फ़ूलों से महकी अब क्यारी है
अँगना खिली आज फुलवारी है
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नाचते झूम झूम मोर बगिया
कुहुके कोयल डारी डारी है
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रंगीन तितली उड़े फूलों पर
गुन गुन भँवरों की अब बारी है
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ऊँची ऊँची पर्वत शृंखलाएँ
छा रही घटा कारी कारी है
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है मधुर स्वर में गाते झरनें
कल कल ध्वनि नदी की जारी है
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अनुपम रूप है छाया चहुं ओर
छटा प्रकृति की तो मतवारी है
रेखा जोशी
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