छंदमुक्त रचना
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ
हवाओं में जहर है भरा हुआ
नैनों से पानी की बूंदे टपक रही
सांसे हम सबकी है उखड़ रही
जीना हुआ अब यहाँ मुश्किल
खांस खांस हुआ हाल बेहाल
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ
हवाओं में जहर है भरा हुआ
प्रदूषण फैला धरा से अंबर तक
मैला मैला सा आवरण धरा का
भटक रहे धूमिल गगन में पंछी
छटपटाहट में वसुधा पर जीवन
कैसे बचें रोगों से अब हम सब
यह शहर अपना है धुआँ धुआँ
हवाओं में जहर है भरा हुआ
रेखा जोशी
दमघोंटू,बेचैन धुआँ-धुआँ शहर
ReplyDeleteरगों में फैलता धीमा-धीमा ज़हर,
तू-तू,मैं-मैं,दाँव-पेंच सच अनछुआ
डर है निगल न ले रवा-रवा कहर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सादर आभार आपका 🙏🙏
Deleteसुंदर और सामयिक विषय
ReplyDeleteआभार
सादर
आभर आपका
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteसुन्दर, सार्थक रचना
ReplyDeleteआभार आपका 🙏🙏
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