छंदमुक्त रचना
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ
हवाओं में जहर है भरा हुआ
नैनों से पानी की बूंदे टपक रही
सांसे हम सबकी है उखड़ रही
जीना हुआ अब यहाँ मुश्किल
खांस खांस हुआ हाल बेहाल
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ
हवाओं में जहर है भरा हुआ
प्रदूषण फैला धरा से अंबर तक
मैला मैला सा आवरण धरा का
भटक रहे धूमिल गगन में पंछी
छटपटाहट में वसुधा पर जीवन
कैसे बचें रोगों से अब हम सब
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ
हवाओं में जहर है भरा हुआ
रेखा जोशी
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