Wednesday, 12 January 2022

जी ले ज़िन्दगी अपनी

ख्वाब नहीं है ज़िन्दगी
कहते है अक्सर लोग
माना ज़िन्दगी है हकीकत लेकिन
देखते ही रहते हैं ख्वाब और
ताउम्र लगे रहते हैं
पूरा करने उन्हीं को
,,,
लम्हा लम्हा ज़िन्दगी
रेत सी फिसल रही हाथों से
लम्हा लम्हा बहुत कुछ
है छूट रहा हाथों से
जी ले ज़िन्दगी अपनी
इससे पहले कि छूट जाए
ज़िन्दगी ही हाथों से
,,
कितना प्यारा मौसम है
खुश हैं ज़मी खुश आसमाँ
महकती धरा
छाया सब ओर नशा
बाहें फैलाये पुकारे तुम्हे
कहाँ हो ज़िन्दगी
आ जाओ ना

रेखा जोशी



4 comments:

  1. बेहतरीन लेखन

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  2. बहुत सुंदर और सकारात्मक भावों से भरी रचना। सच में जिस दृष्टि से हम दुनियां को देखते हैं वह वैसी ही दिखने लगती है। लोहड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपकोरेखा जी 🙏🌷🌷❤️❤️

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  3. लम्हा लम्हा ज़िन्दगी
    रेत सी फिसल रही हाथों से
    लम्हा लम्हा बहुत कुछ
    है छूट रहा हाथों से
    जी ले ज़िन्दगी अपनी
    इससे पहले कि छूट जाए
    ज़िन्दगी ही हाथों से
    जिंदगी जीने की कला बताती बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति!
    जियो ऐसे जैसे आज आखिरी दिन है जिंदगी का!😊

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  4. सुंदर सृजन।
    सादर।

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