आई है बिटिया अँगना में मेरे
घर की दीवारें लगी है महकने
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देखती हूँ नन्ही परी को मै जब
तैरता नयन में मेरा वो बचपन
पापा का प्यार और माँ का दुलार
वही प्यारे पल छिन फिर लौट आए
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चहकती मटकती अँगना में खेले
सुबह और शाम वह सबको नचाये
माँ के दुपट्टे से संवारे खुद को
साड़ी पहन कर वह चोटी लहराये
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भरी दोपहर में छुपना अँगना में
वो घर घर खेलना संग गुडिया के
घर आँगन मेरा लगा है चहकने
जब मधुर हसी से वोह खिलखिलाये
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आई है बिटिया अँगना में मेरे
घर की दीवारें लगी है महकने
रेखा जोशी
अति सुंदर ।
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