहार रहा
भोले    नैना    कौतूहल   भरे
देख  संसार वह  विचार  रहा

रेखा जोशी

Monday 30 March 2015

भोले नयन कोतूहल भरे

हँसते आँसू
भोले नयन कोतूहल भरे
घूर रहे
बचपन मेरा
धुले कपड़े मेरे

जानता हूँ मै
पगडंडियों के रास्ते
उड़ती धूल से
बिखरते बाल मटमैले कपड़े
भागते बच्चे धूल उड़ाते

छुप गया वह चेहरा
अजनबी सा  दूर कहीं
खो गया अपरिचित सा
मेरी पलकों में
तैर रहे
भोले नयन कोतूहल भरे
घूर रहे
बचपन मेरा
धुले कपड़े मेरे

यादों में मेरी
चिपका रहा चेहरा
वही
भोले नयन कोतूहल भरे
घूर रहे
बचपन मेरा
धुले कपड़े मेरे

रेखा जोशी


Sunday 29 March 2015

इतने दिये ज़ख्म कि ज़ख्म ही दवा बने

बहुत  रो  लिये  न हम रोयेंगे अब सनम 
टूट गया  दिल न उफ्फ करेंगे अब सनम 
इतने दिये ज़ख्म कि ज़ख्म ही दवा बने 
बहुत सह चुके न और  सहेंगे अब सनम 

रेखा जोशी 

जी सके हम जो नही वह ज़िंदगी कैसे कहूँ


जो न  समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ 
जी सके हम जो नही वह ज़िंदगी कैसे कहूँ 
…… 
आसमाँ पर चाँद निकला हर तरफ बिखरी किरण 
जो   न  उतरे   घर   हमारे   चाँदनी    कैसे   कहूँ 
...... 
मुस्कुराती हर अदा तेरी सनम जीने न दे 
हाल  अपने  की  हमारे   बेबसी कैसे कहूँ 
…… 
राह मिल कर हम चले थे ज़िंदगी भर के लिये 
मिल सके जो तुम न हम को वह कमी कैसे कहूँ 
…… 
हो  गया रोशन जहाँ जब प्यार मिलता है यहाँ 
जो न आया  घर हमारे रौशनी कैसे कहूँ 

रेखा जोशी 

रह जाती ख्वाहिशें आधी अधूरी

छंदमुक्त रचना 

जी  रहे हम सब यहाँ 
कतरा कतरा ज़िंदगी
न  जाने क्यों हमारी 
रह जाती ख्वाहिशें
आधी अधूरी
करना चाहती
एहसास
पूर्णता का यहाँ 
कतरा कतरा जिंदगी
इससे  पहले
रूठ न जाये  कहीं ज़िंदगी
हमसे 
क्यों न हम जी लें जी भर 
हर लम्हा हम यहाँ 
कतरा कतरा ज़िंदगी 
का 

रेखा जोशी 

खिले हुये फूलों की महक बरकरार है

खिले  हुये  फूलों की महक बरकरार है 
सब  ओर अब छाई  बहार  ही  बहार है
काश तुम  भी चले आओ इन बहारों में 
गर आओ तुम यहाँ ज़िंदगी गुलज़ार है 

रेखा जोशी 

Friday 27 March 2015

मिल कर हो जायें पार हम दोनों


हम   इक   दूजे  के  ही  सहारे  है 
समय  की  बहती  धार   पुकारे है 
मिल कर  हो जायें  पार हम दोनों 
सुख  दुख जीवन के दो  किनारे है 

रेखा जोशी 


आ बैल मुझे मार

पत्नी से झगड़ कर
चौबे जी
घर से आये बाहर
चले हो कर  बाईक पे सवार
भिड़ते भिड़ते बचे
चौबे जी
जब आई सामने कार
गुस्से में रोकी बाईक
आव देखा न ताव
और खोला कार का द्वार
 कॉलर पकड़  सवार का
गुस्से में हुए लाल
हुई दोनों में खूब तकरार
तू तू मै  मै से हुई शुरू
करते रहे इक दूजे पर वार
तभी ले लिया पंगा
चौबे जी ने
दिये उन्होंने जड़
उस पर हाथ दो चार
तभी आ गये
कार सवार के और साथी चार
हुई धुनाई चौबे जी की
खाई जब उनकी मार
हाथ टूटा पाँव सूजा
चौबे जी
हो गए लाचार
कान पकड़ कर कर ली
तौबा ली कर
काहे लिया खुद ही  पंगा
गुस्से में  हो कर लाल
दिया न्योता मुसीबत को
खुद ही उसे  बुलाया
आ बैल  मुझे मार

