निशब्द [मेरी एक पुरानी रचना ]
हो काश कोई
मै खामोश हूँ
भीतर हलचल
शांत सागर
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शांत सागर
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इक हूक जो
है सीने में उठती
है सीने में उठती
ज्वालामुखी सी
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प्यार किया था
हूँ पर तन्हा तन्हा
हूँ पर तन्हा तन्हा
दिल से चाहा
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हो काश कोई
समझ पाता मुझे
जी तो लेती मै
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लब जो खुले
दिल की कहने को
आवाज़ गुम
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शब्द नही है
धड़कन में तुम
हुई निशब्द
रेखा जोशी
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