Friday, 28 December 2018

है संघर्षरत यह जीवन

सुख दुख की लहरों पर अक्सर
लड़खड़ाती है जीवन नैया
काटना कठिन है जीवन सफर
है संघर्षरत यह जीवन
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घिर घिर काले घन आते जब
प्रलय की आँधी से फिर तब
रह रह कर उठे बवंडर
ऊंची नीची लहरों से जूझते लड़ते
थक जाता है मानव अक्सर
बाधाओं से घिर जाये मानव तब
है संघर्षरत यह जीवन
.
चमक चमक कर नभ में जब
जिया धड़काती दामिनी
घबराना नहीं डरना भी नहीं
चीर कर घोर तूफानों को तब
बढ़ते रहना तुम निरंतर
पार बाधाओं को कर सारी  

मंजिल पानी है तुम्हें 

उस पार नैया ले जानी तुम्हें 

चलते जाना तुम अविचल
है संघर्षरत यह जीवन

रेखा जोशी

प्यार

हाँ  किया हमने भी प्यार, इंकार नहीं हैं
था  हमें  इंतज़ार  अब  इंतज़ार नहीं  हैं
बेवफा से दिल लगाया बहुत चोट खाई
दर्द  सीनें  में  छुपाया  पर  प्यार नहीं हैं

रेखा जोशी

Thursday, 6 December 2018

छटा प्रकृति की तो मतवारी है

फ़ूलों  से  महकी अब क्यारी  है
अँगना खिली आज फुलवारी है
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नाचते  झूम  झूम   मोर  बगिया
कुहुके   कोयल   डारी  डारी  है
..
रंगीन   तितली  उड़े  फूलों  पर
गुन गुन भँवरों की अब बारी है
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ऊँची   ऊँची   पर्वत  शृंखलाएँ
छा  रही   घटा  कारी  कारी  है
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है  मधुर  स्वर  में   गाते   झरनें
कल कल ध्वनि नदी की जारी है
...
अनुपम  रूप  है छाया चहुं  ओर
छटा  प्रकृति  की  तो मतवारी है

रेखा जोशी