रेखा जोशी

Thursday 26 March 2015

छीन लिया जीवन उसका कोख में ही मार उसे

पूजे  माँ  दुर्गा  को  नारी का  तिरस्कार किया
लेकर अग्नि परीक्षा क्या उसका उपकार किया
छीन  लिया जीवन  उसका कोख में मारा  उसे
खतरे  में  है  अस्मिता   ऐसा  व्यवहार  किया


रेखा जोशी

हमारे साथ है साया हमारा

वक्त ने साथ अब छोड़ा हमारा 
हमारे साथ है साया हमारा 
… 
हमें मिलनी जुदाई थी सजन जब 
खत्म है अब सनम किस्सा हमारा 
.... 
चले थे हम  सफर में साथ दोनो 
कटेगा   याद  में   रस्ता  हमारा 
…… 
सहर ओ शाम हम तुम को  पुकारें 
रहेगा दिल  सदा  तन्हा हमारा 
....... 
सजन देखो डूब कर प्यार में तुम 
बहुत बढ़िया लगे दरिया  हमारा 

रेखा जोशी 

Wednesday 25 March 2015

सपनो का घर

सपनों के घर में
करना चाहती कैद
धूप को
जगमगा उठे वहाँ
कोना कोना
रोशन हो जायें दीवारे जहाँ
इन्द्रधनुष के रंगों से
खिलखिलाये जहाँ
महकती खुशियाँ
हूँ जानती सजेगा इक दिन
प्रीत की डोर से
मेरे सपनो का घर
और बुझे गी इक दिन
चिर प्यास मेरी
नहीं ओस की बूँदों से
भर जाये गा तब
मेरे अंतर्मन का
प्रेम घट अमृत की
बूँद बूँद से

रेखा जोशी

मिलकर वहाँ हम रहेंगे होगा पूरा अरमान

चलो  सखी चलें दूर हमें बुलाये नया जहान
चीर सीना पर्वतों का पुकारे  खुला आसमान
उन्मुक्त भरते उड़ान जहाँ होकर बंधन मुक्त
मिलकर वहाँ  हम  रहेंगे होगा पूरा अरमान

रेखा जोशी


Tuesday 24 March 2015

टूट पड़ी बन ज़ुल्म ओ कहर हम पे ज़िंदगी

बहुत जी चुके शाम ओ सहर  हम  ये ज़िंदगी
पाया  न  चैन कभी  दो  पहर  हम ने  ज़िंदगी
दोस्तों  बदल  दिये  मायने  यहाँ  ज़िंदगी  ने 
टूट  पड़ी बन  ज़ुल्म ओ कहर हम पे  ज़िंदगी

रेखा जोशी

Sunday 22 March 2015

साँवली सलोनी बाई


पाजेब की छम  छम
सुनते ही
ख़ुशी की इक लहर
दौड़ने लगती 
मन में
मिलता सकून
उसके आने की
आहट से
कैसे लिख पाती
कुछ 
अगर आज वह न आती
मुस्कुराती हुई
साँवली  सलोनी
के घर में घुसते ही 
खिल उठा मेरा मन
क्यों न करें 
धन्यवाद उसका 
बुहारती हमारा घर आंगन
हमारे हाथों का
करती काम 
तभी निकल  पाते
हम बाहर घर से
वह और कोई नही
है वह मेरे घर की
साँवली  सलोनी
बाई

रेखा जोशी

मर मिटे आज़ादी पर मस्ताने

शहीद ऐ आज़म ''भगत सिहं , शहीद सुखदेव  , शहीद राजगुरु ''की याद में 

जलते  रहे  शमा  पर  परवाने
हुये   शहीद  वतन  पर दीवाने
शत शत करते देशवासी नमन
मर मिटे आज़ादी पर मस्ताने

23 मार्च शहीद दिवस पर देश के अमर शहीदों को शत शत नमन

रेखा जोशी 

सभी मित्रों को हिंदू नव संवत्सर,नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ

सभी मित्रों को हिंदू नव संवत्सर या नव संवत  या  गुड़ी पड़वा की की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें 

जय जय जय  हे जगदम्बे माँ 
आये    दर   तेरे   अम्बे    माँ 
पूर्ण    हो  कामनायें     सबकी 
झोलीयाँ   भरे   जगदम्बे  माँ 


