थाली नवगीत
कैसी यह दुनिया, कैसा संसार
रहना यहाँ संभल कर प्यारे
पग पग पर मिलेंगे यहां
झूठे और मक्कार
दूर रहो ऐसे लोगों से
लूटते बनाकर जो अपना
खाते हैं जिस भी थाली में वोह
करेंगे छेद वहाँ पर
नहीं भरोसे के काबिल
करते अपना वोह उल्लू सीधा
लुढकते रहते
थाली में बैंगन जैसे
इधर कभी उधर
उधर कभी इधर
चलते बनते वहाँ से वोह
मतलब निकल जाने के बाद
जिंदगी में साथ निभाए जो
थामना हाथ उसका पहचान कर
मिल जाए जो साथी ऐसा जीवन में
बन जाएगा फिर सफ़र सुहाना
बन जायेगा फिर सफ़र सुहाना
रेखा जोशी
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
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