Sunday 29 December 2013

शक्ति सवरूप शिवा हो महादेव की तुम

ममतामयी मूरत हो इस जगत की तुम  

नही  कठपुतली  किसी के हाथों की तुम
छू  कर  आसमां  बना  पहचान  अपनी 

शक्ति सवरूप शिवा हो महादेव की तुम 


रेखा जोशी 

Saturday 28 December 2013

ज़िंदगी है तो ख़ुशी और भी है

हुआ
दुःख
गए मुरझा
कुछ फूल
बगिया के
आस है
फूल और
खिलेंगे
कहीं  रुक
जाना नही
मंज़िल पर
दूर कहीं
मंज़िलें
और
भी है
हो मत
उदास
ज़िंदगी है
तो ख़ुशी
और
भी है

रेखा जोशी


Friday 27 December 2013

मन ही देवता मन ही ईश्वर

मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने कितनी दूर पहुंच जाता है ,हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की उथल पुथल में उलझा रहता है ,भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,यह विचार ही तो है जो पहले मनुष्य के मन में उठते है फिर उसे ले जाते है कर्मक्षेत्र की ओर । जो भी मानव सोचता है उसके अनुरूप ही कर्म करता है ,तभी तो कहते है अपनी सोच सदा सकारात्मक रखो ,जी हां ,हमें मन में उठ रहे अपने विचारों को देखना आना चाहिए ,कौन से विचार मन में आ रहे है और हमे वह किस दिशा की ओर ले जा रहे है ,कहते है मन जीते जग जीत ,मन के हारे हार ,यह मन ही तो है जो आपको ज़िंदगी में सफल और असफल बनाता है ।
ज़िंदगी का दूसरा नाम संघर्ष है ,हर किसी की ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आते रहते है लेकिन जब परेशानियों से इंसान घिर जाता है तब कई बार वह हिम्मत हार जाता है ,उसके मन का विशवास डगमगा जाता है और घबरा कर वह सहारा ढूँढने लगता है ,ऐसा ही कुछ हुआ था सुमित के साथ जब अपने व्यापार में ईमानदारी की राह पर चलने से उसे मुहं की खानी पड़ी ,ज़िंदगी में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने की जगह वह नीचे लुढ़कने लगा ,व्यापार में उसका सारा रुपया डूब गया ,ऐसी स्थिति में उसकी बुद्धि ने भी सोचना छोड़ दिया ,वह भूल गया कि कोई उसका फायदा भी उठा सकता ,खुद पर विशवास न करते हुए ज्योतिषों और तांत्रिकों के जाल में फंस गया ।
जब किसी का मन कमज़ोर होता है वह तभी सहारा तलाशता है ,वह अपने मन की शक्ति को नही पहचान पाता और भटक जाता है अंधविश्वास की गलियों में । ऐसा भी देखा गया है जब हम कोई अंगूठी पहनते है याँ ईश्वर की प्रार्थना ,पूजा अर्चना करते है तब ऐसा लगता है जैसे हमारे ऊपर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है लेकिन यह हमारे अपने मन का ही विशवास होता है । मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोई ,अगर मन में हो विशवास तब हम कठिन से कठिन चुनौती का भी सामना कर सकते है |
क्यों न हम नववर्ष पर यह संकल्प लें और अपने मन को ऊपर उठाने वाले शुभ विचार दें , । शांत मन से अपने अंतस की आवाज को सुनते हुए से शुभ कर्म करते जाएँ | इस नववर्ष पर मैने अटल संकल्प लिया है कि मै अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनते हुए मन को ऊपर उठाने वाले शुभ विचारऔर सदा शुभ कर्म करती रहूँ गी|

Thursday 26 December 2013

क्या भेद है सत्य और स्वप्न में

आने  वाला  कल  सपना सा लगता है
कल जो बीत गया  सपना सा लगता है 
फिर  क्या  भेद है सत्य और स्वप्न में 
बस आज ही है जो सिर्फ सत्य लगता है 

रेखा जोशी 

सिर्फ इंतज़ार में मौत की

व्यथित मन
देख बुढ़ापा
चेहरे  की झुरियों
में छिपा संघर्ष
जीवन का
सफर कितना था सुहाना
बचपन जवानी का
कर देता असहाय
कितना
यह बुढ़ापा
तड़पता है मन
धुंधला जाती आँखे
पल पल
क्षीण होती काया
मौत से पहले
कई बार है मरता
मन
गुज़रते है दिन
सिर्फ
इंतज़ार में मौत की

रेखा जोशी

Wednesday 25 December 2013

गूँथ रहा गीतों की माला

यह गीतों की माला गुंथन को
मै सुन्दर से सुन्दर फूल चुनूं
इक इक की मै परखूँ खुश्बू को
औ हर इक फूल सजा कर देखूं
यह गीतों  की  माला  गूँथ रहा
मै    रंग  बिरंगे  फूल   सजाऊं
पर है न मिला वह मै खोज रहा
जिस को अब यह माला पहनाऊँ
उत्तर  जाऊं  दिखे   दक्षिण  में
और मै फिर  दक्षिण  को जाऊं
मै  पूरब घूमूं फिर पश्चिम में
वह  आगे  औ  मै पीछे   जाऊं
इक दिन वह थक कर  हारेगा
माला  यह  मेरी  स्वीकारे गा

महेन्द्र  जोशी


Tuesday 24 December 2013

यूँहि जिये जा रहे है हम अब मुस्कुराते हुए

मिले  गम  ही  गम  जाने  के  बाद  तुम्हारे 
लेकिन  प्यार  को  दिल में  बसा के  तुम्हारे 
छुपा लिया हर गम को मुस्कुराहट में अपनी 
यूँहि  जिये  जा रहे है हम अब मुस्कुराते हुए 

