Tuesday 30 June 2015

अच्छा किया जो हमसे साजन कर लिया किनारा

माना  था  तुम्हे   अपना  गैर  को  दिया  सहारा 
सुना  नही  सजन  हमने  तो बहुत  पिया पुकारा 
चाहत  तेरी  लिये   भटकते  रहे  हम  दर  ब  दर
अच्छा किया जो हमसे साजन कर लिया किनारा

रेखा जोशी 

सपनो का संसार



रेनू ,सीमा के बचपन की सखी ,एक अत्यंत सरल स्वभाव और सात्विक विचारों वाली प्यारी सी लडकी थी । सीमा को बहुत ही आश्चर्य होता था जब भी रेनू कोई भी सपना देखती थी वह सदा सच हो जाता था ।आने वाली घटनाएं कैसे रेनू को सपनो में ही अनूभूति हो जाती थी ? ऐसे देखा गया है कि पूर्वाभास कई लोगों को हो जाता है परन्तु कितनी विचित्र बात है यह ,जो अभी घटित हुआ ही नही है उसका आभास पहले कैसे हो सकता है ।क्या हमारी जिंदगी की किताब पहले से ही लिखी जा चुकी और हम अपने आने वाले कल का केवल पन्ना पलट कर पढ़ रहें है। 

 ”सपनो की दुनिया भी कितनी अजीब होती है ,सपने में सपना जैसा कुछ लगता ही नही ,बिलकुल ऐसा महसूस होता है जैसे सब सचमुच में घटित हो रहा हो । अपने विचारों में खोई सीमा की कब आँख लग गई उसे पता ही नही चला ”,उफ़ ,कितना भयानक सपना था ,अच्छा हुआ नींद खुल गई ”डरी हुई सीमा बिस्तर छोड़ ,बाथरूम में जा कर मुहं धोने लगी ,उसके सीने में अभी भी दिल जोर जोर से धडक रहा था और सांस फूली हुई थी |अक्सर हम सब के साथ ऐसा ही कुछ होता है जब भी हम कभी कुछ ऐसा ही भयानक सा सपना देखतें है ,और जब कभी बढ़िया स्वप्न आता है तो नींद से जागने की इच्छा ही नही होती ,हम जाग कर भी आँखे मूंदे उसका आनंद लेते रहते है |
सीमा बार बार उसी सपने के बारे में सोचने लगी ,तभी उसे अपनी साइकालोजी की टीचर की क्लास याद आ गई ,जब वह बी .एड कर रही थी ,सपनो पर चर्चा चल रही थी,”हमारी जागृत अवस्था में हमारे मस्तिष्क में लगातार विभिन्न विभिन्न विचारों का प्रवाह चलता रहता है ,और जब हम निंदिया देवी की गोद में चले जातें तो वह सारे विचार आपस में ठीक वैसे ही उलझ जाते है जैसे अगर ऊन के बहुत से धागों को हम इकट्ठा कर एक स्थान पर रख दें और बहुत दिनों बाद देखें तो हमें वह सारे धागे आपस में उलझे हुए मिलें गे , ठीक वैसे ही जब हम सो जाते है हमारे सुप्त मस्तिष्क के अवचेतन भाग में वह उलझे हुए विचार एक नयी ही रचना का सृजन कर स्वप्न का रूप ले कर हमारे मानस पटल पर चलचित्र की भांति दिखाई देते है | फ्रयूड के अनुसार हम अपनी अतृप्त एवं अधूरी इच्छायों की पूर्ति सपनो के माध्यम से करते है ,लेकिन दुनियां में कई बड़े बड़े आविष्कारों का जन्म सपनो में ही हुआ है ,जैसे की साइंसदान कैकुले ने छ सांपो को एक दूसरे की पूंछ अपने मूंह में लिए हुए देखा,और बेन्जीन का फार्मूला पूरी दुनिया को दिया |

 अनेक साईकालोजिस्ट्स ने सपनो की इस दुनिया में झाँकने की कोशिश की, लेकिन इस रहस्यमयी दुनिया को जितना भी समझने की कोशिश की जाती रही है ,उतनी ही ज्यादा यह उलझाती रही है |हमें सपने क्यों आते है ?कई बार सपने आते है और हम उन्हें भूल जातें है ?हमारी वास्तविक दुनिया में सपनो का कोई योगदान है भी यां नही ,और कई बार तो हमारे सपने सच भी हो जाते है |अनगिनत सवालों में एक पहलू यह भी है ,जब हम सो जाते है तब हमारा जागृत मस्तिष्क आराम की स्थिति में चला जाता है और उस समय मस्तिष्क तरंगों का कम्पन जिसे फ्रिक्युंसी कहते है ,जागृत अवस्था की मस्तिष्क तरंगो की अपेक्षा घट कर आधी रह जाती है ,उस समय हमारी बंद आँखों की पुतलिया घूमने लगती है जिसे आर ई एम् कहते है ,मस्तिष्क की इसी स्थिति में हमे सपने दिखाई देते है |एक मजेदार बात यह भी उभर के आई कि जब हम ध्यान की अवस्था में होते है तो उस समय भी मस्तिष्क तरंगों की कम्पन कम हो जाती है और हम जागृत अवस्था में भी आर ई एम की अवस्था में पहुंच सकते है ,अगर उस समय हम जागते हुए भी कोई सपना देखते है तो उसे हम पूरा कर सकते है | 

