चार कंधो पर सवार
फिर आया कोई
श्मशान
उठ रही लपटें बनती राख
चिता पर आज फिर सोया कोई
देखते श्मशान में हर रोज़
सुंदर रूप सत्य का
फिर भी
भेद इसका न जान पाया कोई
राजा रंक अंत सबका एक समान
तन माटी का माटी में मिल जाना
इक दिन
है सत्य श्मशान
माटी के पुलते सत्य को पहचान
हो जाता है जीवन अर्पण
इक दिन
श्मशान के नाम
रेखा जोशी
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