रेखा जोशी 

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

   
नाचता झूमता देखो नववर्ष  आ रहा 
खुशियाँ मनाते देखो नया साल आ रहा 
जाम से जाम टकरा रहे यहाँ स्वागत में 
जाता हुआ साल सबको कह अलविदा रहा 

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें 

रेखा जोशी 

बिखरी यादें न जाने है कहाँ कहाँ

यह खामोशियाँ औ यह तन्हाइयाँ 
ढूँढ रही है यह तुम्हे यहाँ और वहाँ 
बस एहसास है अब तेरे होने का 
बिखरी यादें न जाने है कहाँ कहाँ 

रेखा जोशी 

Monday 23 December 2013

जिंदगी में सदा गाते हम तेरे तराने

जिंदगी   में   सदा  गाते   हम   तेरे  तराने 
प्यार   है  तुमसे  और  तुम्ही  हो  अनजाने 
कोई नही जाने अब  यह हाल ए  दिल हमारा 
मुहब्बत दिल में पर बन गये लाखों  फ़साने 

रेखा जोशी 

कर विकसित आत्मा अपनी

हूँ सोचती

रात दिन 

क्या है 

मकसद 

मानव के 

इस 

जीवन का 

खाना पीना 

और सोना 

याँ 

पोषण 

परिवार का 

नही

यह सब 

तो 

करते है 

पशु पक्षी भी
 
ध्येय 

मानव का 

है कुछ 

और 

कर विकसित 

आत्मा 

अपनी 

कर उत्थान 

अपना 

कर्म कर

कुछ ऐसे 

निरंतर 

बढ़ता चल 

पूर्णता की 

और .... 


रेखा जोशी 




Sunday 22 December 2013

बहुत कम है क्षण ख़ुशी के

जो मिले वह आनंद ले ले ,
गम  बहुत इस जिंदगी में
मत व्यर्थ कर इन क्षणों को ,
बहुत कम है क्षण ख़ुशी के ।

रेखा जोशी 

था सब से बढ़िया वह उपहार [बाल कविता ]

लाल लिबास  टोपी पहन कर
प्यारे बच्चों  को  देने  उपहार
बड़े दिन की  थी  वह सर्द रात
निकल पड़ा  वह घर से बाहर
सुंदर तोहफों को झोली में भर
था सब का प्यारा सांताक्लाज
चुपके से रखता जाता हर घर
सुंदर  सुंदर  से बढ़िया उपहार
थी ठंडी  सर्द  वह बर्फीली  रात
फुटपाथ पर सोया इक बालक
हैरान था सांताक्लाज उसे देख
वह  रहा सिकुड़ थी शीत लहर
झोली से निकाला इक कम्बल
चुपके से ओढ़ा  उस  बच्चे पर
पाया  उसने   सुखद  अहसास
था  सब से बढ़िया  वह उपहार
था  सब से बढ़िया  वह उपहार

रेखा जोशी

हैप्पी बर्थडे यीशु [बाल कविता ]

हैप्पी बर्थडे  यीशु   [बाल कविता ]

सांताक्लाज  आया  सांताक्लाज  आया 
रंग   बिरंगे  सुन्दर सुन्दर तोहफे लाया 
सजे है क्रिसमस के पेड़  रंगीं सितारों से 
मंजीत  मोनू डेविड  आमिर  ने मिल के 
सुन्दर  सा इक बढ़िया  केक  भी बनाया 
सजा  कर  उसे  रंगीन मोम बत्तियों से 
हैप्पी बर्थडे  बोल यीशु को जन्मदिन पर 
हर्षोउलास  के साथ बड़े दिन को मनाया 

रेखा जोशी 

हाइकु

सत्कार करें
ज़िंदगी में खुशियाँ
प्यार  से रहें
……………
हर्षित मन
है देख  फुलवारी
सुन्दर फूल
……………
उदास मन
मिलती नही ख़ुशी
तलाश रहा

रेखा जोशी

Saturday 21 December 2013

बज उठी शहनाईयाँ

तुम्हारे  आते  ही  आज  ख़त्म  हुई  तन्हाईयाँ 
गाने   लगी  गीत  अब  देखो  मेरी  खामोशियाँ 
निकल कर यादों से आये जो तुम निकट हमारे 
बस  तेरे  पास  होने  से  बज   उठी  शहनाईयाँ 

रेखा जोशी 

लब पर है मुस्कान

किस्मत 
ने दिये 
गम ही 
गम 
अब तो 
आदत 
हो गई है 
खाने की
 गम 
दिल टूट 
चुका है 
मगर 
लब पर 
है मुस्कान 

रेखा जोशी 

Friday 20 December 2013

कर विश्वास उस ईश्वर पर

उसकी असीम कृपा पर यकीन तो कर 
कर के विश्वास  तो देख उस ईश्वर पर 
रहे  तुम्हारे  सिर  पर गर  हाथ  उसका 
घर  बैठे  ही  मुरादों  से  झोली  दे  भर 

रेखा जोशी 

शांत है विस्तृत सागर




गिरती उठती लहरें
सागर की
शोर मचाती
आती पग चूमती
साहिल का
फिर लौट जाती
चमक रही सीने पर
अरुण की सुनहरी रश्मियाँ
असीमित नीर
समेटे अपने में
अथाह शक्ति फिर भी
है शांत विस्तृत सागर
तूफ़ान छुपाये
अपने सीने में

