ख़्वाबों के महल में
करना चाहती कैद
धूप को
जगमगा उठे वहाँ
कोना कोना
रोशन हो जायें दीवारे वहाँ
इन्द्रधनुष के रंगों से
खिलखिलाये जहाँ
महकती खुशियाँ
हूँ जानती सजे गा इक दिन
मेरा सपनो का महल
और बुझे गी इक दिन
चिर प्यास मेरी
नहीं ओस की बूँदों से
भर जाये गा तब
मेरे अंतर्मन का
घट अमृत की
बूँद बूँद से
रेखा जोशी
सुन्दर कविता
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