Monday, 23 December 2013

कर विकसित आत्मा अपनी

हूँ सोचती

रात दिन 

क्या है 

मकसद 

मानव के 

इस 

जीवन का 

खाना पीना 

और सोना 

याँ 

पोषण 

परिवार का 

नही

यह सब 

तो 

करते है 

पशु पक्षी भी
 
ध्येय 

मानव का 

है कुछ 

और 

कर विकसित 

आत्मा 

अपनी 

कर उत्थान 

अपना 

कर्म कर

कुछ ऐसे 

निरंतर 

बढ़ता चल 

पूर्णता की 

और .... 


रेखा जोशी 




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