 रेखा जोशी



Wednesday 18 December 2013

रुकता नही कभी वक्त

रुकता नही कभी वक्त उसे तो बदलना है 
लेकिन रात के बाद सुबह को भी  आना है
ख़्वाबो को अपने तुम संजोये रखना सदा 
सपनो को आज नही तो कल पूरा होना  है 

रेखा जोशी 

Tuesday 17 December 2013

भटक रही भूख

खाली पेट न आये नींद तुम क्या जानो 
भूखे हों जब बच्चे तड़प तुम क्या जानो 
तरसती अखियाँ देख भोजन की थाली को 
भटक रही भूख गरीब की तुम क्या जानो

रेखा जोशी

अँधेरा शाम का बढ़ा जा रहा

ढल गई
शाम
अँधेरे के
मुख में
जा रहा
सूरज
छूट रहे
सब साथी
सूनी डगर
तोड़
रिश्ते नाते
छोड़
मोह माया
इक पंछी
अकेला
चला
जा रहा
अँधेरा
शाम का
बढ़ा
जा रहा

रेखा जोशी



Sunday 15 December 2013

नही बदली मानसिकता

16 दिसंबर ,एक वर्ष बीत गया पर नही बदली  अभी भी 

बेटी
भारत की
कर गई
ज़ख्मी
पूरे देश को
थी वह
निर्भया
रही
संघर्षरत
हार गई
जंग जीवन की
कानून बदले
हालात बदले
लेकिन
नही बदली
मानसिकता
नही
बचा पाती
अस्मिता
अभी भी
झेल रही
कहीं
तेज़ाबी हमले
हो रही
शिकार कहीं
खूंखार
दरिंदो का
झेल रही
पीड़ा
जी रही
अभी भी
अपमानित
घुटन भरी
ज़िंदगी

रेखा जोशी









Saturday 14 December 2013

बस यही इक पल

आगोश
अपने में
ले रही
मौत
हर पल
अब
जो है
पल
मिट रहा
जा चुका
वह
काल में
आ रहा
फिर
नव पल
तैयार है
मिटने को
वह पल
पल पल
मिट रही
यह ज़िंदगी
है जो
अपना
बस यही
इक पल
कर ले
पूरी
सभी चाहते
बस
इसी में
इक पल
संवार
सकता है
जीवन
बस
यही
इक पल

रेखा जोशी

साथ मिल जाये अगर दोस्तों का


यूँ तो इस दुनिया में हज़ारो गम है 
गर देखा जाये तो वह बहुत कम है 
साथ मिल जाये अगर दोस्तों का तो 
बाँटते जो सब हमारे अनेक गम है

रेखा जोशी

Thursday 5 December 2013

क्यों हमारा इम्तिहान ले रहे हो तुम

काश  मेरे  जीवन में न  आये  होते तुम 
जाने किस कसूर की सजा पा रहे है  हम 
हमने  तुम्हे  सदा  जी जान से  है  चाहा 
आखिर क्यों हमारा इम्तिहान ले रहे तुम 

रेखा जोशी 

Wednesday 4 December 2013

पल दो पल का साथ

चाहते हो कहना दिल की बात किसी को अगर 
निसंकोच कह दो उसे अभी मत करो तुम देर 
न जाने कब खत्म हो जाए पल दो पल का साथ 
हाथ मलते रह जाओगे ज़िंदगी फिसल गई अगर 

रेखा जोशी 

मै वृक्ष हूँ बरगद का

सदियों से
खड़ा हूँ मै
दूर दूर तक
फैल चुकी
शाखाएँ मेरी
देता आश्रय
थके हारे
पथिकों को
सुबह शाम
चहचहाते
अनेक परिंदे
बनाते नीड़
मेरी घनी
टहनियों पर
सदियों से
देख रहा  हूँ
आती जाती
अनेक
ज़िंदगियाँ
मै वृक्ष हूँ
बरगद का

रेखा जोशी

Tuesday 3 December 2013

अमानत है यह जीवन मेरा

माना  की तुम से ही है  यह ज़िंदगी
माना की तुम से ही  है यह  बंदगी 
पर अमानत है यह जो जीवन मेरा 
जब देश की खातिर मिटे यह ज़िंदगी 

रेखा जोशी 

Monday 2 December 2013

बिलख रहा था

अपनी माँ के आँचल में वह सिमटा हुआ
दुबला  सा  बच्चा  सीने  से  चिपटा  हुआ
बिलख  रहा  था  रो रो कर  भूख  के  मारे
मैले   कुचैले  चीथड़ों   में   लिपटा   हुआ

