अक्सर
मै देखा करती हूँ
ख़्वाब खुली आँखों से
अच्छा लगता है
लगा कर सुनहरे पँख
जब आकाश में पंछियों सा
उड़ता है मेरा मन
छिड़ जाते है जब तार
इंद्रधनुष के
और
बज उठता है
अनुपम संगीत
थिरकने लगता है
मेरा मन
होता है सृजन मेरी
कल्पनाओं का
जहां मुस्कुराती है
यह ज़िन्दगी
जहां नाचती गाती और गुनगुनाती है
यह जिंदगी
रेखा जोशी
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