सीमा के मानस पटल पर बार बार रेनू का चित्र उभर कर आ रहा था ,शायद वह हमेशा ध्यानावस्था में ही रहती हो ,इसी कारण उसके मस्तिष्क के तरंगों की फ़्रिक्युएन्सी कम ही रहती हो और वह जो भी सपना देखती है वह सच हो जाता हो । सीमा के मस्तिष्क में भी अनेक विचार घूम रहे थे और वह बिस्तर पर लेट कर ध्यान लगाते हुए अपने सपनो के संसार में पहुंचना चाह रही थी ताकि वह भी अपने सपनो को सच होते देख सके ।

रेखा जोशी 

Monday 29 June 2015

झूठा था सब [क्षणिका ]

नैनों से बरसता नेह
होंठो पर तुम्हारे
मौन मुस्कुराहट
खिला खिला चेहरा
मेरे जीवन का था इक  सहारा
झूठा था सब
टूट गया दिल
छोड़ कर मुझे तुम
जब चले गए
किसी और के संग

रेखा जोशी 

रिमझिम रिमझिम बरसती यह ठण्डी फुहार रुलाती है

रिमझिम रिमझिम बरसती यह ठण्डी फुहार रुलाती  है
घनघोर घटा   संग  दामिनी  नभ  पर  रास  रचाती   है
छुप   गया   चंदा   बदरा   संग   तारों  की  बारात लिये
लगा  कर अगन  शीतल  हवायें  बिरहन  को  सताती है
रेखा जोशी

Sunday 28 June 2015

लड़ मरने को तैयार जननी जन्म भूमि के लिये


मर मिटने को तैयार जननी जन्म भूमि के लिये
लड़ मरने  को तैयार जननी जन्म भूमि के लिये
देश  के  मान  की  खातिर  तैनात दूर  सीमा पर
सर कटने  को तैयार जननी जन्म भूमि के लिये

रेखा जोशी 

Saturday 27 June 2015

ढूँढती गोपाला को गोपियाँ गोकुल में

न जाने  कहाँ  यशोदा का कान्हा  छुपा है
गोपियों का तो मनमोहन प्यारा सखा है
ढूँढती   गोपाला  को  गोपियाँ  गोकुल में
कान्हा  तो  सदा  राधा के मन में बसा है

रेखा जोशी 

तूने ही जीवन मेरा सँवारा है

आज फिर इस दिल ने तुझे पुकारा है
इक  तू   ही  तो   जीने   का सहारा है
आ    जाओ  बैठे   है   राह   में    तेरी
तूने   ही   जीवन   मेरा    सँवारा    है

रेखा जोशी 

Friday 26 June 2015

दूर आसमाँ ज़मीं जहाँ मिले वहीँ चलें


प्यार चाह  ज़िंदगी जहाँ फले  वहीँ  चलें
हाथ थाम कर   चमन जहाँ खिले वहीँ चलें 
ज़िंदगी कभी मिला  नहीं  सकी हमे सजन 
दूर  आसमाँ  ज़मीं   जहाँ   मिले  वहीँ चलें 

रेखा जोशी 

Thursday 25 June 2015

उतर आता सतरंगी आसमाँ

अक्सर
देखती हूँ ख़्वाब 
है लगता अच्छा 
लगा कर सुनहरे पँख
जब उड़ता अंबर में
मेरा मन और फिर 
उतर आता सतरंगी आसमाँ 
ख्वाबों में मेरे
होता झंकृत मेरा मन 
छिड़ जाते तार इंद्रधनुष के
और फिर बज उठता
अनुपम संगीत 
थिरकने लगता मेरा मन
और फिर होता सृजन मेरी 
रंग बिरंगी कल्पनाओं का
उतरती कागज़ पर
शब्दों से सजी कविता
गुनगुनाते लब मेरे
और फिर 
मुस्कुराती है ज़िंदगी
खिलखिलाती है ज़िंदगी 

