Monday 27 April 2020

आह

दिल में यह हसरत थी कि कांधे पे उनके
रख के मै सर ,ढेर सी बाते करूँ ,बाते
जिसे सुन कर वह गायें,गुनगुनायें
बाते जिसे सुन वह हसें ,खिलखिलायें
बाते जिसे सुन प्यार से मुझे सह्लायें
तभी उन्होंने कहना शुरू किया और
मै मदहोश सी उन्हें सुनती रही
वह कहते रहे ,कहते रहे और मै
सुनती रही ,सुनती रही सुनती रही
दिन महीने साल गुजरते गए
अचानक मेरी नींद खुली और मेरी
वह ढेर सी बातें शूल सी चुभने लगी
उमड़ उमड़ कर लब पर मचलने लगी
समय ने दफना दिया जिन्हें सीने में ही
हूक सी उठती अब इक कसक औ तडप भी
लाख कोशिश की होंठो ने भी खुलने की
जुबाँ तक ,वो ढ़ेर सी बाते आते आते थम गयी
होंठ हिले ,लब खुले ,लकिन मुहँ से निकली
सिर्फ इक आह ,हाँ ,सिर्फ इक आह

Friday 24 April 2020

जीवन तो चलता रहता है

जीवन तो चलता रहता है 

गुज़र जाती
है सारी जिंदगी
पूरा करने 
अपने सपनों को 
लेकिन सपने तो सपने हैं 
कब  होते  वोह अपने  हैं 

टूट जाते हैं अक्सर 
जीवन में कुछ सपने अपने 
हासिल न कर पाने का 
दुख होता है बहुत 
लेकिन 
कुछ सपनों के टूट जाने से 
रुकता नहीं 
जीवन तो चलता रहता है 

रुकता नहीं वक्त 
कभी किसी के लिए 
जीवन चलने का नाम है 
जो छूट गया सो छूट गया 
संजो  कर सपने नए 
चलता चल बढ़ता चल 
करने नए सपने साकार 
लेकिन रख याद 
कुछ सपनों के टूट जाने से 
रुकता नहीं 
जीवन तो चलता रहता है 

रेखा जोशी 


Saturday 18 April 2020

मुक्तक कोरोना पर

छूओ  ना छूओ  ना छूओ  ना 
कुछ भी ना तुम अब  तो छूओ  ना
साबुन से  धों   हाथों को अपने 
भागेगा  फिर जालिम कोरोना 
.. 
कोरोना  ने  ढाया  कैसा अत्याचार है
आज  मंदिरों  के  भी बंद  हुए द्वार है 
ईश्वर तो सदा  रहता  ह्रदय  में   हमारे 
सुन लेता हमारे मौन दिल की पुकार है 

रेखा जोशी 



Tuesday 14 April 2020

जो न समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ (ग़ज़ल)


जो न  समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ 
जी सके हम जो नही वह ज़िंदगी कैसे कहूँ 
…… 
आसमाँ पर चाँद निकला हर तरफ बिखरी किरण 
जो   न  उतरे   घर   हमारे   चाँदनी    कैसे   कहूँ 
...... 
मुस्कुराती हर अदा तेरी सनम जीने न दे 
हाल  अपने  की  हमारे   बेबसी कैसे कहूँ 
…… 
राह मिल कर हम चले थे ज़िंदगी भर के लिये 
मिल सके जो तुम न हम को वह कमी कैसे कहूँ 
…… 
हो  गया रोशन जहाँ जब प्यार मिलता है यहाँ 
जो न आई घर हमारे रौशनी कैसे कहूँ 

रेखा जोशी 

Wednesday 8 April 2020

जिंदगी

माना दर्द भरा संसार यह ज़िंदगी
लेकिन फिर भी है दमदार यह ज़िंदगी
,
आंसू  बहते  कहीं  मनाते जश्न  यहां
सुख दुख देती हमें अपार यह ज़िंदगी
,
रूप जीवन का बदल रहा पल पल यहां 
लेकर नव रूप करे सिंगार यह जिंदगी 

ढलती शाम डूबे सूरज नित धरा पर 
आगमन भोर का आधार यह ज़िंदगी
,
चाहे मिले ग़म खुशियां मिली है हज़ार 
हर्ष में खिलता हुआ प्यार यह ज़िंदगी

रेखा जोशी

Tuesday 7 April 2020

प्रार्थना (शीश अपना ईश के आगे झुकाना चाहिए)

शीश अपना ईश के आगे झुकाना चाहिए
नाम मिलकर हर किसी को साथ गाना चाहिए
….
पीर हरता हर किसी की ज़िंदगी में वह सदा
नाम सुख में भी हमें तो याद आना चाहिए
…..
पा लिया संसार सारा नाम जिसने भी जपा
दीप भगवन नेह का मन में जलाना चाहिए
…..
गीत गायें प्रेम से दिन रात भगवन हम यहाँ
प्रीत भगवन आप को भी तो निभाना चाहिए
….
हाथ अपने जोड़ कर हम माँगते तुमसे दया
प्रभु कृपा करना हमें अपना बनाना चाहिए