  रेखा जोशी

Sunday 1 December 2013

आखिर क्यों आता है गुस्सा


अमित अपने पर झल्ला उठा ,''मालूम नहीं मै अपना सामान खुद ही रख कर क्यों भूल जाता हूँ ,पता नही इस घर के लोग भी कैसे  कैसे है ,मेरा सारा सामान उठा कर इधर उधर पटक देते है ,बौखला कर उसने अपनी धर्मपत्नी को आवाज़ दी ,''मीता सुनती हो ,मैने  अपनी एक ज़रूरी फाईल  यहाँ मेज़ पर रखी थी ,एक घंटे से ढूँढ रहा हूँ ,कहाँ उठा कर रख दी तुमने ?गुस्से में दांत भींच कर अमित चिल्ला कर बोला ,''प्लीज़ मेरी  चीज़ों को मत छेड़ा करो ,कितनी बार कहा  है तुम्हे ,''अमित के  ऊँचे  स्वर सुनते ही मीता के दिल की धड़कने तेज़ हो गई ,कहीं इसी बात को ले कर गर्मागर्मी न हो जाये इसलिए  वह भागी भागी आई और मेज़ पर रखे सामान को उलट पुलट कर अमित की फाईल खोजने लगी ,जैसे ही उसने मेज़ पर रखा अमित का ब्रीफकेस उठाया उसके नीचे रखी हुई फाईल  झाँकने लगी ,मीता ने मेज़ से फाईल  उठाते हुए अमित की तरफ देखा ,चुपचाप मीता  के हाथ से  फाईल ली और दूसरे कमरे में चला गया ।
अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब हमारी इच्छानुसार कोई कार्य नही हो पाता तब क्रोध एवं आक्रोश का पैदा होंना सम्भाविक है ,याँ छोटी छोटी बातों याँ विचारों में मतभेद होने से भी क्रोध आ ही जाता है |यह केवल अमित के साथ ही नही हम सभी के साथ आये दिन होता रहता है | ऐसा भी देखा गया है जो व्यक्ति हमारे बहुत करीब होते है अक्सर वही लोग अत्यधिक हमारे क्रोध का निशाना बनते है और क्रोध के चलते सबसे अधिक दुःख भी हम उन्ही को पहुँचाते है ,अगर हम अपने क्रोध पर काबू नही कर पाते तब रिश्तों में कड़वाहट तो आयेगी ही लेकिन यह हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी क्षतिगरस्त करता है ,अगर विज्ञान की भाषा में कहें तो  इलेक्ट्रोइंसेफलीजिया [ई ई जी] द्वारा दिमाग की इलेक्ट्रल एक्टिविटी यानिकि मस्तिष्क में उठ रही तरंगों को मापा जा सकता है ,क्रोध की स्थिति में यह तरंगे अधिक मात्रा में बढ़ जाती है | जब कोई व्यक्ति पूरी तरह से अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है तब मस्तिष्क तरंगे बहुत ही अधिक मात्रा में बढ़ जाती है और चिकित्सक उसे पागल करार कर देते है | क्रोध भी क्षणिक पागलपन की स्थिति जैसा है जिसमे व्यक्ति अपने होश खो बैठता है और अपने ही हाथों से जुर्म तक कर बैठता है और वह व्यक्ति अपनी बाक़ी सारी उम्र पछतावे की अग्नि में जलता रहता है  ,तभी तो कहते है कि क्रोध मूर्खता से शुरू हो कर पश्चाताप पर खत्म होता है |
मीता की समझ में आ गया कि क्रोध करने से कुछ भी हासिल नही होता उलटा नुक्सान ही  होता है , उसने कुर्सी पर बैठ कर लम्बी लम्बी साँसे ली और एक गिलास पानी पिया और फिर आँखे बंद कर अपने मस्तिष्क में उठ रहे तनाव को दूर करने की कोशिश करने लगी ,कुछ देर बाद वह उठी और एक गिलास पानी का भरकर मुस्कुराते हुए अमित के हाथ में थमा दिया ,दोनों की आँखों से आँखे  मिली और होंठ मुस्कुरा उठे

 रेखा जोशी

Saturday 30 November 2013

उत्सव

हौले से  झोंकों  ने पवन  के फूलों को सहलाया 
गुनगुना रहे भौरों ने भी मधुर गीत गुनगुनाया 
बाल उपवन में खिल रहे है भांति भांति के फूल 
फूलों पर नाच रही तितली ने भी उत्सव मनाया 

रेखा जोशी 

फूल मेरे आंगन के

खेल रहे है मिलजुल कर इस बगिया में 
नन्हे मुन्ने फूल मेरे आंगन के 
मस्त मस्त झूल रहें डाली डाली पे 
हर्षित हो रहा है मन देख कर उन्हें
भाग रहे उड़ती तितलियों को पकड़ने
फूलों के संग संग कभी मुस्कुराते
मेरे घर आंगन में खेलते बच्चे
चम्पा चमेली गुलाब सा महका रहे

रेखा जोशी

Friday 29 November 2013

सपने बीनता

सुबह सुबह
ठिठुरती
सर्दी
कूड़े का
 ढेर
बीनता
सपने
टुकड़ों में
फलों के
रोटी के
नही सोऊँगा 
खाली पेट
सिर पर
होगी छत
कह रहा वो
मांगता वोट
दे दूँगा
जीते हारे
बला से
सपना
सच हो
मेरा

रेखा जोशी



Thursday 28 November 2013

जननी जन्म भूमि


आँचल में बीता बचपन जननी जन्म भूमि 
लुटा दूँगा जान तुझ पर जननी जन्म भूमि 
तिलक इस पावन माटी का  माथे सजा  लूँ 
माटी बहुत अनमोल है  जननी जन्मभूमि 

रेखा जोशी 

Wednesday 27 November 2013

तुम्हारी मुस्कुराहट


खिली खिली धूप है तुम्हारी मुस्कुराहट 
खुदा  का  नूर  है  तुम्हारी   मुस्कुराहट 
भूल जाते है देख  तुम्हे दुनिया को हम 
जादू  कर  देती  है तुम्हारी  मुस्कुराहट 

 रेखा जोशी   

Tuesday 26 November 2013

फिर होगी सुबह

समुद्र तट पर 
चल रहे किनारे किनारे 
मचा रही शोर 
आती जाती लहरे 

सूरज चूम रहा
सागर का आंचल 
रंग सिंदूरी चमक रहा 
आसमां भरा गुलाल 

जीवन चलता रहा 
ढलती है शाम 
फिर होगी सुबह 
होगा नव नाम 

रेखा जोशी 

ढूँढ रहीं इक मंदिर

ढूँढ रहीं
इक मंदिर
होती है
पूजा जहाँ
तुम्हारी
वह स्थान
जो जोड़े
इक दूजे को
धर्म हो
जहाँ
मानवता
जहाँ
मानव का
मानव से
हो प्यार
न हो
टकराव
उत्थान
हो जहाँ
मानवता का
 ढूँढ रहीं
वह  मंदिर

