होता दुःख कैद देख तुम्हे
दीवारों में
जो बना रखी खुद तुमने
अपने ही हाथों
खुद को किया कैद
क्यों पिंजरे में
मुहँ छिपाये पँख लपेटे
कब तक बुनोगे जाल
अपने इर्द गिर्द
तोड़ अब बंधन सब
भर लो उड़ान
फैला कर अपने पँख
उन्मुक्त ऊपर दूर गगन में
है विश्वास तुम्हे खुद पर
जानते हो तुम में है वो फन
मंज़िल तुम्हारी है उड़ान
दीवारों में
जो बना रखी खुद तुमने
अपने ही हाथों
खुद को किया कैद
क्यों पिंजरे में
मुहँ छिपाये पँख लपेटे
कब तक बुनोगे जाल
अपने इर्द गिर्द
तोड़ अब बंधन सब
भर लो उड़ान
फैला कर अपने पँख
उन्मुक्त ऊपर दूर गगन में
है विश्वास तुम्हे खुद पर
जानते हो तुम में है वो फन
मंज़िल तुम्हारी है उड़ान
कर अपना इरादा पक्का
फैला कर अपने पँख
निकल पड़ो फिर से
ज़िंदगी की इक
लम्बी उड़ान भरने
रेखा जोशी
फैला कर अपने पँख
निकल पड़ो फिर से
ज़िंदगी की इक
लम्बी उड़ान भरने
रेखा जोशी
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