सभी मित्रों को ''नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ

Saturday 21 March 2015

बिखरी यादें तेरी जाने कहाँ

यह खामोशियाँ और तन्हाईयाँ 
ढूँढती  है  तुम्हें यहाँ  और वहाँ 
बस  अहसास  है  तेरे  होने का 
बिखरी   यादें  तेरी  जाने  कहाँ 

रेखा जोशी 

जीवंत कर लो ज़िंदगी

मन की आँखों को
खोल कर देखों
मंडरा रही आस पास तुम्हारे
रंग बिरंगी तितलियाँ
मत बांधों तुम अपने को
सफेद काले बंधन में
हैं बिखरे
इंद्रधनुष से  रंग आस पास तुम्हारे
करते  पुलकित तन मन
रंग जीवन में
सजा लो जीवन अपना
महका लो जीवन अपना
जीवंत कर लो ज़िंदगी
भर कर
रंग जीवन में

रेखा जोशी

Friday 20 March 2015

आ गये मस्ती भरे तराने मेरे लब पे आज


दीप कलश जगमगाने लगे मेरे घर में आज
झंकृत हो बजने लगे  तार मेरे दिल के आज
उनके आने  की खबर  सुन के छा गई  बहारे
आ गये मस्ती भरे  तराने  मेरे लब पे आज

रेखा जोशी 

लालच लोभ

लालच लोभ
दिल मांगता मोर
पाये न ठौर
.................
 हाथ से गया 
लालच बुरी बला
सोने का अंडा
…………
गोरखधंधा
भ्रष्टाचार सिखाता
लोभ का अंधा
…………
लोभ का फंडा
गिराता औंधे मुहँ
किया भरता

रेखा जोशी 

Thursday 19 March 2015

जी रहे थे भूल उन को ज़िंदगी में


आज उनकी याद फिर से आ गई  है 
क्यों हमेँ रह रह आज तड़पा  गई  है 
जी  रहे  थे  भूल उन  को  ज़िंदगी में
बात  क्या जो फिर हमें  रुला गई  है 

रेखा जोशी 

Wednesday 18 March 2015

टूट गया दिल हमारा

थी किसी और की
जब तुम
क्यों आई ज़िंदगी में मेरी
थी करनी
जब ज़फ़ा तुमने
बाते वफ़ा की
क्यों करती रही
रख कर
अपने दिल में गैर को
हँस  कर
क्यों मुझे रिझाती रही
खेलती रही
क्यों  दिल से मेरे
टूट गया दिल हमारा
अब चैन से
क्यों नहीं रहने देती

रेखा जोशी

धोखा खाया हमने कर के प्यार सनम

साजन  दिल में मेरे आने वाला था 
उसका हर अंदाज़ ज़माने वाला था 
 
रह रह कर तेरी यादों ने मारा 
जानम तेरा प्यार सताने  वाला था 

दिल लूटा तुमने अपनी बातो से जब 
बातों से  जज़्बात बताने वाला था 

माना तुम प्यार हमे करते थे साजन 
अपने दिल का दर्द  सुनाने वाला था 

 धोखा खाया हमने कर के प्यार सनम 
आँखों से अब नीर बहाने वाला था 

रेखा जोशी 

सदा खुश रहना तुम ऐ दोस्त मेरे

ज़िंदगी है तो मंज़िलें और भी है
दुनिया में हसीं नज़ारे और भी है
सदा खुश रहना तुम ऐ दोस्त मेरे
जहाँ सितारों से आगे और भी है
रेखा जोशी 

उतर आया हथेली पर सूरज इधर

आसमाँ  को  छूना  चाहते थे तुम
चमकना सूरज सा चाहते  थे तुम
उतर  आया हथेली पर सूरज इधर
पा लिया वह जैसा  चाहते थे तुम
रेखा जोशी 

Tuesday 17 March 2015

उसके आने से रोशन हुआ मेरा घर आँगन

नन्ही  परी  के आने से खत्म  हुई तन्हाईयाँ 
गुनगुनाने  लगी गीत मधुर मेरी खामोशियाँ 
उसके  आने  से रोशन  हुआ  मेरा घर आँगन 
गूँजने  लगी  घर  में मेरे उसकी किलकारियाँ 

