Monday, 12 October 2020

बिटिया

आई है बिटिया अँगना में मेरे
घर की दीवारें लगी है महकने
देखती हूँ नन्ही परी को मै जब
तैरता नयन में मेरा  वो बचपन
पापा का प्यार और माँ का दुलार
वही प्यारे पल छिन फिर लौट आए 
चहकती मटकती अँगना में खेले 
सुबह और शाम वह सबको नचाये
माँ के दुपट्टे से संवारे खुद को 
साड़ी पहन कर वह चोटी लहराये 
भरी दोपहर में छुपना अँगना में
वो घर घर  खेलना   संग गुडिया के
घर आँगन मेरा लगा है चहकने
जब मधुर हसी से वोह खिलखिलाये
आई है बिटिया अँगना में मेरे
घर की दीवारें लगी है महकने

रेखा जोशी

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