Thursday 6 December 2018

छटा प्रकृति की तो मतवारी है

फ़ूलों  से  महकी अब क्यारी  है
अँगना खिली आज फुलवारी है
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नाचते  झूम  झूम   मोर  बगिया
कुहुके   कोयल   डारी  डारी  है
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रंगीन   तितली  उड़े  फूलों  पर
गुन गुन भँवरों की अब बारी है
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ऊँची   ऊँची   पर्वत  शृंखलाएँ
छा  रही   घटा  कारी  कारी  है
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है  मधुर  स्वर  में   गाते   झरनें
कल कल ध्वनि नदी की जारी है
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अनुपम  रूप  है छाया चहुं  ओर
छटा  प्रकृति  की  तो मतवारी है

रेखा जोशी

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