देखा
झांक कर
मन के
आईने में
नही
पहचान
पाया
खुद को
धूल में
लिपटे
अनेक
मुखौटे
नहीं था
वो मै
मूर्ख मनवा
पहचान ले
खुद को
साफ़ कर ले
धूल को
और
फेंक दे
सब मुखौटे
कर पहचान
असत्य
और
सत्य की
रेखा जोशी
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