रेखा जोशी

पा कर स्पर्श तेरा जी उठी ज़िंदगी

अधूरी यहाँ तुम बिन हमारी ज़िंदगी
जी  रहे  कब  से  सूनी  सूनी ज़िंदगी
जग उठे है  सपने कई  आये जो तुम
पा  कर  स्पर्श  तेरा  जी उठी ज़िंदगी

रेखा जोशी 

मिल कर साथ तराना गाना पड़ता है

नौका को  पार  नदी  जाना   पड़ता है
कश्ती को साहिल तक लाना पड़ता है

तेरी   खातिर  अब  ज़हर  पिया  हमने
दिल  में  दर्द  लिये  मुस्काना  पड़ता है

गर दिल को मेरे जब समझे ना वो
देखो प्यार वहाँ जतलाना पड़ता है

आओ जीवन में साथ चलें हम  दोनों
जीवन का यह सफर निभाना पड़ता है 
.... 
गाये गीत अकेले हमने दुनिया में 
मिल कर साथ तराना गाना  पड़ता है 

रेखा जोशी 

Wednesday 24 June 2015

हर पल नित नया रूप बदल रही सृष्टि

अनमोल  धरती  पर है मिलता जीवन 
पेड़  पौधों  पर  भी है  फलता  जीवन 
हर पल नित नया रूप बदल रही सृष्टि 
पाषाण   चट्टानों   में  खिलता  जीवन 

रेखा जोशी 

Tuesday 23 June 2015

बन सकते नहीं अगर आप हमारे अपने


सजन  अपने   से  निगाहें   चुराना मना है
किसी  गैर  से  भी  नज़रें  मिलाना मना है
बन  सकते  नहीं अगर आप  हमारे  अपने
दिल ऐ  नादाँ  कहीं  और  लगाना   मना है

रेखा जोशी 

अपने ह्रदय की गहराइयों से आप सभी का हार्दिक धन्यवाद

सभी मित्रों ने मेरे जन्मदिन को अपनी शुभकामनायों से ख़ास बना दिया ,आप सभी की शुभकामनायों ने मुझे भावविभोर कर दिया ,अपने ह्रदय की गहराइयों से आप सभी का हार्दिक धन्यवाद

अपने जन्मदिवस पर [21 जून ]

सुबह सुबह उठ कर
परमपिता को शीश नवाया
जिसने हरपल मेरा  साथ निभाया
रौशन कर
पैंसठ वर्ष ज़िंदगी के
करती हूँ प्रार्थना
रहे सदा सर पर मेरे
हाथ उसका
करती हूँ धन्यवाद
आप सब का
दुआयों से आपकी
मिला सम्बल मुझे
बहुत जिया अपने लिये
अभिलाषा है बस
यही अब
काम आये जीवन मेरा
किसी और के लिए

रेखा जोशी



प्रेम की गलियों में

प्रेम का
दीपक जलाये
वफ़ा की गलियों में
हम गुज़रते रहे
सजाये
सतरंगी सपने
अपने नयनों में
तुम संग
दिल ओ जान से
प्रेम की गलियों में
हम गुज़रते रहे
बेखबर दुनिया से
हाथो में थामे हाथ
तुम्हारा मदहोश से
वफ़ा की राह पे
हम गुज़रते रहे
अचानक लौ
प्रेम के दीपक की
थरथराने लगी
चलने लगी जब
फ़रेब की तेज़ आँधी
लाख बचाया
बुझने से
दीपक को मैने
पर तहस नहस
हो गई वह
प्रेम की गलिया
जहाँ पर कभी
हम गुज़रते रहे
खा कर धोखा भटक रहे
तन्हा हम
हाथों में ले कर
वही दीपक
उन्ही गलियों में
जहाँ तुम संग
हम गुज़रते रहे

रेखा जोशी

Monday 22 June 2015

तोड़ा अपना वादा

दूर अपने घर से 
न जाने कहाँ  आ गया मै 
आँखे बिछाए बैठी होगी वह 
निहारती होगी रस्ता मेरा 
और मै पागल छोड़ आया उसे 
बीच राह पर 
खाई थी कसम 
सातों वचन निभाने की 
कैसे करूँ  पश्चाताप 
तोड़ा अपना वादा 

रेखा जोशी

Sunday 21 June 2015

Happy father's day

पालनहार

प्रणेता छत्रछाया
करता प्यार
अवतरित हुआ
धरती पर तात
..........
देता जनक
रूप ईश्वर धर
नेह अपार
है करते  नमन
शत शत प्रणाम

