Tuesday, 31 December 2024

हैप्पी न्यू ईयर

जश्न मनाएं खुशियाँ मनाएं हम
गत वर्ष को कभी ना भुलाएं हम 

संजोये रखें वह सुखद पल सदा
उन स्मृतियों को ना कहना अलविदा

है जीवंत मन में खूबसूरत पल
बंद पलकों में है साकार सकल

है जीत भी मिली संग मिली हार
मिला जो भी उसे किया स्वीकार 

बीते वर्ष ने बहुत कुछ दिया हमें
कैसे भुला सकते है हम सब उसे

नवल वर्ष नवल सूरज अभिनन्दन 
आदित्य की प्रथम किरण का वंदन 

नववर्ष 2025 की आप सभी को हार्दिक मंगलकामनाएं 🌹🌹


Thursday, 26 December 2024

हमारी धूप छांव जैसी जिंदगी

"हमारी धूप छांव जैसी जिंदगी"

यहां सुख दुःख से है भरी जिंदगी
हर वक्त इम्तिहान लेती जिंदगी

जीत मिलती कभी मिलती यहां हार
हमारी धूप छांव जैसी जिंदगी

रुकता नहीं वक्त किसी के. वास्ते
लम्हा लम्हा हाथों से फिसलती जिंदगी

हैं खुशियाँ कहीं सन्नाटा मौत का
आँसू बहाती कहीं हँसती जिंदगी

दो दिन का मेला जीवन इक खेला
न ग़म कर फूल सी महकती जिंदगी

रेखा जोशी
 

कर्म गति टाले नहीं टलती

शीर्षक :कर्म गति टाले नहीं टलती 

वक्त कब गुज़र जाता है
पता ही नहीं चलता, कैसे बंधी है
हमारी ज़िन्दगी
घड़ी की टिक टिक के साथ 
सुबह से शाम , रात से दिन
बस घड़ी की टिक टिक के संग
हम सब चलते जा रहे हैं 
समय को तो आगे ही 
चलते जाना है, 
जिंदगी का हर पल अनमोल है 
लेकिन कर्मो का बहुत झोल है 
हमारी जीत हमारी हार 
है कर्म ही सबका आधार 
जैसे कर्म करेंगे वैसे ही मिलेगा फल 
कर्म गति टाले नहीं टलती ।

रेखा जोशी

Wednesday, 25 December 2024

यह शहर अपना है धुआँ धुआँ

छंदमुक्त रचना 

यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

नैनों से पानी की बूंदे टपक रही
सांसे हम सबकी है उखड़ रही
जीना हुआ अब यहाँ मुश्किल 
खांस खांस हुआ हाल बेहाल 
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

प्रदूषण फैला धरा से अंबर तक 
मैला मैला सा आवरण धरा का 
भटक रहे धूमिल गगन में पंछी
छटपटाहट में वसुधा पर जीवन 
कैसे बचें रोगों से अब हम सब 
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

रेखा जोशी 




है उनके पेट में धधकता श्मशान

शीर्षक :है उनके पेट में धधकता श्मशान 

जिंदगी जीने के लिए चाहिए 
खाने का सामान 
 व्याकुल भूख से कई यहाँ 
है उनके पेट में धधकता श्मशान 

जिंदगी कैसी यहाँ 
है बच्चे  भी करते श्रम यहाँ 
पेट भरने को नहीं है आहार
घर गरीबों के घरों में 
है शिक्षा का अभाव 
भूख के मारे यहाँ पर हैं बहुत इंसान 
है उनके पेट में धधकता श्मशान 

भुला कर सब जात पात सबका करें सम्मान 
सामर्थ्य है गर करते रहो तुम अन्न का दान 
भूखे पेट न सोये कोई
है उनके पेट में धधकता श्मशान 

रेखा जोशी 










कर्मों का लेखा जोखा

 शीर्षक :कर्मों का लेखा जोखा

कर्मों का लेखा जोखा ही 
हमारे जीवन का आधार 
कर्मो का है सारा खेला
कर्मो के बंधन में बंधा सारा संसार 
..
तकदीर हमारी कर्म लिखता 
जैसे कर्म करते हम 
वैसा ही जीवन मिलता 
सुख दुख, जीत हार 
कर्मो से ही फल मिलता 
..
कर्म जो करता अच्छे जग में 
मिलते परिणाम साकार 
कर्म ही धर्म कर्म ही पूजा 
बात है यह बिलकुल पक्की 
बाकी सब है बेकार 
कर्मों का लेखा जोखा ही 
हमारे जीवन का आधार 

रेखा जोशी 






दर्द का कोई धर्म नहीं होता

 शीर्षक :दर्द का कोई धर्म नहीं होता 

छंद मुक्त रचना 

हाँ होता है दर्द सबको जब लगती है चोट,
चोटिल हो पशु पक्षी भी कराहते हैं दर्द से,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

लिया है जन्म जिसने इस धरा पे,
बहता है खून जिसकी भी रगों में,
तड़पता है दर्द से हर जीवधारी,
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता l

है कर सकता इंसान बयाँ,
अपने तन मन के दर्द को l
लेकिन उन मूक प्राणियों का क्या,
सुनी है कराह कभी उनके दर्द की,
देखे है आंसू क्या , बयाँ करते जो पीड़ा उनकी l
मासूम सहते पीड़ा चुपचाप
क्योंकि दर्द का कोई धर्म नहीं होता

रेखा जोशी 




 

Saturday, 21 December 2024

जिंदगी से प्यार कर

जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर 
..
धूप भी मिलती यहाँ छाँव भी मिलती यहाँ
जीत भी मिलती यहाँ हार भी मिलती यहाँ 
वक़्त का खेला यहाँ वक़्त का इंतज़ार कर
जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर
..
आँसू बहाती जिंदगी हँसाती भी यहाँ
पल पल हमारा ले रही इम्तिहाँ भी यहाँ
भुला कर गम सभी ख़ुशी का इज़हार कर
जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर
..
जो मिली है हमें वो जिंदगी स्वीकार कर 
जीने को मिली यहाँ जिंदगी से प्यार कर

रेखा जोशी