Wednesday 18 February 2015

कतरा कतरा आँसू पिलाती रही ज़िंदगी हमें

रफ्ता रफ्ता देखो यह  जलाती  रही ज़िंदगी हमें
दर्द ए गम  से  हरदम  मिलाती रही ज़िंदगी हमें
सहलाया पत्तों ने भी शबनम  की बूँदों को सजन
कतरा  कतरा  आँसू  पिलाती   रही  ज़िंदगी हमें

रेखा जोशी 

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