Tuesday 14 April 2020

जो न समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ (ग़ज़ल)


जो न  समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ 
जी सके हम जो नही वह ज़िंदगी कैसे कहूँ 
…… 
आसमाँ पर चाँद निकला हर तरफ बिखरी किरण 
जो   न  उतरे   घर   हमारे   चाँदनी    कैसे   कहूँ 
...... 
मुस्कुराती हर अदा तेरी सनम जीने न दे 
हाल  अपने  की  हमारे   बेबसी कैसे कहूँ 
…… 
राह मिल कर हम चले थे ज़िंदगी भर के लिये 
मिल सके जो तुम न हम को वह कमी कैसे कहूँ 
…… 
हो  गया रोशन जहाँ जब प्यार मिलता है यहाँ 
जो न आई घर हमारे रौशनी कैसे कहूँ 

रेखा जोशी 

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