Sunday, 27 September 2020

संस्मरण

संस्मरण 
करीब बीस वर्ष पहले की बात है जब मैं अपने कार्यकाल के दौरान महाविद्यालय की छात्राओं का एक ट्रिप लेकर शिमला गई थी, मेरे साथ तीन और प्राध्यापिकायें भी थी, हम ल़डकियों के सथ कालका से शिमला टोय ट्रेन से जा रहे थे, गाड़ी खचाखच भरी हुई थी हमारी सीट के सामने एक युवा दंपति आ कर खड़ा हो गया, युवती की गोद में एक गोल मटोल सुन्दर सा बच्चा था जिसे चलती गाड़ी में बच्चे के साथ खड़े रहने में उस युवती को बहुत असुविधा हो रही थी चूंकि मैं सीट पर बैठी हुई थी मैंने उस युवती से कहा जब तक आपको सीट नहीं मिलती आप बच्चे को मुझे पकडा दें, तो उसने अपने बच्चे को मुझे पकडा दिया और उस बच्चे के साथ छात्राएँ खेलने लगी, वह दंपति भी हम सबके साथ घुलमिल गया, बातों ही बातों में उनका स्टेशन आ गया और वह दोनों झटपट गाड़ी से उतर गए और हमें बाय बाय करने लगे, गाड़ी वहाँ बहुत ही कम समय के लिए रुकती है मैंने जोर से चिल्ला कर कहा, "अरे अपना बच्चा तो लेते जाओ" किसी तरह जल्दी जल्दी बच्चे को उन्हें सौंपा की गाड़ी चल पडी, गाड़ी में बैठे सभी लोग हँस रहे थे और उनके साथ हम सब भी हँसने लगे l
रेखा जोशी 

Wednesday, 16 September 2020

हिन्दी दिवस पर


सभी मित्रों को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई

अपनी हिंदी से हमें, मिलती है पहचान 
भाषा है यह देश की, है हमें अभिमान
.. 
खाएँ कसम आज सभी, सब दें इसे सम्मान
अपनाएँ इसको सभी, भारत की है शान
.. 
पावन धरती देश की, हिन्दी सब की जान 
गंगा जमुना सी बहे, देश का स्वाभिमान 
हिन्दी से हैं सब जुड़े, जाति धर्म सब भिन्न 
एक सूत में पिरो दिया , भाषा का यही गुण 
.. 
समृद्ध लेखन है यहाँ, भरा भंडार ज्ञान 
हिन्दी दिल के पास है, भारत का है मान 

रेखा जोशी 




नाचती गाती गुनगुनाती यह जिंदगी

अक्सर
मै देखा करती हूँ
ख़्वाब खुली आँखों से
अच्छा लगता है
लगा कर सुनहरे पँख
जब आकाश में पंछियों सा 
उड़ता है मेरा मन

छिड़ जाते है जब तार
इंद्रधनुष के
और
बज उठता है
अनुपम संगीत
थिरकने लगता है
मेरा मन
होता है सृजन मेरी
कल्पनाओं का
जहां मुस्कुराती है 
यह ज़िन्दगी
जहां नाचती गाती और गुनगुनाती है 
यह जिंदगी 

रेखा जोशी

शून्य है मानव

पूछा मैने
सूरज और
चाँद सितारों से
हस्ती क्या तुम्हारी
विस्तृत ब्रह्मांड के
विशाल महासागर में
जिसमे है समाये
असंख्य तुम जैसे
सूरज आग उगलते
साथ लिए अपने
अनेक चाँद
टिमटिमा रहे जिसमे
अनेकानेक तारे
निरंतर घूम रही जिसमे
असंख्य आकाशगंगाएँ
देख पाती नही जिसे
आाँखे हमारी
रहस्यमय अनगिनत जिसमे
विचर रहे पिंड
और
इस घरती पर
मूर्ख मानव
झूठे गरूर में लिप्त 
अभिमान में डूबा हुआ
कर रहा प्रदर्शन
अपनी शक्ति का
अपने अहम का
अपनी सत्ता का
कर रहा पाप अनगिनत
देखता है आकाश रोज़
नही समझ पाया
अपनी हस्ती
शून्य है मानव
विशाल महासागर में

रेखा जोशी

Monday, 7 September 2020

संस्मरण

बात जून 1980 की है जब मेरे पति की श्रीनगर में नई नई बदली हुई थी, उनका आफिस एक बहुत ही पुरानी ईमारत में था और वहाँ उन्हें आफिस के साथ रहने के लिए ऊपर की मंजिल पर दो कमरे मिले हुए थे बाकी सारी बिल्डिंग वीरान और बंद पड़ी हुई थी, नीचे की मंजिल पर चौकीदार रहता थाl गर्मी की छुट्टियों में मैं भी अपने छोटे छोटे दो बेटों को लेकर वहाँ पहुंच गई l मेरे पति ने वहां नया नया चार्ज लिया था इसलिए वह देर रात तक फाइलें चेक कर रहे थे रात के 12 बज रहे कि अचानक ऊपर से किसी उतरने की आवाज सुनाई दी, लकड़ी की सीढ़ियां होने के कारण ठक ठक पांवों की आवाज ने मुझे जगा दिया, आवाज सुन कर मेरे पति भी आफिस से बाहर आ गए और उन्होंने सीढियों पर जा कर देख कि एक बहुत बड़ी काले रंग की बिल्ली सीढियों पर खड़ी थी, मेरे पति हंसते हुए कमरे में आ गए और बोले, "अरे रेखा वह तो एक बिल्ली थी, तुम आराम से सो जाओ" l उनकी बात सुन मैं भी सो गई, और बात खत्म हो गई l

कई सालों बाद हम दोनों उस किस्से को याद कर रहे थे कि अचानक मैं डर गई क्योंकि बिल्लियों के चलने की तो आवाज ही नहीं होती उनके पंजों के नीचे तो पैड होते हैं यानि कि उनके पंजे गद्देदार होते हैं तो फिर वह ठक ठक करके कौन सीढ़ियां उतर रहा था l

रेखा जोशी

Sunday, 6 September 2020

मत खेलो कुदरत से खेल

काटो पेड़
जंगल जंगल
मत खेलो
कुदरत से खेल
कर देगी अदिति
सर्वनाश जगत का
हो जायेगा
धरा पर
सब कुछ फिर मटियामेल
कुपित हो कर
प्रकृति भी तब
रौद्र रूप दिखलाएगी
बहा ले जायेगी सब कुछ
संग अपने जलधारा में
समा जायेगा
जीवन भी उसमे
कुछ नही 
बच पायेगा शेष 
फिर
कुछ नही
बच पायेगा शेष
रेखा जोशी