Tuesday, 10 September 2013

भाईचारा [लघु कथा ]

खिड़की खोलते ही भुवन बाबू ने सामने से लोगों की भीड़ को चिल्लाते हुए अपने घर की तरफ आते देखा ,उनके हाथों में ईंट ,पतथर ,टूटे हुए कांच के टुकड़े, लाठियाँ और न जाने कैसे कैसे हथियार थे ,भीड़ के रौद्र रूप को देखते ही वह कांपने लगे ,घबराहट से उनका बदन पसीने से तरबतर हो गया और जल्दी से उन्होंने खिड़की पट बंद कर दिए ,तभी उनका ड्राइवर युसूफ भाग कर हांफता हुआ उनके पास आया ,''साहब शहर में दंगे शुरू हो गए है ,साहब आपको हमारे भाईचारे का वास्ता ,आप देर मत कीजिए और यह लीजिये चाबी , आप पीछे के रास्ते से निकल कर जल्दी से मेरे घर में चले जाईये ,वहां आप को कोई हाथ नही लगा पाए गा और मै यहाँ सब सम्भाल लूँगा ,आप जल्दी करें ''।जब  भुवन बाबू को पीछे के रास्ते से अपने घर भेज कर उनकी जान बचाने के युसूफ कामयाब हो गया तब उसने  चैन  की सांस ली  और फिर वह भुवन बाबू के घर के बाहर अपने ही सुमदाय के लोगों के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया ।

 रेखा जोशी 

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