माटी रोती
चाहती पकड़ना चाँद
आसमान को छू रहे
लम्बे लम्बे बाँस
खाने को घास
नाच रही बकरियाँ पगली
नोचते कौवे अखियाँ रोती
भीग रहे आँचल
सिसकती आहें
दिखा कर घास
पीटते बाँस
दिखाते सुहाने सपने
मुखौटे लगाये
बँसी बजाते
लम्बे लम्बे बाँस
जलता दीया रोती बाती
अँधेरी काली रात
जुगनूयों की आस
टिमटिमाती धरा
फड़फड़ाते श्वास
अधर पर हास
मुस्कुराते बाँस
साँझ सवेरे
दौड़ती आँखे ढूँढती राहें
काटते श्वान
रास्ता रोके
लम्बे लम्बे बांस
रेखा जोशी
चाहती पकड़ना चाँद
आसमान को छू रहे
लम्बे लम्बे बाँस
खाने को घास
नाच रही बकरियाँ पगली
नोचते कौवे अखियाँ रोती
भीग रहे आँचल
सिसकती आहें
दिखा कर घास
पीटते बाँस
दिखाते सुहाने सपने
मुखौटे लगाये
बँसी बजाते
लम्बे लम्बे बाँस
जलता दीया रोती बाती
अँधेरी काली रात
जुगनूयों की आस
टिमटिमाती धरा
फड़फड़ाते श्वास
अधर पर हास
मुस्कुराते बाँस
साँझ सवेरे
दौड़ती आँखे ढूँढती राहें
काटते श्वान
रास्ता रोके
लम्बे लम्बे बांस
रेखा जोशी
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