रेखा जोशी







Sunday 24 November 2013

लम्बी होती परछाईयाँ

लम्बी होती 
परछाईयाँ 
एह्साह 
दिला रही है 
शाम के 
ढलने का 
उदास हूँ 
पर शांत 
ज़िंदगी की 
ढलती शाम 
आ रही है 
करीब 
धीरे धीरे 
लेकिन 
पा रहीं हूँ 
सुकून 
मिला जो 
मुझे है 
तुम्हारा साथ 

रेखा जोशी 

ममता की मूरत नारी


नारी जीवन
ममता की मूरत
लुटाती  प्रेम
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बन कर माँ
पालन करती है
इस जग का
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
भार्या बनती
कदम कदम है
साथ निभाती
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
औरत एक
है ममता लुटाती
रूप अनेक
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सूना आँगन
जो नही महकता
बिन बिटिया

 रेखा जोशी


Saturday 23 November 2013

समय की धारा

मत तोड़ना दिल उनका जो रहते करीब हमारे है 
तोड़  देना  दिलों  के  बीच  जब  आयें  दीवारे है 
पल पल करवट ले रही है यह देखो समय की धारा 
समेट लो खुशिया जो बिखरी आस पास तुम्हारे है 



रेखा जोशी 

महंगाई [हास्य व्यंग ]


जब सुबह सुबह 
गर्मागर्म 
प्रेमपूर्वक
चाय का प्याला 
हमारी
प्यारी श्रीमती जी ने 
हमारे
हाथ में जब थमाया 
हमने भी उनका
हाथ पकड़ प्रेम से
पास बिठाया 
झटक कर हाथ
श्रीमती जी ने उसमे
बड़ा सा झोला पकड़ाया 
कड़कती
आवाज़ में उन्होंने 
सब्ज़ी लाने का
आदेश फरमाया 
सस्ती  घास फूस ले आना 
टमाटर आलू को न हाथ लगाना 
प्याज का तो
सोचना भी मत
इसने
हमे खूब  रुलाया 
महंगाई का
क्या करें जनाब 
इससे
हमारा बजट
गड़बड़ाया 
इससे हमारा
बजट गड़बड़ाया 

रेखा जोशी 

Thursday 21 November 2013

तुम्हारा ख्याल


खूबसूरत थी जिन्दगी जब  हाथो में हाथ था  तुम्हारा
खूबसूरत थी जिंदगी  जब प्यार भरा साथ था तुम्हारा
 दे कर दर्द कहाँ चले गए हमे अपनी यादों में छोड़ के
पाते है हम चैन औ सुकून ख्याल आता है जब तुम्हारा

रेखा जोशी

चार दिन की चांदनी



किस बात का गरूर बंदे तू करता है 
चार दिन की चांदनी पर इठलाता है 
रह जाये गा सब कुछ यहीं पर इक दिन 
जब यहाँ से प्राण पखेरू हो जाता है 

रेखा जोशी 

सूरज की चमक

सज रही है महफ़िल चाँद तारों की चमक से 
इतरा रहे है सभी  अपनी अपनी चमक से 
लेकिन रौशन नहीं हुआ यह जहां अभी तक 
छुप जाएँगे सब गगन में सूरज की चमक से 

रेखा जोशी 

Wednesday 20 November 2013

सिर्फ तुम ही तुम

आये हो जब से तुम घर में हमारे 
बढ़ गई  धड़कने  नाम से तुम्हारे 
दिल में रहते हो अब सिर्फ तुम ही तुम 
आँखों में बसे सपने है तुम्हारे 

रेखा जोशी 

Tuesday 19 November 2013

तन्हा सिर्फ तन्हा

संघर्ष है
यह ज़िंदगी
कब गुज़रा
बचपन
याद नही
आया
होश
जब से
तभी से
भाग
रहा हूँ
संजों
रहा हूँ
खुशियाँ
सब के
लिए
थे अपने
कुछ
थे पराये
आज
निस्तेज
बिस्तर पर
पड़ा देख
रहा हूँ
समझ
रहा हूँ
अपनों को
और
परायों को
था कल भी
और
हूँ आज भी
संघर्षरत
तन्हा
सिर्फ
तन्हा

रेखा जोशी





Tuesday 12 November 2013

आत्म हत्या-आखिर क्यों करते है लोग ?

आत्म हत्या-आखिर क्यों करते है लोग ?

सुबह सुबह अखबार खोला तो निगाह पड़ी एक छोटी सी खबर  ,''आत्महत्या के आंकड़ों पर ,जिसमे एक वर्ष में भारत में अस्सी हज़ार पुरुष और चालीस हज़ार महिलायों द्वारा आत्महत्या का उल्लेख था '',पढ़ते ही मन खिन्न और उदास सा हो गया। आखिर क्यों करते है लोग आत्म हत्या ,कोई कैसे अपनी ज़िंदगी को  समाप्त कर देता है ?

