अक्सर
देखती हूँ ख़्वाब
है लगता अच्छा
लगा कर सुनहरे पँख
जब उड़ता अंबर में
मेरा मन और फिर
जब उड़ता अंबर में
मेरा मन और फिर
उतर आता सतरंगी आसमाँ
ख्वाबों में मेरे
होता झंकृत मेरा मन
होता झंकृत मेरा मन
छिड़ जाते तार इंद्रधनुष के
और फिर बज उठता
अनुपम संगीत
और फिर बज उठता
अनुपम संगीत
थिरकने लगता मेरा मन
और फिर होता सृजन मेरी
रंग बिरंगी कल्पनाओं का
उतरती कागज़ पर
शब्दों से सजी कविता
गुनगुनाते लब मेरे
और फिर
उतरती कागज़ पर
शब्दों से सजी कविता
गुनगुनाते लब मेरे
और फिर
मुस्कुराती है ज़िंदगी
खिलखिलाती है ज़िंदगी
खिलखिलाती है ज़िंदगी
रेखा जोशी
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