Thursday, 21 November 2013

चार दिन की चांदनी



किस बात का गरूर बंदे तू करता है 
चार दिन की चांदनी पर इठलाता है 
रह जाये गा सब कुछ यहीं पर इक दिन 
जब यहाँ से प्राण पखेरू हो जाता है 

रेखा जोशी 

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