Thursday 12 March 2015

चलती रहती है ज़िंदगी उम्मीद की चादर लिये

गुज़र जाता है वक्त
छोड़ पीछे
लगाने को  डुबकियाँ
अनगिनत यादों के
सागर में
.
यादें जो
पलक बंद करते ही
तैरती है नैनों में
उठती है टीस  कभी
और
भर जाते है नैन कभी
मुस्कुरा उठते है लब कभी
और
खिल उठता है मन
जब भर जाते है रंग ख़ुशी के
जीवन की
गागर में
.
वक्त के आंचल तले
भर जाते है गम के लम्हे
बिसरा  कर सब
चलती रहती है ज़िंदगी
उम्मीद की
चादर लिये
रेखा जोशी



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