लम्बी होती
परछाईयाँ
एह्साह
दिला रही है
शाम के
ढलने का
उदास हूँ
पर शांत
ज़िंदगी की
ढलती शाम
आ रही है
करीब
धीरे धीरे
लेकिन
पा रहीं हूँ
सुकून
मिला जो
मुझे है
तुम्हारा साथ
रेखा जोशी
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