आकाश पर असंख्य सूर्य चाँद तारे सब विचर रहें है
अनगिनत पिंड भी आकाशगंगा संग भ्रमर कर रहें है
अस्तित्व मानव का शून्य है यहॉं विस्तृत बह्मांड में
शीश झुकाएं अपना नमन उस परम पिता को कर रहें है
अनगिनत पिंड भी आकाशगंगा संग भ्रमर कर रहें है
अस्तित्व मानव का शून्य है यहॉं विस्तृत बह्मांड में
शीश झुकाएं अपना नमन उस परम पिता को कर रहें है
रेखा जोशी
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