रेखा जोशी

Saturday 20 June 2015

आये न पिया

रिम झिम रिम झिम
गरजत बरसत काले मेघा
आये न पिया
टप टप टिप टिप
बरस रही बारिश की बूंदे
पिया गये परदेस मोहे छोड़ अकेला
सूना अंगना जले जिया 
आये न पिया
इक बरसे बदरिया
दूजे मोरे नयना 
आये न पिया
बिजुरी चमके धड़के जिया
घर आजा मोरे सावरियाँ
चारो ओऱ जलथल जलथल
तरसे प्यासे नयना
पीर न जाने इस दिल की
धड़के मोरा जिया 
आये न पिया

रेखा जोशी

घनघोर घटा संग दामिनी नभ पर रास रचाती है

सावन  की  भीगी  रात में ठण्डी  फुहार  रुलाती  है
घनघोर घटा संग  दामिनी नभ  पर रास रचाती  है
छुप  गया  चंदा  बदरा  संग  तारों की बारात लिये
लगा कर अगन शीतल हवायें बिरहन को सताती है
रेखा जोशी

टेकने पड़ते घुटने वक्त के आगे

मत देखो ख़्वाब 
जो कभी 
पूरे हो नही सकते 
कितने भी सुन्दर हों 
रेत के महल 
आखिर 
इक दिन तो 
गिरना है उन्हें 
कभी कभी 
ज़िंदगी भी हमे 
ले आती 
ऐसी राह पर 
जहाँ 
टेकने पड़ते घुटने 
वक्त के आगे 
और 
बस सिर्फ इंतज़ार
पड़ता है करना
न जाने कब तक 

रेखा जोशी 


… 

Friday 19 June 2015

मिला जीवन मुझे सूनी मगर मधुशाला


था सामने जाम यहाँ खाली पर प्याला 
झूमती दुनिया सारी पी पी कर हाला
न जाने कब झूमूँ  मै भी मधुमय हो कर
मिला जीवन मुझे सूनी मगर मधुशाला
रेखा जोशी




अभिवादन

सुबह सुबह
सुनहरी धूप ने
दी दस्तक दरवाज़े पर
न जाने खिड़की पर
कहाँ से आई
चहकती हुई
इक सुन्दर चिड़िया
कह रही
मानो सुप्रभात
फैलाये पंख अपने
नाचती हुई कर रही
अभिवादन
मेरा और इस
सृष्टि का

रेखा जोशी

गर समझते हो खुद को मुर्गा

 छोड़ इक
अपनी घरवाली
लगती प्यारी
न जाने क्यों बाहरवाली
भाभी जी पड़ोस की
या फिर
घरवाली की सहेली
दिखती सदा खिली खिली सी
न  करती कोई शिकवा
और न ही करती कोई शिकायत
न वह लड़ती
और न ही झगड़ती
है ऐसा ही होता
लगते सदा
ढोल सुहावने दूर के
लेकिन पड़े मुसीबत
अगर  कोई
आती काम सदा घरवाली
मत समझो मेरे भाइयों
अपनी पत्नी को किसी से कम
करो सदा उसका सम्मान
गर समझते हो खुद को मुर्गा
होती नही फिर
घर की मुर्गी  दाल  बराबर

रेखा जोशी 

Thursday 18 June 2015

मिले जो तुम हमें संसार पाया


मिले तुम जो यहाँ अरमान कब था
चले जो तुम सफर अनजान कब था
 …
मिले जो तुम हमें संसार पाया
सफर जीवन का यह आसान कब था

कभी तो तुम इधर आना सजन अब
यहाँ इतना सजन नादान कब था
....
न जाने  साथ फिर तेरा मिले कब
यहाँ पर वक्त  कुर्बान  कब था
....
यहाँ रौनक हमारे  वास अँगना
हमारा घर  यहाँ वीरान कब था

रेखा जोशी


Wednesday 17 June 2015

चमकता तारा सूरज हमारा [बाल कथा ]