रेखा जोशी

Friday 3 April 2020

फैलते कंक्रीट के जंगल

ढलती शाम में जब सूर्य देवता  ने धीरे धीरे पश्चिम की ओर प्रस्थान किया, तब नीतू का मन अपने फ्लैट में घबराने लगा । वह अपने बेटे के साथ अपने फ्लैट के सामने वाले पार्क में टहलने चली गई । वहाँ खुली हवा में घूमना उसे बहुत अच्छा लग रहा था, और वह ठीक भी था उसके और उसके बेटे के लिए, तभी टहलते हुए उसकी नज़र बेंच पर बैठे एक बुज़ुर्ग जोड़े पर पड़ी ,वह भी खुली जगह पर बैठ शीतल हवा का आनंद उठा रहे थे । एकाएक उसकी नज़र ऊँची ऊँची इमारतों पर पड़ी ,उसे ऐसा लगा जैसे वह इमारते उसकी ओर बढ़ती आ रही है और वह  कंक्रीट का जंगल  फैलता हुआ उस पार्क की ओर बढ़ता आ रहा है ,हाँ उसके चारो ओर जैसे घुटन ही घुटन बढ़ने लगी और नीतू की सांस रुकने लगी  । ”नही ,ऐसा नही हो सकता ”वह मन ही मन बुदबुदाने लगी । तभी वह तंद्रा से जाग गई ,सोच में पड़ गई ,”अगर यह कंक्रीट के जंगल बढ़ते गए तब क्या होगा हमारे बच्चों का और उस समय हमारे जैसे बुज़ुर्ग स्वच्छ हवा के लिए कहाँ जायें गे ???

रेखा जोशी

घर घर की कहानी

अमित अपने पर झल्ला उठा ,”मालूम नहीं मै अपना सामान खुद ही रख कर क्यों भूल जाता हूँ ,पता नही इस घर के लोग भी कैसे कैसे है ,मेरा सारा सामान उठा कर इधर उधर पटक देते है ,बौखला कर उसने अपनी धर्मपत्नी को आवाज़ दी ,”मीता सुनती हो ,मैने अपनी एक ज़रूरी फाईल यहाँ मेज़ पर रखी थी ,एक घंटे से ढूँढ रहा हूँ ,कहाँ उठा कर रख दी तुमने ?गुस्से में दांत भींच कर अमित चिल्ला कर बोला ,”प्लीज़ मेरी चीज़ों को मत छेड़ा करो ,कितनी बार कहा है तुम्हे ,”अमित के ऊँचे स्वर सुनते ही मीता के दिल की धड़कने तेज़ हो गई ,कहीं इसी बात को ले कर गर्मागर्मी न हो जाये इसलिए वह भागी भागी आई और मेज़ पर रखे सामान को उलट पुलट कर अमित की फाईल खोजने लगी ,जैसे ही उसने मेज़ पर रखा अमित का ब्रीफकेस उठाया उसके नीचे रखी हुई फाईल झाँकने लगी ,मीता ने मेज़ से फाईल उठाते हुए अमित की तरफ देखा ,चुपचाप मीता के हाथ से फाईल ली और दूसरे कमरे में चला गया ।
अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब हमारी इच्छानुसार कोई कार्य नही हो पाता तब क्रोध एवं आक्रोश का पैदा होंना सम्भाविक है ,याँ छोटी छोटी बातों याँ विचारों में मतभेद होने से भी क्रोध आ ही जाता है |यह केवल अमित के साथ ही नही हम सभी के साथ आये दिन होता रहता है | ऐसा भी देखा गया है जो व्यक्ति हमारे बहुत करीब होते है अक्सर वही लोग अत्यधिक हमारे क्रोध का निशाना बनते है और क्रोध के चलते सबसे अधिक दुःख भी हम उन्ही को पहुँचाते है ,अगर हम अपने क्रोध पर काबू नही कर पाते तब रिश्तों में कड़वाहट तो आयेगी ही लेकिन यह हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी क्षतिगरस्त करता है ,अगर विज्ञान की भाषा में कहें तो इलेक्ट्रोइंसेफलीजिया [ई ई जी] द्वारा दिमाग की इलेक्ट्रल एक्टिविटी यानिकि मस्तिष्क में उठ रही तरंगों को मापा जा सकता है ,क्रोध की स्थिति में यह तरंगे अधिक मात्रा में बढ़ जाती है | जब कोई व्यक्ति पूरी तरह से अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है तब मस्तिष्क तरंगे बहुत ही अधिक मात्रा में बढ़ जाती है और चिकित्सक उसे पागल करार कर देते है | क्रोध भी क्षणिक पागलपन की स्थिति जैसा है जिसमे व्यक्ति अपने होश खो बैठता है और अपने ही हाथों से जुर्म तक कर बैठता है और वह व्यक्ति अपनी बाक़ी सारी उम्र पछतावे की अग्नि में जलता रहता है ,तभी तो कहते है कि क्रोध मूर्खता से शुरू हो कर पश्चाताप पर खत्म होता है |
मीता की समझ में आ गया कि क्रोध करने से कुछ भी हासिल नही होता उलटा नुक्सान ही होता है , उसने कुर्सी पर बैठ कर लम्बी लम्बी साँसे ली और एक गिलास पानी पिया और फिर आँखे बंद कर अपने मस्तिष्क में उठ रहे तनाव को दूर करने की कोशिश करने लगी ,कुछ देर बाद वह उठी और एक गिलास पानी का भरकर मुस्कुराते हुए अमित के हाथ में थमा दिया ,दोनों की आँखों से आँखे मिली और होंठ मुस्कुरा उठे |

मुक्तक

नहीं देखे करोंना कोई जाति पाती 
बात यह लोगों को क्यों समझ नहीं आती 
थूक रहे उन पर जो देते जीवन दान 
कब सुधरेंगे लोग कहते जिन्हें जमाती 

रेखा जोशी