कुछ तो बात है बेकरार है हम
यह गम कौन सा बेशुमार है गम
है वो शाख हम न खिले फूल जहाँ
न कभी खत्म हो इंतज़ार है हम
वो पत्थरों में जो रही गूँजती
न सुनी गई वह पुकार है हम
कोई हमे अब याद करे तो क्यूँ
भूली बात है इक मजार है हम
प्रो महेन्द्र जोशी
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