पिंकी ने आज फिर राजू के हाथ में किताब देख ली ,बस मचल गई ,''भैया कहानी सुनाओ न ,क्या लिखा है इस किताब में ,बताओ न ''?अपने प्यारे भैया के हाथ से किताब ले कर नन्ही पिंकी उसमे बनी तस्वीरे देख कर बोली,''भैया यह जो गोल गोल है वह हमारी धरती है न,यह बीच में हमारा सूरज है न''|पिंकी की उत्सुकता देख राजू बोला ,''हाँ मेरी प्यारी बहना यह सूरज है और हमारी धरती सूरज के गिर्द सदियों से घूम रही है और घूमती ही रहे गी |चल पिंकी आज हम अन्तरिक्ष की सैर करने चलते है ,आज  रात आसमान बिलकुल साफ़ है  और बादल भी नही है ,देखो आकाश की तरफ ,कितने चमचमाते तारे है '|पिंकी ख़ुशी के मारे झूमने लगी ,''अहा आज तो मज़ा आ जायेगा ''| ''पिंकी उपर आकाश  में देखो जितने भी तारे है वह सब टिमटिमा रहे है और जो टिमटिमाते नही ,वह तारे नही बल्कि हमारी धरती की तरह वह भी ग्रह है जो सूरज के गिर्द घूम रहे है ,हमारा सूरज भी इतने बड़े अन्तरिक्ष में एक तारा है ,लेकिन बाकी तारों की अपेक्षा यह हमारी धरती के पास है ,इसलिए यह हमे बहुत बड़ा दिखाई देता है ,जो तारे हमे टिमटिमाते नजर आते है वह हमारे सूरज से भी बहुत बहुत बड़े हो सकते है |सभी तारे बहुत बड़े आग के गोले होते है और इनके अंदर ही ऊर्जा पैदा होती रहती है ,हमारा सूरज भी एक बहुत बड़ा आग का गोला है और हमे लगातार उर्जा देता रहता है ''|पिंकी बड़ी हैरानी से राजू की बाते सुन रही थी ,''हाँ भैया तभी हमे ठंड में सूरज से गर्मी मिलती है ''|''पिंकी बिलकुल  ठीक ,सूरज के कारण ही हमारी धरती पर जीवन है ,सभी जीवजन्तु ,पेड़ पौधे इस धरती पर सूरज की ऊर्जासे ही जीवन पाते है ''|''वाह क्या बात है भैया ,आसमान में इतने सारे चमकते तारे सब सूरज जैसे ही है,''पिंकी जोर जोर से ताली बजाते हुए नाचने लगी और गाने लगी ,''चमकता तारा ,सूरज हमारा'' |


रेखा जोशी 

बँध गई कान्हा से प्रीत की डोरी सब


इधर   राधा  कृष्ण  की  कहानी हो गई 
मीरा   भी   कृष्ण  की  दीवानी  हो गई 
बँध   गई कान्हा  से  प्रीत की डोरी सब 
गोपियाँ भी कृष्ण सँग मस्तानी हो गई 

रेखा जोशी 





थिरकती गगन पर दिवाकर की सतरंगी रश्मियाँ

सप्तऋषि के दिव्य आलोक से झिलमिलाता है नभ
चमकता   सतरंगी  इन्द्रधनुष   भी  सजाता  है नभ
थिरकती  गगन पर  दिवाकर   की सतरंगी रश्मियाँ
सात   घोड़ों  पे  सवार  अरुण    जगमगाता  है  नभ

रेखा जोशी 

Tuesday 16 June 2015

छीनी सब खुशियाँ तुमने हमसे ज़िंदगी

निभा रहे हम  किसी  तरह तुम्हे ज़िंदगी
सिवा दर्द के कुछ न मिला तुमसे ज़िंदगी
कभी  तो  दो  पल  जीने दो  चैन  से  हमे
छीनी  सब  खुशियाँ तुमने हमसे ज़िंदगी

रेखा जोशी

रचयिता हो तुम मेरे


हूँ हाथों में
तुम्हारे
कच्ची माटी सी
ढाल दो मुझे
जैसा तुम चाहों
दे कर आकार
संवार दो मेरी कृति
हाथों से अपने
रच दो सुन्दर सा
रूप मेरा
खिला खिला सा
देख जिसे
गर्वित हो तुम
अपने अनुपम सृजन पर
और मै रचना
तुम्हारी
झूमने लगूँ थिरकने लगूँ
हर ताल पर
तुम्हारी
नाचूँ गी वैसे
नचाओगे जैसे
रचयिता हो
तुम मेरे
रेखा जोशी

हमने तो तुमसे बस माँगी थी वफ़ा

मुहब्बत में  इतने  मजबूर  क्यों हो
पास रह  कर भी हमसे  दूर  क्यों हो
हमने  तो तुमसे बस माँगी थी वफ़ा
इतने भी सनम तुम मगरूर क्यों हो

रेखा जोशी

Monday 15 June 2015

तन्हा गुज़र रही अब यह ज़िंदगी हमारी

मन की बात साजन तुम कह गये अकेले
पर  गम  जुदाई  का हम सह गये अकेले
तन्हा गुज़र रही अब  यह ज़िंदगी हमारी
दुनिया  की  भीड़  में  हम रह गये अकेले