हम सब जानते है कि अपने प्राण सबको प्यारे होते है ,हर कोई एक खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहता है ,आखिर फिर  कौन सी मजबूरी में इंसान ऐसा घिर जाता है या कौन सा ऐसा दुखों का पहाड़ उस पर टूट जाता है कि उसके सामने ज़िंदगी के कोई मायने नही रह जाते और वह  बेबस  हो  कर मौत को गले लगा लेता है ,यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते है ,अपने ही हाथों अपनी ज़िंदगी को मिटा देना ,आखिर क्या चल रहा होता  है उस व्यक्ति के अंतर्मन में उस समय जो उसे खुद को ही मिटा देने पर मज़बूर कर देता है l

जिंदगी माना की चुनौतियों से भरी हुई है और कई बार  हम  चुनौतियों से निपटने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं, जीवन की कठिनाइयों को झेल नहीं पाते और खुद को मौत के हवाले कर देते हैं, लेकिन अगर उन कमज़ोर लम्हों में अपनी सोच को सकारात्मक दिशा दें और चुनौतियों से जूझने का रास्ता ढूंढने की कोशिश करें तो उन हताश पलों से निकला जा सकता है l

रेखा जोशी 


Monday 11 November 2013

बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा


महाकाल ने  जब जब भी है रौद्र रूप धरा,
था भस्म हुआ सब कुछ जब खुला नेत्र तीसरा।
पिघल जाते पत्थर भी धधक रही ज्वाला में 
बिगड़े गा क्रोधाग्नि से सुन्दर रूप तेरा 

रेखा जोशी

,लालच की अन्धी दौड़

लालच की अन्धी दौड़  ,एक कमरे वाले को दो चाहिए ,कोठियों ,फ़ार्म हाउसिज़ के मालिकों की निगाहें मुकेश अंबानी पर है | उसका दोस्त हवाई जहाज में सफर कर सकता है तो वो क्यों नही है,  ,दीन ईमान को ताक पे रख कर ,चाहिए पैसा, काला हो यां सफ़ेद  उफ़  लालच ,भ्रष्टाचार की जड़ ,फैलती जा रही है खरपतवार जैसे ,सींच  दिया इसने देश में कई  घोटालों को :,देश खोखला हो तो हो ,लालच के अंधों को कोई सरोकार नही|

रेखा जोशी 

बहता चल धारा संग

बहता पानी नदिया का 
चलना नाम जीवन का 
बहता चल धारा संग  
तुम में रवानी
है हवा सी 
खिल उठें  वन उपवन 
महकने लगी बगिया 
रुकना नही चलता चल 

रेखा जोशी 

Sunday 10 November 2013

और आईना टूट गया [ बाल कथा ]


प्यारे बच्चो मै आप सब से एक सवाल पूछती हूँ ,क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है कि गलती तुम्हारे किसी छोटे भाई बहन से हुई हो और उसकी सजा तुम्हे मिली हो ? ,अगर किसी को ऐसी सजा मिली हो तो उसे कितना गुस्सा आया होगा ,मै  इसे खूब समझ सकती हूँ ,जब मै छोटी थी बात तब की है ।

दिवाली से पूर्व जब घर में सफेदी और रंगाई पुताई का काम चल रहा था ,मेरे मम्मी पापा कुछ जरूरी काम से घर से बाहर गए हुए थे ,पूरे घर का  सामान बाहर आँगन  में बिखरा हुआ था ,घर  के सभी कमरे लगभग खाली से थे और मेरे छोटे भाई बहन मस्ती में एक कमरे से दूसरे कमरे  में  छुपन छुपाई खेलते हुए इधर उधर शोर शराबा करते हुए भाग रहे थे,लेकिन मै सबसे बड़ी होने के नाते अपने आप को उनसे अलग कर लेती थी ,उन दिनों मुझे फ़िल्मी गीत सुनने का बहुत शौंक हुआ करता था ,बस जब भी समय मिलता मै  रेडियो से चिपक कर गाने सुनने और गुनगुनाने लग जाती थी ,उस दिन भी मै रेडियो पर कान लगाये गुनगुना रही थी ,उस कमरे में सामान के नाम पर बस एक ड्रेसिंग टेबल और एक मेज़ पर रेडियो था  जहां खड़े हो कर मै अपने भाई बहनों की भागम भाग से बेखबर मे संगीत की दुनिया में खोई हुई थी ,तभी बहुत जोर से धड़ाम की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया ,आँखे उठा कर देखा तो ड्रेसिंग टेबल फर्श पर गिर हुआ था और उस  खूबसूरत आईने के अनगिनत छोटे छोटे टुकड़े पूरे फर्श पर बिखर हुए थे,वहां उसके पास खड़ी मेरी छोटी बहन रेनू जोर जोर से रो रही थी ,ऐसा दृश्य देख मेरा दिल भी जोर जोर से धडकने लगा था ,मै भी बुरी तरह से घबरा गई  थी ,एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा कहीं रेनू को कोई चोट तो नही आई ,लेकिन नही वह भी बुरी तरह घबरा गई थी ,क्योकि वह खेलते खेलते ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुप गई थी और जैसे ही वह बाहर आई उसके  कारण  ड्रेसिंग टेबल का संतुलन बिगड़ गया और आईना फर्श पर गिर कर चकना चूर हो गया था ।

