Wednesday, 25 March 2015

सपनो का घर

सपनों के घर में
करना चाहती कैद
धूप को
जगमगा उठे वहाँ
कोना कोना
रोशन हो जायें दीवारे जहाँ
इन्द्रधनुष के रंगों से
खिलखिलाये जहाँ
महकती खुशियाँ
हूँ जानती सजेगा इक दिन
प्रीत की डोर से
मेरे सपनो का घर
और बुझे गी इक दिन
चिर प्यास मेरी
नहीं ओस की बूँदों से
भर जाये गा तब
मेरे अंतर्मन का
प्रेम घट अमृत की
बूँद बूँद से

रेखा जोशी

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