रेखा जोशी 

प्यार के दर्द में बीत जाते है पल

गीतिका

देखते ही तुम्हे महक जाते है पल
बातों बातों में बीत  जाते है पल

तुम  ना  आये तेरी यादें है पास
तेरी यादों में बीत जाते है पल

गा रहे गीत बीते हुए मधुर क्षण
मनहर गीतों में बीत जाते है पल

दुख ही दुख तो मिले है प्यार में हमें
प्यार  के दर्द में बीत जाते है पल

भटकते रहते है  उन्ही क्षणों में हम
महकते क्षणों  में बीत  जातें है पल

रेखा जोशी 

Sunday 14 June 2015

मांगा था तुम्हे पर हमने ईश्वर पा लिया है

चाहा  था जाम पर हमने सागर पा लिया है 
मांगा था  तुम्हे  हमने  ईश्वर  पा  लिया है 
पा कर तुम्हे है पा लिया सारा जहान हमने 
ज़मीं  संग संग हमने तो अम्बर पा लिया है 

रेखा जोशी 



रिम झिम बरसे काले बादल

हवा शीतल  
रिम झिम बरसे 
काले बादल 

बरखा आई 
भीगता तन  मन 
खुशियाँ लाई 

नाचते मोर 
गुनगुनाती हवा 
मचाती शोर 

उमंग लाये 
गरजते बादल
जिया धड़के 

रेखा जोशी  

Saturday 13 June 2015

वफ़ा ने हमारी पुकारा बहुत है

यहाँ साथ तेरा गवारा बहुत है 
हमें आज तेरा सहारा बहुत है
… 
करें क्या हमारे सहारे सजन तुम 
जहाँ में हमे आज मारा बहुत है
… 
न जाओ अकेले हमें छोड़ कर तुम 
वफ़ा ने हमारी पुकारा बहुत है 
… 
न जाने कहाँ तुम चले छोड़ हम कर
यहाँ दिल हमारा बिचारा बहुत है
....
कभी तो इधर देख साजन हमे अब 
यहाँ ज़िंदगी को निखारा  बहुत है

रेखा जोशी




सपना सच हो मेरा

सुबह सुबह
ठिठुरती सर्दी
भूखे पेट कूड़े के
ढेर से
बीनता सपने
टुकड़ों में
फलों के रोटी के
नही सोऊँगा
खाली पेट
सिर पर होगी छत
कह रहा था वो
मांगता वोट
दे दूँगा जीते हारे
बला से
सपना सच हो
मेरा
रेखा जोशी

Friday 12 June 2015

बढ़ता चल पूर्णता की


आये कहाँ से 
हम 
इस दुनिया में 
जाएँ गे कहाँ 
हम 
नही जानते 
क्या है मकसद 
इस जीवन का 
खाना पीना और सोना 
याँ 
पोषण परिवा का 
करते यह तो 

पशु पक्षी भी 

ध्येय मानव का 

है कुछ और 

कर विकसित 

आत्मा अपनी 

कर उत्थान अपना 

कर कर्म कुछ ऐसा 

और निरंतर 

बढ़ता चल पूर्णता की 

और .... 


रेखा जोशी 

कभी तुम रूठो हमसे तो कभी हम मनायें तुम्हे

ऐसे  ही  हँसने   का  सिलसिला यूँही चलता रहे
आपस में मिलने का सिलसिला यूँही चलता रहे
कभी तुम रूठो हमसे तो कभी हम मनायें तुम्हे
मनाने  रुठने  का  सिलसिला  यूँही  चलता  रहे

रेखा जोशी 

कंठ कोयल सा मीठा और आवाज़ मधुर


गीत न गाने  का  वह करते  रहे बहाने
हुआ झंकृत मन  और  बनते रहे तराने
कंठ कोयल सा मीठा और आवाज़ मधुर
गीतों   पर  उसके  झूमते   रहे  दीवाने

रेखा जोशी

Thursday 11 June 2015

अलिवर्णपाद छंद

अलिवर्णपाद छंद

कैसे कैसे लोग
मुखौटा ओढ़ते
भीतर  अलग
बाहर   अलग
रंग    बदलते
देखते ही मौका

रेखा जोशी 

समझता नही कोई इस जहाँ में

किससे करेंअपनी शिकायत आज
रही   अधूरी   मेरी   चाहत   आज
समझता   नही  कोई इस जहाँ में
नैन  बयान करते  हकीकत आज

रेखा जोशी

है मिली अब हमें ख़ुशी साजन


अब यहाँ पर सजन नज़र रखिये 
दिल के दरिया की कुछ खबर रखिये
… 
आज जलता जहाँ हमें देख कर 
कांधे' पर तुम सजन न सर रखिये 
… 
बेखबर अब रहे न हम साजन
ख्याल अपना सदा इधर रखिये
....
है मिली अब हमें ख़ुशी साजन
प्यार की तुम सदा डगर रखिये 

