पाजेब की छम छम
सुनते ही
ख़ुशी की इक लहर
दौड़ने लगती
मन में
मिलता सकून
उसके आने की
आहट से
कैसे लिख पाती
कुछ
अगर आज वह न आती
मुस्कुराती हुई
साँवली सलोनी
के घर में घुसते ही
खिल उठा मेरा मन
क्यों न करें
धन्यवाद उसका
बुहारती हमारा घर आंगन
हमारे हाथों का
करती काम
तभी निकल पाते
हम बाहर घर से
वह और कोई नही
है वह मेरे घर की
साँवली सलोनी
बाई
रेखा जोशी
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