Tuesday 16 June 2015

रचयिता हो तुम मेरे


हूँ हाथों में
तुम्हारे
कच्ची माटी सी
ढाल दो मुझे
जैसा तुम चाहों
दे कर आकार
संवार दो मेरी कृति
हाथों से अपने
रच दो सुन्दर सा
रूप मेरा
खिला खिला सा
देख जिसे
गर्वित हो तुम
अपने अनुपम सृजन पर
और मै रचना
तुम्हारी
झूमने लगूँ थिरकने लगूँ
हर ताल पर
तुम्हारी
नाचूँ गी वैसे
नचाओगे जैसे
रचयिता हो
तुम मेरे
रेखा जोशी

No comments:

Post a Comment