रेखा जोशी 

बेचारा गरीब


इस महंगाई के आलम में 
बेचारा गरीब
क्या खाए और कहाँ रहे 
पेट भर भोजन नहीं 
रहने को छत नहीं 
सोच रहा बेचारा लेट कर 
सड़क किनारे 
उम्र भर यूँही जीना है उसे 
झेलने है यूँही दुःख उसे 
क्या यही है उसकी तकदीर 
याँ  फिर कुछ और …… 

रेखा जोशी 


रस्म ऐ उल्फत को निभाया दिल से हमने

प्यार की गलियों से गुज़ारना चाहिए 
वफ़ा के रंग को भी आज़माना चाहिए 
रस्म ऐ उल्फत को निभाया दिल से हमने 
हुए गैरों के तुम सिला वफ़ा का चाहिए 

रेखा जोशी 



बूँद बन नैनो से मैने गिरा दिया तुम्हे

 खो गई 
दूर कहीं कल्पनायें मेरी 
धुंधला गई 

अब यादें तेरी 
मायूस हूँ इस कदर 
नही चाहता 

अपने ख्यालों में 
अब तुम्हे 
बूँद बन नैनो से मैने 

गिरा दिया  तुम्हे 
काबिल नहीं तुम 
प्यार के 
सोच समझ कर

कर लिया विचार 
नही चाहता 
अपने जीवन में 
अब तुम्हे 

रेखा जोशी 

Monday 16 March 2015

सोंधी महक माटी की पुकारती


चलो चलें  उस पार नदी  नाव से
आओ अब चलें हम सखी गाँव रे
सोंधी  महक  माटी  की पुकारती
पड़े  झूले  अंबुआ   की  छाँव  में

रेखा जोशी

बनाया रब ने एक दूजे लिये

तुमसे ही  जुड़ा  मेरा संसार
साथ मिला जो तेरा बार बार
बनाया रब ने एक दूजे  लिये
बदरा संग बरस रही जलधार

रेखा जोशी


कमल ही कमल

कमल नैन
शेषनाग शयन
सृष्टि उत्पन्न
………
जीवन जियें
कीचड़ में कमल
खिलता जैसे
………
खिलें भीतर
पहचान खुद को
कमल ही कमल
………
रेखा जोशी

Sunday 15 March 2015

पल पल में फिसल रहा हाथ से यह पल

ज़िंदगी नित  नया  रूप  ले  बदल  रही 
कल आज और कल में नित ये ढल रही 
पल पल में फिसल रहा हाथ से यह पल 
सुख दुःख  की लहर पे नित ये चल रही 

रेखा जोशी 


आये है आज तेरी महफ़िल में सनम

हमे यहां देख कर अब खिलता  है चाँद
पानी  की  लहरों पर   चमकता है चाँद 
आये  है आज  तेरी महफ़िल में  सनम
तारों संग नभ  पर अब  हँसता  है चाँद

रेखा जोशी 

मतलब का सारा जहां मतलब का इंसान

घूम  लिये  चाँद  सितारे घूम लिया संसार 
घूमें  सारी दुनिया  पर कहीं न पाया प्यार 
मतलब  का  सारा जहां मतलब का इंसान  
न मिला कभी चैन हमे न कहीं पाया करार

रेखा जोशी 

Saturday 14 March 2015

थाम लेता अंत में मौत का हाथ

धरती से सोना उगाता
धरतीपुत्र कहलाता
भर कर पेट सबका
खुद भूखा सो जाता
फिर भी नहीं घबराता
देख फसल खड़ी खलिहान में
मन ही मन हर्षाता
लेकिन नही सह पाता
प्रकृति और क़र्ज़ की मार 
मन ही मन टूट जाता 
गरीबी और सूखे से होता 
दुखी लाचार 
आखिर
थक हार कर जीवन से
असहाय वह छोड़ कर
सबका साथ
थाम लेता अंत में 
मौत का हाथ


रेखा जोशी

रखा दिल में बसा के हमने प्यार को हमारे

मिले  गम  ही गम हमें जाने  के  बाद तुम्हारे 
रखा दिल  में  बसा  के  हमने प्यार को हमारे 
छुपा के हर गम को अपनी मुस्कुराहट में अब 
हम  तो   जिये  जा  रहे  तेरी  याद  के  सहारे
रेखा जोशी 

Thursday 12 March 2015

ज़िंदगी प्यार पर मिटे साजन

फूल सा तुम इधर बिखर जाना 
प्यार का  तुम गुलाब महकाना 
ज़िंदगी  प्यार पर मिटे  साजन 
हो  शमा  पर निसार   परवाना 

