धरती से सोना उगाता
धरतीपुत्र कहलाता
भर कर पेट सबका
खुद भूखा सो जाता
फिर भी नहीं घबराता
देख फसल खड़ी खलिहान में
मन ही मन हर्षाता
लेकिन नही सह पाता
प्रकृति और क़र्ज़ की मार
मन ही मन टूट जाता
गरीबी और सूखे से होता
दुखी लाचार
आखिर
थक हार कर जीवन से
असहाय वह छोड़ कर
सबका साथ
थाम लेता अंत में
मौत का हाथ
रेखा जोशी
धरतीपुत्र कहलाता
भर कर पेट सबका
खुद भूखा सो जाता
फिर भी नहीं घबराता
देख फसल खड़ी खलिहान में
मन ही मन हर्षाता
लेकिन नही सह पाता
प्रकृति और क़र्ज़ की मार
मन ही मन टूट जाता
गरीबी और सूखे से होता
दुखी लाचार
आखिर
थक हार कर जीवन से
असहाय वह छोड़ कर
सबका साथ
थाम लेता अंत में
मौत का हाथ
रेखा जोशी
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