सदियों से
खड़ा हूँ मै
दूर दूर तक
फैल चुकी
शाखाएँ मेरी
देता आश्रय
थके हारे
पथिकों को
सुबह शाम
चहचहाते
अनेक परिंदे
बनाते नीड़
मेरी घनी
टहनियों पर
सदियों से
देख रहा हूँ
आती जाती
अनेक
ज़िंदगियाँ
मै वृक्ष हूँ
बरगद का
रेखा जोशी
खड़ा हूँ मै
दूर दूर तक
फैल चुकी
शाखाएँ मेरी
देता आश्रय
थके हारे
पथिकों को
सुबह शाम
चहचहाते
अनेक परिंदे
बनाते नीड़
मेरी घनी
टहनियों पर
सदियों से
देख रहा हूँ
आती जाती
अनेक
ज़िंदगियाँ
मै वृक्ष हूँ
बरगद का
रेखा जोशी
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