Wednesday, 28 February 2024

प्यार का सफर

अथवा- 2122 1212 22
आधार छन्द- पारिजात

समांत अर
पदाँत - साजन 

ज़िन्दगी प्यार का सफर साजन 

चल  पड़े  प्यार की डगर साजन

नाच सागर रही किरण झिलमिल

चमक सूरज  लिए  प्रखर साजन 

हाथ   में   हाथ  ले  चले   दोनों

प्यार  अपना  रहे अमर  साजन

हम  नहीं  प्यार  को  कभी  भूलें 

प्यार  तुमसे  बहुत  मगर  साजन

आज   पूरे   हुए   पिया   सपनें 

लग न  जाए कहीं  नज़र साजन 

रेखा जोशी 

Sunday, 25 February 2024

हूँ आस का दीपक

मैं जलता रहा हरेक के अंतस में
हूँ आस का दीपक

हारे जो जीवन से अपने
टूटे हो जो जिनके सपने 
मैं फैला कर रौशनी अपनी
जगा कर उम्मीद की इक किरण
बिखेर देता हूँ सुनहरी रश्मियाँ कभी कभी
जीवन में उनके
मैं जलता रहा हरेक के अंतस में
हूँ आस का दीपक

बुझे निराश मन को झकझोर कर
प्रयास करता हूँ मैं हर पल 
नवीन उत्साह भरने का 
जीवन की मुश्किलें हल करने का
मैं जलता रहा हरेक के अंतस में
हूँ आस का दीपक

रेखा जोशी 


गीत



विधा-गीत
आधार छंद चौपाई
मात्रा 16
मुखड़ा समान्त अने पदाँत आले
अंतरा 1 समान्त ऐ अपदांत 
अंतरा 2समान्त ऐरी अपदांत

उड़ान  ऊँची भरने  वाले
नभ पर  पंछी उड़ने वाले
.
झूमते  संग  संग हवा  के
मनभावन मधुर गीत गाते
सुंदर अपना रूप सजा के
सब के मन को हरने वाले
नभ  पर पंछी  उड़ने वाले
.
काया  रंग   बिरंगी   तेरी 
बोली मीठी  मीठी    तेरी
फुदक रहे हो बगिया मेरी
डाली बैठ  चहकने  वाले
नभ  पर पंछी उड़ने वाले
.
उड़ान  ऊँची  भरने वाले
नभ पर पंछी उड़ने वाले
.
रेखा जोशी 

Wednesday, 21 February 2024

गीत

गीत 

रूठो ना हमसे तुम प्रियतम,आज साजन क्या हो गया

निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया

..

हैं बहारें खिली मधुबन में ,मौसम आज तड़पा रहा

गा रही हवाएं गीत मधुर, दिलअपना बस तुम्हारा रहा 

बादल अँगना घिर घिर आया, छमाछम मींह बरसाया

निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया 

..

जान चाहे ले लो हमारी, मगर दिल न तोड़ना कभी 

तुम बिन जियें कैसे पिया, दूर हमसे  जाना ना कभी

छोड़कर हमें चले कहां प्रियतम, दर्द इतना दे क्यों दिया

निभाई प्रीत दिल से हमने ,हाल.अपना क्या कर लिया 

रेखा जोशी

Sunday, 18 February 2024

गीत


गीत 
आधार छंद --चौपैया (मात्रिक)
शिल्प विधान -30 मात्राएँ (10,8,12 पर यति) अंत में गागा अनिवार्य । 
मुखड़ा ,
समांत आएं, पदांत हैँ
अंतरा 1
समांत इये,पदांत तेरी
अंतरा 2
समांत आए अपदांत

दीप जलाएं अब , ख़ुशी मनाएं, अंगना सजाएँ हैँ 
घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ
..
आरती उतारूं, शीश झुकाऊँ, दया चाहिए तेरी 
आशीष मिले प्रभु, सुन लो पुकार ,कृपा चाहिए तेरी
मन मंदिर प्रभु जी ,आन बसो तुम, हम शीश झुकाएं हैं
घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ
..
मिल कर रहें सभी,तुम्हीं सहारे,कष्ट न कोई पाए 
सर ऊपर प्रभु का, रहे हाथ जब, दुख दर्द मिटा जाए
राम कृपा करना, सब दुख हरना, सुधबुध  बिसराए हैँ
घर हमारे आज, भगवान राम, धाम अवध आएं हैँ
..
दीप जलाएं अब , ख़ुशी मनाएं, अंगना सजाएँ हैँ 
घर हमारे आज, भगवान राम,धाम अवध आएं हैँ
..
रेखा जोशी 


 
  

Thursday, 15 February 2024

आया ऋतुराज

आया ऋतुराज मौसम बहारों का

हौले हौले बह रही संगीतमय लहर

दे रही हिलोरे मदमस्त बसंती पवन

झूम रहे धरा पर पीले पीले फूल.

.

मन में उमंग लिये

उपवन में मुस्कुराते गुनगुना रहे भँवरे

लहराते धरा पर

खिलखिला रहे पीले पीले फूल

.

मौसम ने ली अंगड़ाई

छाया चहुँ ओर रंग बसंती 

कुहक रही कोयलिया अंबुआ की डाल पे

खेतों खलिहानों में नाच उठी सरसों

इतरा रहे धरा पर पीले पीले फूल

.

मधुरस बिखेरता आया मधुमास

लहराये चुनरिया

पिया मिलन की आस

गोरी के आँचल तले

शरमा रहे पीले पीले फूल

.

