Wednesday, 25 December 2024

यह शहर अपना है धुआँ धुआँ

छंदमुक्त रचना 

यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

नैनों से पानी की बूंदे टपक रही
सांसे हम सबकी है उखड़ रही
जीना हुआ अब यहाँ मुश्किल 
खांस खांस हुआ हाल बेहाल 
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

प्रदूषण फैला धरा से अंबर तक 
मैला मैला सा आवरण धरा का 
भटक रहे धूमिल गगन में पंछी
छटपटाहट में वसुधा पर जीवन 
कैसे बचें रोगों से अब हम सब 
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ 
हवाओं में जहर है भरा हुआ

रेखा जोशी 




8 comments:

  1. दमघोंटू,बेचैन धुआँ-धुआँ शहर
    रगों में फैलता धीमा-धीमा ज़हर,
    तू-तू,मैं-मैं,दाँव-पेंच सच अनछुआ
    डर है निगल न ले रवा-रवा कहर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आपका 🙏🙏

      Delete
  2. सुंदर और सामयिक विषय
    आभार
    सादर

    ReplyDelete
  3. सुन्दर, सार्थक रचना

    ReplyDelete
  4. आभार आपका 🙏🙏

    ReplyDelete