हम दोनों बहने डर  के मारे वहां से भाग कर अपने नाना के घर जा कर दुबक कर बैठ गई ,जो कि हमारे घर के पास ही था ,कुछ ही समय बाद ही वहां पर हमारी मम्मी के फोन आने शुरू हो गए और फौरन हमे घर वापिस आने के लिए कहा गया ,मैने रेनू को वापिस  घर चलने  के लिए कहा परन्तु वह डरी  हुई वहीं दुबकी बैठी रही ,बड़ी होने के नाते मुझे लगा कि हम कब तक छुप कर बैठे रहें गे ,हौंसला कर मै  घर की और चल दी और मेरे पीछे पीछे रेनू भी घर आ गई । जैसे ही मैने घर के अंदर कदम रखा एक ज़ोरदार चांटा मेरे गाल पर पड़ा ,सामने मेरी मम्मी खड़ी थी । मै हैरानी से उनका  मुहं देखती रह गई  ,''यह क्या गलती रेनू ने की और पिटाई मेरी '' बहुत गुस्सा आया मुझे अपनी माँ पर । अब बताओ बच्चो मेरी माँ ने गलत किया न ,मुझे मालूम है तुम सब मेरे साथ हो ,मेरी मम्मी ने आखिर मुझे क्योकर मारा जबकि गलती मेरी छोटी बहन से हुई थी ,बहुत रोई थी उस दिन मै ।

आज जब भी मै पीछे मुड़ कर उस घटना को याद करती हूँ तो फर्श पर बिखरे वो आईने के टुकड़े मेरी आँखों के सामने तैरने लगते है और अब मै समझ सकती हूँ कि वह चांटा मेरी मम्मी ने मुझे मार कर मुझे मेरी ज़िम्मेदारी का मतलब समझाया था ,अपने मम्मी पापा  की अनुपस्थिति में बड़ी होने के नाते मुझे अपने घर का ध्यान रखना चाहिए था ,मुझे अपनी बहन रेनू को ड्रेसिंग टेबल के नीचे छुपने से रोकना चाहिए था । वह चांटा मुझे मेरी लापरवाही के कारण पड़ा था

 रेखा जोशी 

सशक्त पुल

नदी के दो किनारे
मिल न पायें कभी 
साथ साथ चलते हुए 
बिलकुल हमारी तरह 
अलग अलग 
समय की
बहती धारा के संग 
न जाने 
कैसे बाँध दिया हमे
इक सुंदर नन्ही परी
जिसने जोड़ दिया 
नदी के दो पाटों 
को
एक सशक्त पुल से 

रेखा जोशी 

Saturday 9 November 2013

पगला दिल

भावनाओं की 
उमड़ती
बाढ़ में 
डूब जाता 
है यह 
पगला दिल 
और बहने 
लगती है 
आँखों से 
अविरल 
आँसूओं की 
बरसात 
हूक सी 
उठती है 
रह रह कर 
और दर्द से
भीग जाता है 
यह मन 

रेखा जोशी 

Friday 8 November 2013

श्रृंगार रस [दो मुक्तक ]

श्रृंगार रस [दो मुक्तक ]

सुहानी चांदनी से भीगता यह बदन
हसीन ख्वाबों के पंखों तले मेरा मन
उड़ने लगी चाहतें ले के संग कई रंग
नाचे मन मयूरा  बांवरा ये तन मन
..................................................
जन्म जन्म के साथी हो तुम मेरे 
उड़  रही  हूँ  संग  हवाओं  के  तेरे 
ले  लो अब आगोश में  मुझे अपने 
ओ मेरे हमसफ़र ओ हमदम  मेरे 

रेखा जोशी 

Thursday 7 November 2013

जब पंख कट जाते है

होती है
पीड़ा
कितनी
जब
शूल से
चुभते है
पल कुछ
आते है
जीवन में
क्षण
ऐसे भी
जब छा
जाता है
तिमिर
चहुँ ओर
सूझती नही
कोई भी
राह
जब बन
जाते है
फूल भी
कांटे
चाह हो
उड़ने की
जब
पंख कट
जाते है

रेखा जोशी 

चमकेगा सूरज फिर


चाहते हो रोशनी जीवन में तुम 
मत घबराना फिर अन्धकार से तुम 
सुबह आंगन चमकेगा सूरज फिर 
उजाले को लेना आगोश में तुम 

रेखा जोशी 

तुम ही तुम

कहा 
नदी ने 
सागर से 
मिटा कर 
अस्तित्व 
अपना 
मै अब 
समा 
गई हूँ 
तुम में 
पूर्ण 
हो गई मै 
रहे बस 
तुम 
ही 
तुम 

रेखा जोशी 

Tuesday 5 November 2013

कर पहचान असत्य और सत्य की

देखा 
झांक कर 
मन के 
आईने में 
नही 
पहचान 
पाया 
खुद को 
धूल में 
लिपटे 
अनेक 
मुखौटे 
नहीं था 
वो मै 
मूर्ख मनवा 
पहचान ले 
खुद को 
साफ़ कर ले 
धूल को 
और 
फेंक दे 
सब मुखौटे 
कर पहचान 
असत्य 
और 
सत्य की 

रेखा जोशी 

''भाई दूज'' पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें

भाई बहन के इस पावन त्यौहार ''भाई दूज'' पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें 

माहिया 

सूरज जैसा चमके 
है सुंदर मुखड़ा 
टीका माथे दमके 
……………
मेरे भैया आये 
सूरत चन्दा सी 
बहना वारी जाये

रेखा जोशी

Monday 4 November 2013

जब अच्छाई रोती है

है दुःख
ही
दुःख
जीवन में
जलता है
हृदय
अपमानित
होता है
जब यहाँ
सत्य
सम्मानित
होता है
असत्य
कहलाता
मूर्ख
जब साधू
कठिन
होता है
जीना
शूल सा
कुछ
चुभता है
दिल में
जब बुराई
मनाती है
खुशियाँ
और
अच्छाई
रोती है

रेखा जोशी


Sunday 3 November 2013

तेरा ख्याल


जीवन का  संगीत  है तेरा यह ख्याल 
उस प्रभु का आशीष है तेरा यह ख्याल 
बसा है तेरा ख्याल  इस मन मंदिर में 
गुनगुना रहा  सदा   है तेरा यह ख्याल 