रेखा जोशी

गीतिका


गीतिका 

फूलों से लदे गुच्छे लहराते डार डार
है खिल खिल गए उपवन महकाते संसार
,
सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर वाटिका
है भँवरें पुष्पों पर मंडराते बार बार
,
सुन्दर गुलाब खिले महकती है खुशी यहां
संग संग फूलों के यहां मिलते है खार
,
है मनाती उत्सव रंग बिरंगी तितलियां
चुरा कर रंग फूलों का कर रही सिंगार
,
अंबुआ की डाली पे कुहुकती कोयलिया
खिले जीवन यहां जैसे बगिया में बहार

रेखा जोशी

Wednesday, 14 February 2024


बहु और बेटी

बहु और बेटी ,क्या हम दोनों को एक समान देखते है ? कहते तो सब यही है कि बहु हमारी बेटी जैसी है लेकिन हमारा व्यवहार क्या दोनों के प्रति एक सा होता है ? नही ,बहु सदा पराई और बेटी अपनी ,बेटी का दर्द अपना और बहु  तो बहु है अगर सास  बहु को सचमुच में अपनी बेटी मान ले तो निश्चय ही बहु  के मन में भी अपनी सास के प्रति प्रेमभाव अवश्य ही पैदा हो जायेगा|अपने माँ बाप भाई बहन सबको छोड़ कर जब लड़की ससुराल में आती है तो उसे प्यार से अपनाना ससुराल वालों का कर्तव्य होता है ।

हम सब अपने बेटे की शादी के लिए पढ़ी लिखी संस्कारित परिवार की लड़की दूंढ कर लाते हैं,जिसके आने से पूरे घर में खुशियों की लहर दौड़ उठती है ,लेकिन सास और बहु का रिश्ता भी कुछ अजीब सा होता है और उस रिश्ते के बीचों बीच फंस के रह जाता है बेचारा लड़का ,माँ का सपूत और पत्नी के प्यारे पतिदेव ,जिसके साथ उसका सम्पूर्ण जीवन जुड़ा होता है ,कुछ ही दिनों में सास बहु  के प्यारे रिश्ते की मिठास खटास में बदलने लगती है और सास का  बेटा तो किसी राजकुमार से कम नही होता और माँ का श्रवण कुमार ,माँ की आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर ,ऐसे में बहु  ससुराल में अपने को अकेला महसूस करने लगती है,और बेचारा लड़का  ,एक तरफ माँ का प्यार और दूसरी ओर पत्नी के प्यार की मार, उसके लिए असहनीय  बन जाती है और  आखिकार एक हँसता खेलता परिवार दो भागों में बंट जता है,लेकिन यह इस समस्या का समाधान नही है ,परन्तु आख़िरकार दोष किसका है?

दोष तो सदियों से चली आ रही परम्परा का है ,दोष सास बहु के रिश्ते का है ,सास बहु को बेटी नही मान सकती और बहु सास को माँ का दर्जा नही दे पाती ।सास को अपना ज़माना याद रहता है जब वह बहु  थी और उसकी क्या मजाल थी कि वह अपनी सास से आँख मिला कर कुछ कह भी सके ,लेकिन वह भूल जाती है  कि उसमे और उसकी बहु में  एक पीढ़ी का अंतर आ चुका है ,उसे अपनी सोच बदलनी होगी ,बेटा तो उसका अपना है ही वह तो उससे प्यार करता ही है ,और अगर वह अपनी बहु को माँ जैसा प्यार दे , अपनी सारी दिल की बातें बिना अपने बेटे को  बीच में लाये सिर्फ अपनी बहु  के साथ बांटे , उसका शारीरिक ,मानसिक और भावनात्मक रूप से  साथ दे तो  बहु  को भी बेटी बनने में देर नही लगेगी।

रेखा जोशी

मेरा  संक्षिप्त परिचय संलग्न है


परिचय
रेखा जोशी
जन्म : 21 जून 1950 ,अमृतसर
शिक्षा :एम् एस सी [भौतिक विज्ञान ]बी एच यू
आजीविका :अध्यापन ,के एल एम् डी एन कालेज फार वीमेन ,फरीदाबाद
हेड आफ डिपार्टमेंट ,भौतिकी विभाग [रिटायर्ड ]
कार्यकाल में आल इण्डिया रेडियो ,रोहतक  से विज्ञान पत्रिका के अंतर्गत
अनेक बार वार्ता प्रसारण ,कई जानी मानी हिंदी की मासिक पत्रिकाओं में लेख
एवं कहानियों का प्रकाशन।
अन्य गतिविधिया :
1जागरण जंक्शन .काम पर ब्लॉग लेखन
२ ओपन बुक्स आन लाइन पर ब्लॉग लेखन
३  गूगल ओशन आफ ब्लीस  पर रेखा जोशी .ब्लाग स्पॉट .काम पर लेखन
४ कई इ पत्रिकाओं में प्रकाशन

पता :
Rekha Joshi
565,Sector 16A
Faridabad
121002
Haryana

Saturday, 10 February 2024

गीतिका 

फूल उपवन सदा मुस्कुराते रहे
संग मधुकर यहाँ गुनगुनाते रहे
..
चल पड़े साथ राहें अलग थी मगर 
ज़िन्दगी  साथ  तेरा  निभाते  रहे
..
गम भरी ज़िन्दगी में ख़ुशी भी मिली
पोंछ आंसू यहाँ खिलखिलाते रहे
..
ज़िन्दगी की यहाँ शाम ढलने लगी
आस का दीप हम  तो जलाते रहे
..
पास आओ कभी हाल अपना कहें
ज़िन्दगी भर नज़र क्यों चुराते रहे

रेखा जोशी 



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