रात ढलने लगी यहाँ साजन 
प्यार की तुम मगर सहर रखिये 

रेखा जोशी 





Wednesday 10 June 2015

ज़ख्म खायें है बहुत


चोट दिल पर सह गयी 
बात  लब  पर रह गयी 
ज़ख्म  खायें   है  बहुत 
आँख  मेरी   कह  गयी 

रेखा जोशी 

बगिया वीरान आज बिन तेरे अब साजन

फूलों  को  अंगना  में खिलने  की आस  है
गया  पतझड़  बसंत  के फलने की आस है
बगिया  वीरान आज बिन  तेरे अब साजन 
धैर्य  रख  मधुमास  में  मिलने की आस है

रेखा जोशी 

Tuesday 9 June 2015

मिला मुट्ठी भर आसमाँ खिली धूप

मिले जो तुम  मिल गया सारा जहाँ
पा लिया तुम्हें हिल गया सारा जहाँ
मिला  मुट्ठी  भर आसमाँ खिली धूप
आये जो तुम  खिल गया सारा जहाँ

रेखा जोशी 

मिले हमें बस दर्द सदा प्यार में तेरे

सर पर रख हाथ आज तुम न्यास कर लेना
मेरी  मुहब्बत  का  तुम  विश्वास  कर लेना
मिले   हमें  बस   दर्द   सदा  प्यार    में  तेरे
तुम  भी  कभी  दर्द  का  अहसास  कर लेना

रेखा जोशी 

Monday 8 June 2015

है व्याकुल हृदय देख उसे बिलखते हुये

अपनी माँ की  गोद में वह सिमटा हुआ
दुबला  सा  बच्चा  सीने से चिपटा हुआ
है व्याकुल  हृदय देख उसे बिलखते हुए
मैले  कुचैले  चीथड़ों   में   लिपटा  हुआ

  रेखा जोशी


लाये संग तुम यह सब नज़ारे मेरे लिये

मुक्तक

उतर   आये  ज़मीन पर सितारे  मेरे  लिये
खिल  उठी  बगिया में अब बहारें मेरे लिये
चाँद सूरज सी यह दुनिया जगमगाने लगी
लाये  संग  तुम  यह सब नज़ारे  मेरे लिये

रेखा जोशी

चलता चल नहीं रुकना है

काम नदी का तो बहना है 
नाम ज़िंदगी का चलना है 
बहता चल सदा धारा संग 
चलता  चल नहीं रुकना है 

रेखा जोशी 

Sunday 7 June 2015

सुख दुख मिले हज़ार न रोना यहाँ कभी

अब ज़िंदगी निराश न होना यहाँ कभी 
सुख दुख मिले हज़ार न रोना यहाँ कभी 
देती ख़ुशी कभी गम सौ बार ज़िंदगी 
काँटे कहीं सजन मत बोना यहाँ कभी 

रेखा जोशी 

कांपते थे हाथ पढ़ते हुए खत तेरे

क्या ज़माना था वह 
जब जुड़े थे हमारे दिल के तार 
न कोई फोन था तब 
न कोई और साधन 
धड़कते दिल को तब 
रहता था इंतज़ार तेरे खत का 
हर शाम आँखे 
टिक जाती  दरवाज़े पर 
जब तुम दूर थे हमसे 
सीमा पर 
तेरी चिट्ठी भी तो महीनों 
इंतज़ार करवाती थी तब 
कांपते थे हाथ पढ़ते हुए खत तेरे 
और सजल नैनो से  मेरे 
बह जाते थे जज़्बात 
अश्रुधारा बन  पाती पर 
है आज भी सहेजे हुए 
वो जज़्बात उमड़ आते जो फिर से 
जब भी पढ़ती हूँ मै तेरे वह खत 

रेखा जोशी 





ज़िंदगी रूकती नही चलती जाती है

धारा  नदी  की  हरदम  बहती  जाती है
धारा  वक्त  की  आगे   बढती  जाती है
सुख दुःख सब छोड़ पीछे यहाँ जीवन के
ज़िंदगी  रूकती  नही  चलती  जाती  है

रेखा जोशी

Saturday 6 June 2015

पथ में न तुम अब छोड़ना साथी मेरे

तुमने  हमें  बहुत  सताया  साथी मेरे
पग  पग  पर  हमे  रुलाया साथी मेरे
नही जी पायेगे फिर भी हम तेरे बिन
पथ में न तुम अब छोड़ना साथी मेरे