रेखा जोशी 

Saturday 2 November 2013

दीप ज्ञान का इक तुम जलाओ

हाँ
दीप
हूँ मै
प्रज्वलित
हो कर
भरता
हूँ मै
उजाला
जहाँ
रहता हो
घना अँधेरा
रोशन कर
वहाँ
लाता हूँ
खुशियाँ
दीप
ज्ञान का
इक तुम
जलाओ
दीप्त कर
हर अज्ञानता
रोशन कर
लौ प्रेम की
ज्योति
जग में
फैलाओ

 रेखा जोशी


Friday 1 November 2013

आँसूओं का सौदा

तुम
मेरे हो
यह
सोच कर
तुम्हे
चाहा
तुम्हे
अपनाया
तुम से
प्यार किया
बंदगी की
तुम्हारी
पर तुमने
न समझी
पीड़ा
इस दिल की
जाना
यही
है प्यार
इक फरेब
और
मुहब्ब्त
इक धोखा
है इसमें
बस
आँसूओं का
सौदा

रेखा जोशी




Thursday 31 October 2013

दीपावली पर हाइकु


पिया की आस 
जल रहे है दीये 
आ जाओ पास 
……………… 
दीपक जले 
करें लक्ष्मी पूजन 
प्यार से मिलें 

रेखा जोशी 

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें 


रहे माँ लक्ष्मी का वास सदा आपके घर में

वास्तु टिप्स

१इस बात का सदा ध्यान रखें कि आपके घर के किसी भी नल से पानी बहना याँ  टपकना नही चाहिए वह इसलिए कि पानी का बहने  याँ टपकने से आपकी जेब हल्की हो  सकती है ,अपने घर के सभी नल ठीक करवा ले |
२ अगर आपका व्यवसाय होटल याँ भोजन ,भोजन सामग्री के साथ जुड़ा हुआ है तो वहां का प्रवेश दुवार का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए |
३ अगर आपका व्यवसाय मनोरंजन याँ खेलकूद से जुड़ा हुआ है तो वहां के मुख्य प्रवेश दुवार का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए
४ अन्य व्यवसायों के लिए प्रवेश दुवार का मुख उत्तर दिशा में शुभ माना जाता है |
५ अपने घर का कीमती समान ओर तिन्जोरी ऐसी अलमारी में रखे जो सदा पश्चिम याँ दक्षिण की दीवार की तरफ लगी होनी चाहिए ताकि उसके दरवाज़े खुले वह पूर्व याँ उत्तर दिशा की तरफ खुले

रेखा  जोशी 

वैभव और समृद्धि



वह अपने हाथों की लकीरो को बदल देते है 
जो मेहनत को ही अपना नसीब बना लेते है 
छोड़ जाते है वह वक्त की धारा को भी पीछे 
वैभव और समृद्धि उनके अंक में खेलते है 

रेखा जोशी

Wednesday 30 October 2013

अनछुई ऊँचाईयाँ

ओ पंछी छोड़ पिंजरा 
भर ले उड़ान 
नील गगन में 
सांस ले तू
उन्मुक्त खुली हवा में 
तोड़ बंधन 
फैला कर पँख 
ज़मीं से अम्बर 
पार कर मुश्किलें 
छू लेना तुम 
अनछुई ऊँचाईयाँ 

रेखा जोशी 

Tuesday 29 October 2013

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें 

रौशन हुआ शहर दीप सब जगह जलते है 
फुलझड़ी कहीं तो पटाखे कहीं चलते है
शुभकामनाएँ दीपावली की मित्रजनो को 
खुशियों के मेले आज हर जगह लगते है 

रेखा जोशी

Monday 28 October 2013

जाने कहाँ चली गई ज़िंदगी

मेरे घर के पिछवाड़े 
आँगन में सुबह शाम 
पंछियों का चहचहाना
शहतूत के घने पेड़ पर 
जो था  रैन बसेरा 
अनेक जीवों का 
दूर करता 
सूनापन 
बस्ती थी जहाँ अनेक 
ज़िंदगियाँ 
है आज वीरान
खामोश सुनसान  
लेकिन आता याद
वही कलरव 
चहचहाना उनका 
न जाने
कहाँ चली गई 
ज़िंदगी भी उनके साथ 

रेखा जोशी 

Sunday 27 October 2013

तेरी यादों में

महकने  लगता  है  मेरा अंगना तेरी  यादों में
रात में सकून पाते  है हम तन्हा  तेरी यादों में
ख्वाबों से निकल कभी तो आओ जीवन में मेरे
कब तक  तड़पाते  रहोगे सजना  मेरी नींदों में 

रेखा जोशी 

Saturday 26 October 2013

कण कण में ओम है

 कण कण में ओम है


ढूंढ़ रहे प्रभु तुम्हे इन हसीन वादियों में 
आती नजर छटा  तेरी पत्तों बूटियों में 
कण कण में ओम है देख लो मन की नजर से 
गूँजती सदा उसकी इन नीरव घाटियों में 

रेखा जोशी 

Friday 25 October 2013

तुम और मै

तुम और मै 
दोनों अलग अलग 
सम्पूर्ण नही 
अस्तित्व हमारा 
हर जन्म में 
खोजती तुम्हे 
पूर्ण होना 
चाहती  हूँ 
दैहिक नही 
आत्मिक भी 
टुकड़ों में नही 
पूर्ण होने की चाह 
युगों युगों से 
सर्वस्व हो कर 
जीना चाहती हूँ 
और मरना भी 

रेखा जोशी