रेखा जोशी 

चलती रहती है ज़िंदगी उम्मीद की चादर लिये

गुज़र जाता है वक्त
छोड़ पीछे
लगाने को  डुबकियाँ
अनगिनत यादों के
सागर में
.
यादें जो
पलक बंद करते ही
तैरती है नैनों में
उठती है टीस  कभी
और
भर जाते है नैन कभी
मुस्कुरा उठते है लब कभी
और
खिल उठता है मन
जब भर जाते है रंग ख़ुशी के
जीवन की
गागर में
.
वक्त के आंचल तले
भर जाते है गम के लम्हे
बिसरा  कर सब
चलती रहती है ज़िंदगी
उम्मीद की
चादर लिये
रेखा जोशी



जो जैसा करे गा ,वह वैसा ही भरे गा


मत  कर  अभिमान  बंदे दुनिया ये  छलावा
चार दिन की ज़िंदगी फिर क्यों करे दिखावा
जो   जैसा  करे   गा  ,वह   वैसा  ही  भरे  गा
पाये   कर्मो  का   फल  काहे   करे  पछतावा

रेखा जोशी

Wednesday 11 March 2015

ज़िंदगी चार दिन

है बदलती
धूप और छाँव भी
रंगीं ज़िंदगी
………
ख़ुशी से रहो
ज़िंदगी चार दिन
जियो जीने दो
………
है साथ साथ
ज़िंदगी और मौत
प्रभु के हाथ
.
रेखा जोशी 

महका दो फिर से मेरा अंगना इक बार

महकती महकाती
सुरभि सुमन सी
फ़िज़ाओं में अपने
रंग बिखेरती
लहराती बलखाती
पवन के
हौले हौले झोंको सी
मधुरस घोलती
मेरे जीवन में
आती हो जब तुम
झंकृत हो उठते
दिल के तार
आ जाओ फिर से
निकल तस्वीर से
महका दो फिर से
मेरा अंगना
इक बार

रेखा जोशी

Tuesday 10 March 2015

बिखरने लगी अरुण की सुनहरी रश्मियाँ

आओ  हम  भोर  से  संदेश नया नित लें
चहचहा   रहे पंछी   उड़ते   नील  नभ  पे
बिखरने लगी अरुण की सुनहरी रश्मियाँ
तेजस्वी लालिमा   बाहों  में आज  भर लें

रेखा जोशी 

पास आओ तुम कभी तो हमसफ़र


दिल हमारा अब बहलने से रहा 
चाँद आँगन में उतरने से रहा 
रात  साजन नींद में अब सो  गई 
थाम दामन भोर चलने से रहा 

चाह तेरी इस कदर रुला गई 
नीर   नैनों  का बहने  से रहा 

पास आओ तुम  कभी तो  हमसफ़र 
वक्त तो अब यह बदलने  से रहा 

साथ तेरा तो निभाया ज़िंदगी 
साथ तेरे आज  चलने से रहा 

रेखा जोशी 

मन में विश्वास और साहस को वह थामे हुये


अपनी धुन में पथिक दुर्गम पथ पर  चल रहा था 
ऊँची   नीची  काँटों   भरी  राह   पर  बढ़  रहा था 
मन  में  विश्वास  और  साहस  को  वह थामे हुये 
शनै  शनै  मंजिल  की  ओर वह  डग भर रहा था 

रेखा  जोशी 

Monday 9 March 2015

धरती पर तात

पालनहार
प्रणेता छत्रछाया
करता प्यार
अवतरित हुआ
धरती पर तात
..........
देता जनक
रूप ईश्वर धर
नेह अपार
है करते  नमन
शत शत प्रणाम

रेखा जोशी


रास रचाये गोपियों संग

सब को लुभाता नंदकिशोर
राधा का प्यारा  चित्तचोर
रास रचाये    गोपियों  संग
माखन चुराता   माखनचोर

रेखा जोशी





Sunday 8 March 2015

प्रीत मेरी सफल रही होगी


ज़िंदगी फिर बहल रही होगी
जान मेरी निकल रही होगी
.
चाह कर तुम चले गये साजन 
ज़िंदगी आज  खल  रही होगी
..
थाम कर हाथ पास आ जाओ
ज़िंदगी अब  मचल रही होगी
.
 तड़पते हम रहे बहुत साजन
आँख  तेरी  सजल  रही  होगी
.
 नीर साजन बहा लिये हमने
साँस   तेरी  विकल  रही  होगी
.
मिल गये आज तुम हमें साजन
प्रीत मेरी  सफल रही होगी

