Saturday 16 March 2024

गीतिका

गीतिका "लावणी छंद "

बसंत आया मधुरस छाया ,धरा पर मुस्कुराते दिन
अम्बुआ डार कोयल कुहकी , बाग में गुनगुनाते दिन
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है महक रहे बाग बगीचे, बिखरी खुशबू यहाँ वहाँ 
इधर उधर नाचती तितलियाँ ,है उपवन महकाते दिन 
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शीतल मदमस्त पवन बहती, है सहरा जाती तन मन
उड़ रही चुनरिया गोरी की, अंग अंग सहलाते दिन
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रंग चुरा तितली फूलों का, कर रही सिंगार अपना,
पुष्प हवा संग लहरा रहे,फूलों को भी भाते दिन
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 गुलाबी मौसम ऋतुराज का, पीली चहुँ ओर बहारें
खेत खलिहान पीले पीले, रंग पीला लुभाते दिन 

रेखा जोशी



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