रेखा जोशी 

जूही बेला मोंगरा की कली

जूही बेला मोंगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
संवारती घर पिया का
गाती गुनगुनाती
.
पीर न उसकी
जाने कोई
दर्द सबका अपनाती
खुद  भूखी रह कर भी
माँ का फ़र्ज़ निभाती
जूही बेला मोंगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
.
कोई उसको समझे न पर
रोती लुटती  बीच बाजार
रौंदी मसली जाती
गंदी नाली में दी जाती फेंक
चाहेकितना करे  चीत्कार
तड़पाता  उसे ज़ालिम सँसार
खरीदी बेचीं जाती
जूही बेला मोंगरा की कली
झूठी मुस्कान होंठो पर लिये
आखिर मुरझा जाती

जूही बेला मोंगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती


रेखा जोशी 

Friday 5 June 2015

रास्ते चाहे भिन्न भिन्न लक्ष्य है एक


भरें जल अनेक मगर वह कूप है एक 
लेते नाम  सभी  मगर वह रब है एक 
राम  अल्ला  ईसा वही एक ओमकार 
रास्ते चाहे भिन्न भिन्न लक्ष्य है एक

रेखा जोशी 

Thursday 4 June 2015

अंतरघट तक प्यासी धरा

देती दुहाई सूखी धरा
करती रही पुकार
आसमाँ पर  सूरज फिर भी
रहा बरसता अँगार
सूख गया अब रोम रोम
खिच  गई लकीरें तन  पर
तरसे जल को प्यासी धरती
सबका हुआ बुरा हाल
है प्यासा तन मन
प्यासी सबकी काया
क्षीण हुआ  सबका  श्वास
सूख गया है जन जीवन
सूख गया संसार
है फिर भी मन में आस
उमड़ घुमड़ कर आयेंगे
आसमान में बदरा काले
होगा  जलथल चहुँ ओर फिर से
जन्म जन्म की प्यासी धरा पे
नाचेंगे मोर फिर से
हरी भरी धरा का फिर से
लहरायें गा रोम रोम
बरसेंगी अमृत की बूदें नभ से
होगा धरा पर नव सृजन
नव जीवन से
अंतरघट तक प्यासी धरा
फिर गीत ख़ुशी के गायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी
हरियाली चहुँ ओर छा जायेगी

रेखा जोशी





याद ने आ कर हमको तड़पा रक्खा है



प्यार का दर्द यहाँ आज छुपा रक्खा है 
प्यार तेरा  हमने अब महका रक्खा है 

क्या कहें हो तुम साजन अब तो रब अपना 
आज दिल में अपने प्यार बसा रक्खा है 

होश में गर हम होते अब सुन लो साजन 
जान से भी बढ़ कर प्यार सदा रक्खा है 

बिन सजन के अब कैसे हम ज़िन्दा रहते 
याद ने  आ कर हमको  तड़पा रक्खा है 

छोड़ कर तुम न हमे आज चले फिर जाना 
दिल हमारा तुमने अब धड़का रक्खा है 

रेखा जोशी 
   

है हमारे प्यार की अब ज़िंदगी तुमसे सजन


अब सजन तुमसा सदा दिलदार जीवन में रहे 
तुम  रहो गर  साथ  ना  तकरार जीवन में रहे 
है  हमारे  प्यार  की अब ज़िंदगी तुमसे सजन 
चाह  है  अब  यह  हमारी  प्यार  जीवन में रहे 

रेखा जोशी 

Wednesday 3 June 2015

अस्तित्व मानव का शून्य है यहॉं विस्तृत बह्मांड में

आकाश पर असंख्य सूर्य चाँद तारे सब विचर रहें है
अनगिनत पिंड भी आकाशगंगा संग भ्रमर कर रहें है 
अस्तित्व मानव का शून्य है यहॉं विस्तृत बह्मांड में
शीश झुकाएं अपना नमन उस परम पिता को कर रहें है
रेखा जोशी

हमे इक साथ तेरा ही हमेशा से गवारा है

हमीं मरते रहे तुम पर किया तुमने किनारा है 
चले आओ सजन तुम को यहाँ हमने पुकारा है
.
कभी चाहा नही दौलत हमारे पास हो साजन 
हमे इक  साथ तेरा ही हमेशा से गवारा है 
नही कोई हमारा अब यहाँ पर साथ देता जो 
मिला इक प्यारजो तेरा दिया जिसने सहारा है 
चलो चलते  सजन उस पार दुनियाँ के अकेले हम 
निभाना प्यार का रिश्ता सजन तुमने  हमारा है 
.
अभी तो रात ढलने में बहुत है देर अब साजन 
खुदाया आज मिलने का किया उसने इशारा है 

रेखा जोशी