रेखा जोशी 

दर्द से हुई यह आँखें हमारी नम सजन


मिले  दुनियाँ  से  हमें  हज़ारों  गम  सजन 
दर्द  से  हुई  यह  आँखें  हमारी  नम सजन 
गम   यहाँ  पर   ज़िन्दगी   में तो  है  बहुत
मिले कभी ज्यादा कभी मिलते कम सजन 

रेखा जोशी 

Saturday 7 March 2015

अधूरी है ईश्वर पूजा अगर हम कन्या भ्रूण हत्या को नहीं रोक पाते

हमारे धर्म में नारी का स्थान सर्वोतम रखा गया है ,नवरात्रे हो या दुर्गा पूजा ,नारी सशक्तिकरण तो हमारे धर्म का आधार है | अर्द्धनारीश्वर की पूजा का अर्थ यही दर्शाता है कि ईश्वर भी नारी के बिना आधा है ,अधूरा है | वेदों के अनुसार भी ‘जहाँ नारी की पूजा होती है ‘ वहाँ देवता वास करते है परन्तु इसी धरती पर नारी के सम्मान को ताक पर रख उसे हर पल अपमानित किया जाता है | इस पुरुष प्रधान समाज में भी आज की नारी अपनी एक अलग पहचान बनाने में संघर्षरत है | जहाँ बेबस ,बेचारी अबला नारी आज सबला बन हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है वहीं अपने ही परिवार में उसे आज भी यथा योग्य स्थान नहीं मिल पाया ,कभी माँ बन कभी बेटी तो कभी पत्नी या बहन हर रिश्ते को बखूबी निभाते हुए भी वह आज भी वही बेबस बेचारी अबला नारी ही है |

शिव और शक्ति के स्वरूप पति पत्नी सृष्टि का सृजन करते है फिर नारी क्यों मजबूर और असहाय हो जाती है और आखों में आंसू लिए निकल पड़ती है अपनी ही कोख में पल रही नन्ही सी जान को मौत देने | क्यों नहीं हमारा सिर शर्म से झुक जाता ,कौन दोषी है ,नारी या यह समाज ,क्यों कमज़ोर पड़ जाती है नारी | अधूरी है ईश्वर की पूजा अगर यह पाप हम नहीं रोक पाते | अधूरा है नारी सशक्तिकरण जब तक भ्रूण हत्यायों का यह सिलसिला हम समाप्त नहीं कर पाते | सही मायने में नारी अबला से सबला तभी बन पाए गी जब वह अपनी जिंदगी के निर्णय स्वयम कर पाये गी |

इसमें कोई दो राय नही है कि आज की नारी घर की दहलीज से बाहर निकल कर शिक्षित हो रही है ,उच्च शिक्षा प्राप्त कर पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर सफलता की सीढियां चढ़ती जा रही है l आर्थिक रूप से अब वह पुरुष पर निर्भर नही है बल्कि उसकी सहयोगी बन अपनी गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चला रही है l बेटा और बेटी में भेद न करते हुए अपने परिवार को न्योजित करना सीख रही है ,लेकिन अभी भी वह समाज में अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्षरत है ,कई बार न चाहते हुए भी उसे जिंदगी के साथ समझौता करना पड़ता है ,वह इसलिए कि हमारे समाज में अभी भी पुत्र और पुत्री में भेदभाव किया जाता है ,पुत्र के पैदा होने पर घर में हर्षौल्लास का वातावरण पैदा हो जाता है और बेटी के आगमन पर घरवालों के मुहं लटक जाते है ,”चलो कोई बात नही लक्ष्मी आ गई है ”ऐसी बात बोल कर संतोष कर लिया जाता है | दुःख तो तब होता है जब बेटी को गर्भ में ही खत्म कर दिया जाता है , क्या अर्थ रह जाता है ऐसी पूजा का, क्यों मनाते है हम नवरात्री ,दुर्गा पूजा जैसे त्यौहार जब उसके वास्तविक अर्थ एवं मूल्यों से हम अभी तक अनजान है,? क्या अर्थ रह जाता है ऐसी पूजा का जब हम देवी माँ के पावन अंश को माँ के पेट में ही समाप्त कर देते है ?

रेखा जोशी