श्रृंगार रस [दो मुक्तक ]
सुहानी चांदनी से भीगता यह बदन
सुहानी चांदनी से भीगता यह बदन
हसीन ख्वाबों के पंखों तले मेरा मन
उड़ने लगी चाहतें ले के संग कई रंग
नाचे मन मयूरा बांवरा ये तन मन
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जन्म जन्म के साथी हो तुम मेरे
उड़ रही हूँ संग हवाओं के तेरे
ले लो अब आगोश में मुझे अपने
ओ मेरे हमसफ़र ओ हमदम मेरे
रेखा जोशी
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