ढलती शाम में जब सूर्य देवता ने धीरे धीरे पश्चिम की ओर प्रस्थान किया, तब नीतू का मन अपने फ्लैट में घबराने लगा । वह अपने बेटे के साथ अपने फ्लैट के सामने वाले पार्क में टहलने चली गई । वहाँ खुली हवा में घूमना उसे बहुत अच्छा लग रहा था, और वह ठीक भी था उसके और उसके बेटे के लिए, तभी टहलते हुए उसकी नज़र बेंच पर बैठे एक बुज़ुर्ग जोड़े पर पड़ी ,वह भी खुली जगह पर बैठ शीतल हवा का आनंद उठा रहे थे । एकाएक उसकी नज़र ऊँची ऊँची इमारतों पर पड़ी ,उसे ऐसा लगा जैसे वह इमारते उसकी ओर बढ़ती आ रही है और वह कंक्रीट का जंगल फैलता हुआ उस पार्क की ओर बढ़ता आ रहा है ,हाँ उसके चारो ओर जैसे घुटन ही घुटन बढ़ने लगी और नीतू की सांस रुकने लगी । ”नही ,ऐसा नही हो सकता ”वह मन ही मन बुदबुदाने लगी । तभी वह तंद्रा से जाग गई ,सोच में पड़ गई ,”अगर यह कंक्रीट के जंगल बढ़ते गए तब क्या होगा हमारे बच्चों का और उस समय हमारे जैसे बुज़ुर्ग स्वच्छ हवा के लिए कहाँ जायें गे ???
रेखा जोशी
सार्थक आलेख।
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏
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